बुधवार, 19 जनवरी 2022

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' | SACHCHIDANANDA HIRANANDA VATSYAYAN AGYEYA | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय | AGYEYA

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' 

(सन् 1911-1987)

अज्ञेय का मूल नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन है। उन्होंने अज्ञेय नाम से काव्य-रचना की। उनका जन्म कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था, किंतु बचपन लखनऊ, श्रीनगर और जम्मू में बीता। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी और संस्कृत में हुई। हिंदी उन्होंने बाद में सीखी। वे आरंभ में विज्ञान के विद्यार्थी थे। बी.एससी. करने के बाद उन्होंने एम. ए. अंग्रेज़ी में प्रवेश लिया। क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ना पड़ा। वे चार वर्ष जेल में रहे तथा दो वर्ष नज़रबंद। अज्ञेय ने देश-विदेश की अनेक यात्राएँ कीं। उन्होंने कई नौकरियाँ की और छोड़ीं। कुछ समय तक वे जोधपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रहे। वे हिंदी के प्रसिद्ध समाचार साप्ताहिक दिनमान के संस्थापक संपादक थे। कुछ दिनों तक उन्होंने नवभारत टाइम्स का भी संपादन किया। इसके अलावा उन्होंने सैनिक, विशाल भारत, प्रतीक, नया प्रतीक आदि अनेक साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

आज़ादी के बाद की हिंदी कविता पर उनका व्यापक प्रभाव है। उन्होंने सप्तक परंपरा का सूत्रपात करते हुए तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक का संपादन किया। प्रत्येक सप्तक में कवियों की कविताएँ संगृहीत जो शताब्दी कई दशकों की काव्य-चेतना प्रकट करती हैं। अज्ञेय कविता के साथ कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत, निबंध, आलोचना अनेक साहित्यिक विधाओं लेखन किया है। शेखर-एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी (उपन्यास), यायावर रहेगा याद, बूँद सहसा उछली (यात्रा-वृत्तांत), त्रिशंकु, आत्मने (निबंध), विपथगा, परंपरा, कोठरी बात, शरणार्थी, जयदोल और तेरे प्रतिरूप (कहानी संग्रह) उनकी रचनाएँ।

अज्ञेय प्रकृति-प्रेम और मानव-मन अंतद्वंद्वों के कवि हैं। उनकी कविता में व्यक्ति की स्वतंत्रता आग्रह और बौद्धिकता का विस्तार भी। उन्होंने शब्दों नया देने का हिंदी काव्य-भाषा का विकास किया उन्हें हैं, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रमुख है। उनकी मुख्य काव्य-कृतियाँ हैं- भग्नदूत, चिंता, हरी घास पर क्षणभर, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार आदि। अज्ञेय की संपूर्ण कविताओं का संकलन सदानीरा नाम से दो भागों में प्रकाशित हुआ है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' | SURYAKANT TRIPATHI NIRALA | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

(1898-1961)

निराला का जन्म बंगाल में मेदिनीपुर जिले के महिषादल गाँव में हुआ था। उनका पितृग्राम उत्तर प्रदेश का गढ़कोला (उन्नाव) है। उनके बचपन का नाम सूर्य कुमार था। बहुत छोटी आयु में ही उनकी माँ का निधन हो गया। निराला की विधिवत स्कूली शिक्षा नवीं कक्षा तक ही हुई। पत्नी की प्रेरणा से निराला की साहित्य और संगीत में रुचि पैदा हुई। सन् 1918 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया और उसके बाद पिता, चाचा, चचेरे भाई एक-एक कर सब चल बसे। अंत में पुत्री सरोज की मृत्यु ने निराला को भीतर तक झकझोर दिया। अपने जीवन में निराला ने मृत्यु का जैसा साक्षात्कार किया था उसकी अभिव्यक्ति उनकी कई कविताओं में दिखाई देती है। सन् 1916 में उन्होंने प्रसिद्ध कविता जूही की कली लिखी जिससे बाद में उनको बहुत प्रसिद्धि मिली और वे मुक्त छंद के प्रवर्तक भी माने गए। निराला सन् 1922 में रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका समन्वय के संपादन से जुड़े। सन् 1923-24 में वे मतवाला के संपादक मंडल में शामिल हुए। वे जीवनभर पारिवारिक और आर्थिक कष्टों से जूझते रहे। अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण निराला कहीं टिककर काम नहीं कर पाए। अंत में इलाहाबाद आकर रहे और वहीं उनका देहांत हुआ।

छायावाद और हिंदी की स्वच्छंदतावादी कविता के प्रमुख आधार स्तंभ निराला का काव्य-संसार बहुत व्यापक है। उनमें भारतीय इतिहास, दर्शन और परंपरा का व्यापक बोध है और समकालीन जीवन के यथार्थ के विभिन्न पक्षों का चित्रण भी। भावों और विचारों की जैसी विविधता, व्यापकता और गहराई निराला की कविताओं में मिलती है वैसी बहुत कम कवियों में है। उन्होंने भारतीय प्रकृति और संस्कृति के विभिन्न रूपों का गंभीर चित्रण अपने काव्य में किया है। भारतीय किसान | जीवन से उनका लगाव उनकी अनेक कविताओं में व्यक्त हुआ है। यद्यपि निराला मुक्त छंद के प्रवर्तक माने जाते हैं तथापि उन्होंने विभिन्न छंदों में भी कविताएँ लिखी हैं। उनके काव्य-संसार में काव्य-रूपों की भी विविधता है। एक ओर उन्होंने राम की शक्ति पूजा और तुलसीदास जैसी प्रबंधात्मक कविताएँ लिखीं तो दूसरी ओर प्रगीतों की भी रचना की। उन्होंने हिंदी भाषा में गजलों की भी रचना की है। उनकी सामाजिक आलोचना व्यंग्य के रूप में उनकी कविताओं में जगह-जगह प्रकट हुई है। निराला की काव्यभाषा के अनेक रूप और स्तर हैं। राम की शक्ति पूजा और तुलसीदास में तत्समप्रधान पदावली है तो भिक्षुक जैसी कविता में बोलचाल की भाषा का सृजनात्मक प्रयोग। भाषा का कसाव, शब्दों की मितव्ययिता और अर्थ की प्रधानता उनकी काव्य-भाषा की जानी-पहचानी विशेषताएँ हैं।

निराला की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं-परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज आदि। निराला ने कविता के अतिरिक्त कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे। उनके उपन्यासों में बिल्लेसुर बकरिहा विशेष चर्चित हुआ। उनका संपूर्ण साहित्य निराला रचनावली के आठ खंडों में प्रकाशित हो चुका है।

जयशंकर प्रसाद | JAISHANKAR PRASAD | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद

(1889-1937)

जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी में हुआ। वे विद्यालयी शिक्षा केवल आठवीं कक्षा तक प्राप्त कर सके, किंतु स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, पालि, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं तथा साहित्य का गहन अध्ययन किया। इतिहास, दर्शन, धर्मशास्त्र और पुरातत्त्व के वे प्रकांड विद्वान थे। प्रसाद जी अत्यंत सौम्य, शांत एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे परनिंदा एवं आत्मस्तुति दोनों से सदा दूर रहते थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। मूलतः वे कवि थे, लेकिन उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में उच्चकोटि की रचनाओं का सृजन किया।

प्रसाद साहित्य में राष्ट्रीय जागरण का स्वर प्रमुख है। संपूर्ण साहित्य में विशेषकर नाटकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति के गौरव के माध्यम से प्रसाद जी ने यह काम किया। उनकी कविताओं, कहानियों में भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की झलक मिलती है। प्रसाद ने कविता के साथ नाटक, उपन्यास, कहानी संग्रह, निबंध आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में लेखन कार्य किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - अजातशत्रु, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, राजश्री, ध्रुवस्वामिनी (नाटक); कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण) (उपन्यास), आँधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि और आकाशदीप (कहानी संग्रह), काव्य और कला तथा अन्य निबंध (निबंध संग्रह), झरना, आँसू, लहर, कामायनी, कानन कुसुम, और प्रेमपथिक (कविताएँ)।

विष्णु खरे | VISHNU KHARE | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

विष्णु खरे

(सन् 1940-2018)

विष्णु खरे का जन्म छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश में हुआ। क्रिश्चियन कॉलेज, इंदौर से 1963 में उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। 1962-63 में दैनिक इंदौर समाचार में उप संपादक रहे। 1963-75 तक मध्य प्रदेश तथा दिल्ली के महाविद्यालयों में अध्यापन से भी जुड़े। इसी बीच 1966-67 में लघु-पत्रिका व्यास का संपादन किया। तत्पश्चात् 1976-84 तक साहित्य अकादमी में उप सचिव (कार्यक्रम) पद पर पदासीन रहे। 1985 से नवभारत टाइम्स में प्रभारी कार्यकारी संपादक के पद पर कार्य किया। बीच में लखनऊ संस्करण तथा रविवारीय नवभारत टाइम्स (हिंदी) और अंग्रेज़ी टाइम्स ऑफ़ इंडिया में भी संपादन कार्य से जुड़े रहे। 1993 में जयपुर नवभारत टाइम्स के संपादक के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में दो वर्ष वरिष्ठ अध्येता रहे। अब स्वतंत्र लेखन तथा अनुवाद कार्य में रत हैं।

औपचारिक रूप से उनके लेखन प्रकाशन का आरंभ 1956 से हुआ। पहला प्रकाशन टी.एस. इलियट का अनुवाद मरू प्रदेश और अन्य कविताएँ 1960 में, दूसरा कविता संग्रह एक गैर-रूमानी समय में 1970 में प्रकाशित हुआ। तीसरा संग्रह खुद अपनी आँख से 1978 में, चौथा सबकी आवाज़ के परदे में 1994 में, पाँचवाँ पिछला बाकी तथा छठा काल और अवधि के दरमियान प्रकाशित हुए। एक समीक्षा-पुस्तक आलोचना की पहली किताब 1983 में प्रकाशित। उन्होंने विदेशी कविताओं का हिंदी तथा हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद अत्यधिक किया है। उनको फिनलैंड के राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ दि आर्डर ऑफ दि व्हाइट रोज़ से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त रघुवीर सहाय सम्मान, शिखर सम्मान हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्यकार सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान मिल चुका है। इनकी कविताओं में जड़ताओं और अमानवीय स्थितियों के विरुद्ध सशक्त नैतिक स्वर की अभिव्यक्ति है।

रविवार, 16 जनवरी 2022

साहित्य कलश | बिहारी के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | SECOND YEAR | PART-2 | नीतिपरक उपदेश | BIHARI KE DOHE

साहित्य कलश | बिहारी के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | SECOND YEAR | PART-2 | नीतिपरक उपदेश | BIHARI KE DOHE

बिहारी (1595-1663)

बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। बिहारी रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। उनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। 1663 में इनका देहावसान हुआ। बिहारी की एक ही रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमें उनके लगभग 700 दोहे संगृहीत हैं।

लोक ज्ञान और शास्त्र ज्ञान के साथ ही बिहारी का काव्य ज्ञान भी अच्छा था। रीति का उन्हें भरपूर ज्ञान था। इन्होंने अधिक वर्ण्य सामग्री शृंगार से ली है। इनकी कविता शृंगार रस की है। बिहारी की भाषा शुद्ध ब्रज है पर है वह साहित्यिक। इनकी भाषा में पूर्वी प्रयोग भी मिलते हैं। बुंदेलखंड में अधिक दिनों तक रहने के कारण बुंदेलखंडी शब्दों का प्रयोग मिलना भी स्वाभाविक है।

बिहारी के दोहे

मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।

जा तन की झाई परै, स्यामु हरित-दुति होय।।


कोक कोटिक संग्रहों कोऊ लाख हजार।

सो सम्पति जदुपति सदर विपति विद्यारन हार।।


या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।

ज्यों-ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होइ।।


बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु।

भलौ भलौ कहि छोड़ियै, खोटै ग्रह जपु दानु।।


कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।

कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।


अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा सी देह।

दिया बढाऐं हूँ रहै बड़ौ उज्यारौ गेह।।

साहित्य कलश | तुलसी के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | SECOND YEAR | PART-2 | नीतिपरक उपदेश | TULSI KE DOHE

साहित्य कलश | तुलसी के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | SECOND YEAR | PART-2 | नीतिपरक उपदेश | TULSI KE DOHE

भक्तिकाल के प्रसिद्ध राम भक्त कवि तुलसीदास था। तुलसीवास का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन् 1532 में हुआ था। रामभक्ति परंपरा में तुलसी अंतुलनीय हैं। रामचरितमानस कवि की अनन्य रामभक्ति और उनके सृजनात्मक कौशल का मनोरम उदाहरण है। उनके राम मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक हैं जिनके माध्यम से तुलसी ने नीति, स्नेह, शील, विनय, त्याग जैसे उदात्त आदर्शों को प्रतिष्ठित किया। रामचरितमानस के अलावा कवितावली, गीतावली, दोहावली, कृष्णगीतावली, विनयपत्रिका आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ। हैं। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।

तुलसी ने रामचरितमानस की रचना अवधी में और विनयपत्रिका तथा कवितावली की रचना ब्रजभाषा में की। | उस समय प्रचलित सभी काव्य रूपों को तुलसी की रचनाओं में देखा जा सकता है। रामचरितमानस का मुख्य छंद चौपाई है तथा बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छंद पिरोए गए हैं। विनयपत्रिका की रचना गेय पदों में हुई है। कवितावली में सवैया और कवित्त छंद की छटा देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्यों का उत्कृष्ट रूप है।

एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।

एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।


राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।

तुलसी 'भीतर वाहिरी, जो चाहसी उजियार।।


तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।

वसीकरण यह मंत्र है, परिहरु वचन कठोर।।


सूचे मन. सूधे वचन. सूधी सब करतूति।

तुलसी सूचि सकल विधि, रघुवर प्रेम प्रसूति।।


चरन-चोंच-लोचन रंगौ, चलौ मराली चाल।

छीर-नीर विवरन-समय वक उधरत तेहि काल।।


साखी, सबदी दोहरा, कहि कहनी, उपखान।

भगति निरुपति भगत कलि, निहि वेद-पुरान।।