रविवार, 16 जनवरी 2022

साहित्य कलश | बिहारी के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | SECOND YEAR | PART-2 | नीतिपरक उपदेश | BIHARI KE DOHE

साहित्य कलश | बिहारी के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | SECOND YEAR | PART-2 | नीतिपरक उपदेश | BIHARI KE DOHE

बिहारी (1595-1663)

बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। बिहारी रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। उनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। 1663 में इनका देहावसान हुआ। बिहारी की एक ही रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमें उनके लगभग 700 दोहे संगृहीत हैं।

लोक ज्ञान और शास्त्र ज्ञान के साथ ही बिहारी का काव्य ज्ञान भी अच्छा था। रीति का उन्हें भरपूर ज्ञान था। इन्होंने अधिक वर्ण्य सामग्री शृंगार से ली है। इनकी कविता शृंगार रस की है। बिहारी की भाषा शुद्ध ब्रज है पर है वह साहित्यिक। इनकी भाषा में पूर्वी प्रयोग भी मिलते हैं। बुंदेलखंड में अधिक दिनों तक रहने के कारण बुंदेलखंडी शब्दों का प्रयोग मिलना भी स्वाभाविक है।

बिहारी के दोहे

मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।

जा तन की झाई परै, स्यामु हरित-दुति होय।।


कोक कोटिक संग्रहों कोऊ लाख हजार।

सो सम्पति जदुपति सदर विपति विद्यारन हार।।


या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।

ज्यों-ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होइ।।


बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु।

भलौ भलौ कहि छोड़ियै, खोटै ग्रह जपु दानु।।


कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।

कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।


अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा सी देह।

दिया बढाऐं हूँ रहै बड़ौ उज्यारौ गेह।।