शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

THE MOUNTAIN MAN | मांझी | दशरद मांझी | नाटक | SCHOOL SCRIPT | फिल्म | MOTIVATION | DIRE TO DREAM

THE MOUNTAIN MAN | मांझी | दशरद मांझी | नाटक | SCHOOL SCRIPT | फिल्म | MOTIVATION | DIRE TO DREAM 

फिल्म: मांझी द माउंटेन मैन | अभिनीत: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राधिका आप्टे | निर्देशक: केतन मेहता | 21 अगस्त 2015

मांझी द माउंटेन मैन

1min Story review………..

यह फिल्म है बिहार के दशरथ मांझी की, जिन्होंने अकेले दम पर  22 सालों की कड़ी मेहनत से सिर्फ़ हथोड़े और छैनी की मदद से एक बड़ा पहाड़ काटकर रास्ता बना लिया और लगभग 70 किलोमीटर(km) की लंबी दूरी को सिर्फ एक किलोमीटर में समेट दिया। यह फिल्म पटना के गहलोरे गांव के दशरथ मांझी के वास्तविक जीवन पर आधारित है। यह फिल्म दशरथ मांझीके जूनून, प्रयास, कभी न हार मानने वाली ज़िद्द और आखिर में सफल होने की कहानी है। हालाँकि यह पूरी फिल्म बहुत ही प्रेरणादायक है जिसे देखने के बाद आप पूरी तरह मोटिवेशन से भर जाते हैं।

SCENE-1

(परदा खोलने के बाद.... एक मेला जैसा जन..... मुखिया के dress पर तीन या पाँच लोग /background music) तीन या पाँच लोग बैठकर बात कर रहे है......)

सब बराबर... सब बराबर..... सब बराबर... सब बराबर......। (नाचते..नाचते मेला आ रहे है)

सरकार ने कानून बना दिया है। सब बराबर.. सब बराबर.....। (नाचते..नाचते मेला आ रहे है)

दशरथ - यह सच्च है....... सब बराबर.....

(मेला GROUP) पात्र-1 अखबार में छपा है....... सब बराबर... सब बराबर.......।

(मुखिया GROUP) पात्र-2 गलती हो गयी यार....सरकार ने खास बात खतम कर रही है.....गिरिजनवासी और जमींदारी खतम....सब बराबर कह रहे है....

(मुखिया GROUP) पात्र-3 छोडिये मुखिया जी कानून कौन लागू करेगा.... (उसी समय दशरथ वहाँ पहुँचता है)

दशरथ - Good morning मुखिया जी कैसे है आप....आप बिलकुल बदले ही नही। अभी वही चमक...(गले लगाते है) (जोशभरी आवाज background music)

मुखिया - बहुवा माँफ करना पहचाना ही नही....

दशरथहमे दशरथ मबुल माथे की बेटा....

मुखिया हर चल...तूम.....हा हा हर चल..... (Music……)

दशरथ सबको सरकार बराबर कर दिया कि किसी को भी छू सकते है.....

(मुखिया GROUP) पात्र 1अरे दशरथ.....कौन सा बराबर......

(मुखिया GROUP) पात्र 2अरे न लायक.....कौन सा बराबर......

मुखिया सरकार बोलने पर माथे पर बैठेगा......(नाराज से background music) इतनी तुड़ाई करो कि जीवन भर अपनी जात की औकात न भूलें।.... (दशरथ को मारते है)

(दशरथ मार खाकर भाग जाता है.......)

SCENE-2

(दशरथ वहाँ से घर जाता है.....)

दशरथ - हाय... ये तो मेरी फगुनिया (बीबी) है? कैसे हो...तुम्हारे लिए ताजमहल लाया हूँ...

बीबी - इतनी छोटी....

दशरथ - हाह...हाह... यह तो हमारे पहाड़ जैसा बड़ा है। अच्छा एक बात बता दूँ.... हम शहर जायेंगे और कुछ काम कर खुश से रहेंगे।

बीबी - हम जानते हैं....खुश से रहेंगे।

दशरथ खूब कमायेंगे खुश से रहेंगे....

बीबी अभी मेरे लिए काम है....पहाड चढकर पानी लाना है.....

दशरथ चलो मैं भी तुम्हारे साथ आऊँगा।

बीबी न बाबा, तुम अपने काम देख लो।...(Music……)

(बीबी पहाड छडती है.......)

बीबी – (मन मे सोचती थी कि शहर में खुशी से रहेंगे....सब जगह घूमेंगे...नाचेंगे...

(उसी समय...पहाड से नीचे गिर जाती....) 

पात्र-1दशरथ तुम्हारी बीबी पहाड से गिर गई......

दशरथ हे भगवान.... क्या हो गया...

(music…. डाक्टर के पास ले जाते है......) (Time need here…)

डाक्टर बच्चा तो जिंदा है लेकिन.............

दशरथ – (रोता....रोता....कहता है......) पहाड की वजह से ही... पहाड की वजह से ही... फगुनिया.. मैं वादा करता हूँ...तुम्हारी हालत गाँव के किसी के साथ न होने दूँगा।... मैं पहाड को तोडकर रास्ता बनाऊँगा.....बहुत अकड़ है तोहरा में, देख कैसे उखाड़ते हैं अकड़ तेरी”.......

SCENE-3

(Background ब़डा पहाड... Stage पर कागज से बना पहाड......)

30sec.. Music……

उसी समय पत्थर तोडता दशरथ (dress मजदूरों की/ हवा चलने की आवाज background music)........

पात्र-1 – अरी चल दिया पहाड तोडे...अरे दो साल हो गया एक ही लोग आया मदद करे...एक दिन मरते रहना पहाड में....तो बनते रहना पहाड तुडवय्या...

(उसी समय पहाड के पास आकर खुद पहाड को देखकर दशरथ कहता है......)

दशरथ – हे फिर आ गये...सब राज्य कुषे...हाँ...आपको क्या लगता था, हम नही लौटेंगे.....जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं, बहुतै बड़ा दंगल चलेगा रे तोहर हमारा.....तैयार है.... हाँ. हाँ. हाँ. हाँ...तैयार है। (music……)

दशरथ – हमके रूलाकर हँसते है...हँसहँसहँसहँसहँस (फिर तोडना शुरू करते है) (पत्थर तोडने जैसा background music)

दशरथ – ये कासे कास बना दिया...हमको...कुछ गुनानी नही चाहते...ये तो दिक्कत है हम... पेलों से गुस गये हमारी कोपडिया में......कभी भी कही से शुरू हो जाते है...चल पडा...आगे पीछे पीछे आगे...नाचते रहता.... (music…) सब याद है....सब याद है।

(उसी समय दो आदमी दशरथ को मजाक उडाते कहते है कि अकेला पहाड तोडेगा.... हाँ.हाँ.हाँ.हाँ.हाँ.हाँ...) और कब तक... (dress मजदूरों की/ आश्चर्य से आवाज background music)

दशरथ : लोग कहते हैं कि हम पागल हैं.... जिंदगी खराब कर रहा है जब तक.....है टूटेगा नहीं...मैं हरेगा नहीं..!

SCENE–3

(उसी समय पत्रकार वहाँ पहुँचते है...... Background music....)

दशरथ मांझी उनसे कहते हैं – तुम अपना अखबार क्यों नहीं शुरू करते?

तो वह पत्रकार कहता है - अपना अखबार शुरू करना बहुत मुश्किल काम है।

तो दशरथ मांझी कहते हैं - "पहाड़ तोड़ने से भी ज़्यादा मुश्किल है"? हाँ.हाँ.हाँ.हाँ.हाँ.हाँ........

(music…..पत्थर तोडने जैसा....रास्ता बन गया....)

पत्रकार - दशरथ मांझी आप सूपर मेन है... एक बात बताईये...असंभव कार्य संभव करने के बाद क्या कहना चाहेंगे आप....

(पत्रकार और पूरे गाँव वालों से दशरथ कहता है कि.....

दशरथ : क्या बतायेंगे भय्या

पत्रकार कुछ तो कहिये....

दशरथ: भगवान के भरोसे मत बैठिये, क्या पता भगवान हमारे भरोसे बैठा हो! हाँ.हाँ.हाँ.हाँ.हाँ.हाँ...............(दिल से हँसता है.... Story end..)

(दशरथ ने 22 सालों की कड़ी मेहनत से एक बड़ा पहाड़ काटकर रास्ता बना लिया और लगभग 70 किलोमीटर(km) की लंबी दूरी को सिर्फ एक किलोमीटर में समेट दिया। यह एक सजीव कहानी है। अभी भी आप उस रास्ता देख सकते है। आदमी चाहे तो असंभव कार्य भी संभव कर सकता है इसका एक उदाहरम दशरथ माँझी.....)

******धन्यवाद******

रविवार, 20 नवंबर 2022

टिकट- अलबम | TICKET ALBUM | सुंदरा रामस्वामी | तमिल से अनुवाद : सुमति अय्यर | CBSE | Class 6 Hindi Chapter 9

टिकट- अलबम

सुंदरा रामस्वामी 
(तमिल से अनुवाद : सुमति अय्यर)

अब राजप्पा को कोई नहीं पूछता। आजकल सब-के-सब नागराजन को घेरे रहते। 'नागराजन घमंडी हो गया है', राजप्पा सारे लड़कों में कहता फिरता। पर लड़के भला कहाँ उसकी बातों पर ध्यान देते! नागराजन के मामा जी ने सिंगापुर से एक अलबम भिजवाया था। वह लड़कों को दिखाया करता। सुबह पहली घंटी के बजने तक सभी लड़के नागराजन को घेरकर अलबम देखा करते। आधी छुट्टी के वक्त भी उसके आसपास लड़कों का जमघट लगा रहता। कई लोग टोलियों में उसके घर तक हो आए। नागराजन शांतिपूर्वक सभी को अपना अलबम दिखाता, पर किसी को हाथ नहीं लगाने देता। अलबम को गोद में रख लेता और एक-एक पन्ना पलटता, लड़के बस देखकर खुश होते। 
और तो और कक्षा की लड़कियाँ भी उस अलबम को देखने के लिए उत्सुक थीं। पार्वती लड़कियों की अगुवा बनी और अलबम माँगने आई। लड़कियों में वही तेज़-तर्रार मानी जाती थी। नागराजन ने कवर चढ़ाकर अलबम उसे दिया। शाम तक लड़कियाँ अलबम देखती रहीं फिर उसे वापस कर दिया।

अब राजप्पा के अलबम को कोई पूछने वाला नहीं था। वाकई उसकी शान अब घट गई थी। राजप्पा के अलबम की लड़कों में काफ़ी तारीफ़ रही थी। मधुमक्खी की तरह . उसने एक-एक करके टिकट जमा किए थे। उसे तो बस एक यही धुन सवार थी। सुबह आठ बजे वह घर से निकल पड़ता। टिकट जमा करने वाले सारे लड़कों के चक्कर लगाता। दो ऑस्ट्रेलिया के टिकटों के बदले एक फिनलैंड का टिकट लेता। दो पाकिस्तान के बदले एक रूस का। बस शाम, जैसे ही घर लौटता, बस्ता कोने में पटककर अम्मा से चबेना लेकर निकर की जेब में भर लेता और खड़े-खड़े कॉफ़ी पीकर निकल जाता। चार मील दूर अपने दोस्त के घर से कनाडा का टिकट लेने पगडंडियों में होकर भागता। स्कूल भर में उसका अलबम सबसे बड़ा था। सरपंच के लड़के ने उसके अलबम को पच्चीस रुपए में खरीदना चाहा था, पर राजप्पा नहीं माना। 'घमंडी कहीं का', राजप्पा बड़बड़ाया था। फिर उसने तीखा जवाब दिया था, “तुम्हारे घर में जो प्यारी बच्ची है न, उसे दे दो न तीस रुपए में।" सारे लड़के ठहाका मारकर हँस पड़े थे।

पर अब? कोई उसके अलबम की बात तक नहीं करता। और तो और अब सब उसके अलबम की तुलना नागराजन के अलबम से करने लगे हैं। सब कहते हैं राजप्पा का अलबम फिसड्डी है। ed

पर राजप्पा ने नागराजन के अलबम को देखने की इच्छा कभी नहीं प्रकट की। लेकिन जब दूसरे लड़के उसे देख रहे होते तो वह नीची आँखों से देख लेता। सचमुच नागराजन का अलबम बेहद प्यारा था। पर राजप्पा के पास जितने टिकट थे उतने नागराजन के अलबम में नहीं थे। पर खुद उसका अलबम ही कितना प्यारा था। उसे छू लेना ही कोई बड़ी बात थी। इस तरह का अलबम थोड़ी मिलेगा। अलबम के पहले पृष्ठ पर मोती जैसे अक्षरों में उसके मामा ने लिख भेजा था-
ए. एम. नागराजन
'इस अलबम को चुराने वाला बेशर्म है। ऊपर लिखे नाम को कभी देखा है? यह अलबम मेरा है। जब तक घास हरी है और कमल लाल, सूरज जब तक पूर्व से उगे और पश्चिम में छिपे, उस अनंत काल तक के लिए यह अलबम मेरा है, रहेगा।'
लड़कों ने इसे अपने अलबम में उतार लिया। लड़कियों ने झट कापियों और किताबों में टीप लिया।
तुम लोग यह नकल क्यों करते हो? नकलची कहीं के", राजप्पा ने लड़कों को घुड़की दी। सब चुप रहे पर कृष्णन से नहीं रहा गया।
“जा, जा। जलता है, ईर्ष्यालु कहीं का।"
“मैं काहे को जलूँ? जले तेरा खानदान। मेरा अलबम उसके अलबम से कहीं बड़ा है। " राजप्पा ने शान बघारी।
“अरे, उसके पास जो टिकटें हैं, वह हैं कहीं तेरे पास? सब क्यों? बस एक इंडोनेशिया का टिकट दिखा दो। अरे, पानी भरोगे, हाँ।" कृष्णन ने छेड़ा।
"ठीक है, दस रुपए की शर्त। मेरे वाले टिकट दिखा दो।"
"पर मेरे पास जो टिकट है, वह कहाँ है उसके पास?" राजप्पा ने फिर ललकारा। “उसके पास जो टिकट है वही दिखा दो।" कृष्णन भी कम नहीं था। “तुम्हारा अलबम कूड़ा है" कृष्णन चीखा, "हाँ, हाँ कूड़ा।" लड़के जैसे कोरस गाने लगे।

राजप्पा को लगा, अपने अलबम के बारे में बातें करना फ़ालतू है। उसने कितनी मेहनत और लगन से टिकट बटोरे हैं। सिंगापुर से आए इस एक पार्सल ने नागराजन को एक ही दिन में मशहूर कर दिया। पर दोनों में कितना अंतर है! ये लड़के क्या समझेंगे! राजप्पा मन-ही-मन कुढ़ रहा था। स्कूल जाना अब खलने लगा था और लड़कों के सामने जाने में शर्म आने लगी। आमतौर पर शनिवार और रविवार को टिकट की खोज में लगा रहता, परंतु अब घर- घुसा हो गया था। दिन में कई बार अलबम को पलटता रहता। रात को लेट जाता। सहसा जाने क्या सोचकर उठता, ट्रंक खोलकर अलबम निकालता और एक बार पूरा देख जाता। उसे अलबम से चिढ़ होने लगी थी। उसे लगा, अलबम वाकई कूड़ा हो गया है।

उस दिन शाम उसने जैसे तय कर लिया था, वह नागराजन के घर गया। अब कोई कितना अपमान सहे! नागराजन के हाथ अचानक एक अलबम लगा है, बस यही ना। वह क्या जाने टिकट कैसे जमा किए जाते हैं! एक-एक टिकट की क्या कीमत होती है, वह भला क्या समझे! सोचता होगा टिकट जितना बड़ा होगा, वह उतना ही कीमती होगा। या फिर सोचता होगा, बड़े देश का टिकट कीमती होगा। वह भला क्या समझे!

उसके पास जितने भी फ़ालतू टिकट हैं उन्हें टरका कर, उससे अच्छे टिकट झाड़ लेगा। कितनों को तो उसने यूँ ही उल्लू बनाया है। कितनी चालबाजी करनी पड़ती है। नागराजन भला किस खेत की मूली है?

राजप्पा नागराजन के घर पहुँचकर ऊपर गया। चूँकि वह अकसर आया-जाया करता था, सो किसी ने नहीं टोका। ऊपर पहुँचकर वह नागराजन की मेज़ के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गया। कुछ देर बाद नागराजन की बहन कामाक्षी ऊपर आई।

"भैया शहर गया है। अरे हाँ, तुमने भैया का अलबम देखा?" उसने पूछा।
"हूँ", राजप्पा को हाँ कहने में हेकड़ी हो रही थी।
"बहुत सुंदर अलबम है ना? सुना है स्कूल भर में किसी के भी पास इतना बड़ा अलबम नहीं है।"
"तुमसे किसने कहा?"
"भैया ने।"
वह कुढ़ गया।

"बड़े से क्या मतलब हुआ? आकार में बड़ा हुआ तो अलबम बड़ा हो गया?" उसकी चिडचिडाहट साफ़ थी।

कामाक्षी कुछ देर तक वहीं रही। फिर नीचे चली गई। राजप्पा मेज पर बिखरी किताबों को टटोलने लगा। अचानक उसका हाथ दराज के ताले से टकरा गया। उसने ताले को खींचकर देखा। बंद था, क्यों न उसे खोलकर देख लिया जाए। मेज पर से उसने चाबी ढूँढ़ निकाली।

सीढ़ियों के पास जाकर उसने एक बार झाँककर देखा। फिर जल्दी में दराज़ खोली। अलबम ऊपर ही रखा हुआ था। पहला पृष्ठ खोला। उन वाक्यों को उसने दोबारा पढ़ा। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। अलबम को झट कमीज़ के नीचे खोंस लिया और दराज़ बंद कर दिया। सीढ़ियाँ उतरकर घर की ओर भागा।

घर जाकर सीधा पुस्तक की अलमारी के पास गया और पीछे की ओर अलबम छिपा दिया। उसने बाहर आकर झाँका पूरा शरीर जैसे जलने लगा था। गला सूख रहा था और चेहरा तमतमाने लगा था।

रात आठ बजे अपू आया। हाथ-पाँव हिलाकर उसने पूरी बात कह सुनाई। “सुना तुमने, नागराजन का अलबम खो गया। हम दोनों शहर गए हुए थे। लौटकर देखा तो अलबम गायब!' "

राजप्पा चुप रहा। उसने अपू को किसी तरह टाला। उसके जाते ही उसने झट कमरे का दरवाजा भिड़ा लिया और अलमारी के पीछे से अलबम निकालकर देखा। उसे फिर छिपा दिया। डर था कहीं कोई देख न ले।
रात में खाना नहीं खाया। पेट जैसे भरा हुआ था। सारा घर चिंतित हो गया। उसका चेहरा भयानक हो गया था।
रात, उसने सोने की कोशिश की पर नींद नहीं आई। अलबम सिरहाने तकिए के नीचे रखकर सो गया।

सुबह अपू दोबारा आया। राजप्पा तब भी बिस्तर पर बैठा था। अपू सुबह नागराजन के घर होकर आया था। "कल तुम उसके घर गए थे?" अपू ने पूछा।
राजप्पा की साँस जैसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई। फिर सिर हिला दिया। वह जिस तरह चाहे सोच ले ।

"कामाक्षी ने कहा था कि हमारे जाने के बाद खाली तुम वहाँ आए थे।"  अपू बोला। राजप्पा को समझते देर नहीं लगी कि अब सब उस पर शक करने लगे हैं। 

"कल रात से नागराजन लगातार रोए जा रहा है। उसके पापा शायद पुलिस को खबर दें।" अपू ने फिर कहा। 
राजप्पा फिर भी चुप रहा।

“उसके पापा डी.एस.पी. के दफ़्तर में ही तो काम करते हैं। बस वह पलक झपक दें और पुलिस की फ़ौज हाज़िर।" अपू जैसे आग में घी डाल रहा था। यह तो भला हुआ कि अपू का भाई उसे ढूँढ़ता हुआ आ गया और अपू चलता बना। राजप्पा के पापा दफ़्तर चले गए थे। बाहर का किवाड़ बंद था। राजप्पा अभी तक बिस्तर पर बैठा हुआ था। आधा घंटा गुज़र गया और वह उसी तरह बैठा रहा। 
तभी बाहर की साँकल खटकी।

'पुलिस', राजप्पा बुदबुदाया।

भीतर साँकल लगी थी। दरवाज़ा खटकने की आवाज़ तेज़ हो गई। राजप्पा ने तकिए के नीचे से अलबम उठाया और ऊपर भागा। अलमारी के पीछे छिपा दे? नहीं। पुलिस ने अगर तलाशी ली तो पकड़ा जाएगा। अलबम को कमीज़ के नीचे छिपाकर वह नीचे आ गया। बाहर का दरवाज़ा अब भी बज रहा था।

“कौन है? अरे दरवाज़ा क्यों नहीं खोलता?" अम्मा भीतर से चिल्लाई। थोड़ी देर और हुई तो अम्मा खुद ही उठकर चली आएँगी।

राजप्पा पिछवाड़े की ओर भागा। जल्दी से बाथरूम में घुसकर दरवाजा बंद कर लिया। अम्मा ने अँगीठी पर गरम पानी की देगची चढ़ा रखी थी। उसने अलबम को अँगीठी में डाल दिया। अलबम जलने लगा। कितने प्यारे टिकट थे। राजप्पा की आँखों में आँसू आ गए। तभी अम्मा की आवाज़ आई, "जल्दी से आ तो नहाकर नागराजन तुझे ढूँढ़ता हुआ आया है।" राजप्पा ने निकर उतार दी और गीला तौलिया लपेटकर बाहर आ गया। कपड़े बदलकर वह ऊपर गया। नागराजन कुरसी पर बैठा हुआ था। उसे देखते ही बोला, “मेरा अलबम खो गया है यार।" उसका चेहरा उतरा हुआ था। काफ़ी रोकर आया था शायद ।।

"कहाँ रखा था तुमने?" राजप्पा ने पूछा।

" शायद दराज़ में। शहर से लौटा तो गायब।"

नागराजन की आँखों में आँसू आ गए। राजप्पा से चेहरा बचाकर उसने आँखें पोंछ लीं। “रो मत यार।" राजप्पा ने उसे पुचकारा। वह फफक-फफक कर रो दिया।

राजप्पा झट नीचे उतरकर गया। एक मिनट में वह ऊपर नागराजन के सामने था। उसके हाथ में उसका अपना अलबम था।

"लो यह रहा मेरा अलबम अब इसे तुम रख लो। ऐसे क्यों देख रहे हो। मजाक नहीं कर रहा। सच कहता हूँ, इसे अब तुम रख लो।”

'बहला रहे हो यार।"
नागराजन को जैसे यकीन नहीं आया।

"नहीं यार। सचमुच तुमको दे रहा हूँ। रख लो।”

राजप्पा भला अपना अलबम उसे दे दे! कैसा चमत्कार है! नागराजन को अब भी यकीन नहीं आ रहा था। पर राजप्पा अपनी बात बार-बार दोहरा रहा था। उसका गला भर आया था।

“ठीक है, मैं इसे रख लेता हूँ। पर तुम क्या करोगे?"

“मुझे नहीं चाहिए।"

“क्यों, तुम्हें एक भी टिकट नहीं चाहिए?" "नहीं।"

"पर तुम कैसे रहोगे बगैर किसी टिकट के?"

'रोता क्यों है यार!"

फूट-फूटकर रो दिया।

"ले. इस अलबम को तू ही रख ले। इतनी मेहनत की है तूने।" नागराजन बोला। “नहीं, तुम रख लो। लेकर चले जाओ। जाओ, चले जाओ यहाँ से।" वह चीखा और नागराजन की समझ में कुछ नहीं आया। वह अलबम लेकर नीचे उतर गया। कमीज से आँखें पोंछता हुआ राजप्पा भी नीचे उतर आया। दोनों साथ-साथ दरवाजे तक आए।

"बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं घर चलूँ?" नागराजन सीढ़ियाँ उतरने लगा।

"सुनो राजू", राजप्पा ने पुकारा। नागराजन ने उसे पलटकर देखा। "अलबम दे दो। मैं आज रात जी भरकर इसे देखना चाहता हूँ। कल सुबह तुम्हें दे जाऊँगा।"

"ठीक है।" नागराजन ने उसे अलबम लौटा दी और चला गया। राजप्पा ऊपर आया। उसने दरवाजा बंद कर लिया और अलबम को छाती से लगाकर फूट-फूटकर रो दिया।

सुंदरा रामस्वामी (तमिल से अनुवाद : सुमति अय्यर)