शनिवार, 5 मार्च 2022

सीताराम सेकसरिया | SITARAM SEKSARIA | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

सीताराम सेकसरिया

(1892-1982)

1892 में राजस्थान के नवलगढ़ में जन्मे सीताराम सेकसरिया का अधिकांश जीवन कलकत्ता (कोलकाता) में बीता। व्यापार-व्यवसाय से जुड़े सेकसरिया अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक, संस्थापक, संचालक रहे। महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के करीबी रहे। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल यात्रा भी की। कुछ साल तक आज़ाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया।

सीताराम सेकसरिया को विद्यालयी शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिला। स्वाध्याय से ही पढ़ना-लिखना सीखा। स्मृतिकण, मन की बात, बीता युग, नयी याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी उनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।

अंतोन चेखव | ANTON CHEKHOV | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

अंतोन चेखव

(1860-1904)

दक्षिणी रूस के तगनोर नगर में 1860 में जन्मे अंतोन चेखव ने शिक्षा काल में ही कहानियाँ लिखना आरंभ कर दिया था। उन्नीसवीं सदी का नौवाँ दशक रूस के लिए एक कठिन समय था। यह वह समय था जब आज़ाद खयाल होने से ही लोग शासन के दमन का शिकार हो जाया करते थे। ऐसे समय में चेखव ने उन मौकापरस्त लोगों को बेनकाब करती कहानियाँ लिखीं जिनके लिए पैसा और पद ही सब कुछ था।

चेखव सारे संसार के चहेते लेखक माने जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इनकी नज़र में सत्य ही सर्वोपरि रहा। सत्य के प्रति आस्था और निष्ठा, यही चेखव की धरोहर है। चेखव की प्रमुख कहानियाँ हैं - गिरगिट, क्लर्क की मौत, वान्का, तितली, एक कलाकार की कहानी, घोंघा, इओनिज, रोमांस, दुलहन। प्रसिद्ध नाटक हैं - वाल्या मामा, तीन बहनें, सीगल और चेरी का बगीचा।

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

मीराबाई | MEERA BAI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

मीरा

(1503-1546)

मीराबाई का जन्म जोधपुर के चोकड़ी (कुड़की) गाँव में 1503 में हुआ माना जाता है। 13 वर्ष की उम्र में मेवाड़ के महाराणा सांगा के कुँवर भोजराज उनका विवाह हुआ। उनका जीवन दुखों की छाया में ही बीता। बाल्यावस्था में ही माँ का देहांत हो गया था। विवाह के कुछ ही साल बाद पहले पति, फिर पिता और एक युद्ध के दौरान श्वसुर का भी देहांत हो गया। भौतिक जीवन से निराश मीरा ने घर-परिवार त्याग दिया और वृंदावन में डेरा डाल पूरी तरह गिरधर गोपाल कृष्ण के प्रति समर्पित हो गई।

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की आध्यात्मिक प्रेरणा ने जिन कवियों को जन्म दिया उनमें मीराबाई का विशिष्ट स्थान है। इनके पद पूरे उत्तर भारत सहित गुजरात, बिहार और बंगाल तक प्रचलित हैं। मीरा हिंदी और गुजराती दोनों की कवयित्री मानी जाती हैं।

संत रैदास की शिष्या मीरा की कुल सात-आठ कृतियाँ ही उपलब्ध हैं। मीरा की भक्ति दैन्य और माधुर्यभाव की है। इन पर योगियों, संतों और वैष्णव भक्तों का सम्मिलित प्रभाव पड़ा है। मीरा के पदों की भाषा में राजस्थानी ब्रज और गुजराती का मिश्रण पाया जाता है। वहीं पंजाबी, खड़ी बोली और पूर्वी के प्रयोग भी मिल जाते हैं।

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

हरिशंकर परसाई | HARISHANKAR PARSAI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

हरिशंकर परसाई


1922 1995

हरिशंकर परसाई का जन्म जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद,मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया। कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात सन् 1947 से वे स्वतंत्र लेखन में जुट गए। उन्होंने जबलपुर से वसुधा नामक साहित्यिक पत्रिका निकाली। परसाई ने व्यंग्य विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान की। उनके व्यंग्य-लेखों की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे समाज में आई विसंगतियों, विडंबनाओं पर करारी चोट करते हुए चिंतन और कर्म की प्रेरणा देते हैं। उनके व्यंग्य गुदगुदाते हुए पाठक को झकझोर देने में सक्षम हैं।

भाषा-प्रयोग में परसाई को असाधारण कुशलता प्राप्त है। वे प्राय: बोलचाल के शब्दों का प्रयोग सतर्कता से करते हैं। कौन सा शब्द कब और कैसा प्रभाव पैदा करेगा इसे वे बखूबी जानते थे।

परसाई ने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है, जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का ज़माना, सदाचार की तावीज़, शिकायत मुझे भी है, और अंत में (निबंध-संग्रह); वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर (व्यंग्य-लेख संग्रह)। उनका समग्र साहित्य परसाई रचनावली के रूप में छह भागों में प्रकाशित है।

पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' | PANDEY BECHAN SHARMA | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन

पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'


(सन् 1900-1967)

पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' का जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के चुनार नामक ग्राम में हुआ था। परिवार में अभावों के कारण उन्हें व्यवस्थित शिक्षा पाने का सुयोग नहीं मिला। मगर अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और साधना से उन्होंने अपने समय के अग्रणी गद्य शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाई। अपने तेवर और शैली के कारण उग्र जी अपने समय के चर्चित लेखक रहे। अपने कवि मित्र निराला की तरह उन्हें भी पुरातनपंथियों के कठोर विरोध का सामना करना पड़ा।

पत्रकारिता से उग्र जी का सक्रिय संबंध था। वे आज, विश्वमित्र, स्वदेश, वीणा, स्वराज्य और विक्रम के संपादक रहे, लेकिन मतवाला-मंडल के प्रमुख सदस्य के रूप में उनकी विशेष पहचान है।

उग्र जी ने शताधिक कहानियाँ लिखी हैं जो पंजाब की महारानी, रेशमी, पोली इमारत, चित्र-विचित्र, कंचन-सी काया, काल कोठरी, ऐसी होली खेलो लाल, कला का पुरस्कार आदि में संकलित हैं। उन्होंने चंद हसीनों के खतूत, बुधुआ की बेटी, दिल्ली का दलाल, मनुष्यानंद आदि अनेक यथार्थवादी उपन्यासों की रचना भी की। कहानी और उपन्यास के अतिरिक्त आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र आदि के क्षेत्रों में भी उनकी लेखनी गतिशील रही। उनकी आत्मकथा अपनी खबर साहित्य जगत बहुचर्चित है। उन्होंने महात्मा ईसा (नाटक) और ध्रुवधारण (खंडकाव्य) की भी रचना की है।

उग्र जी की कहानियों की भाषा सरल, अलंकृत और व्यावहारिक है, जिसमें उर्दू के व्यावहारिक शब्द अनायास ही आ जाते हैं। भावों को मूर्तिमंत करने इनकी भाषा अत्यधिक सजीव और सशक्त कही जा सकती है, पाठक के मर्मस्थल पर सीधा प्रहार करती है। भावों के अनुरूप इनकी शैली भी व्यंग्यपरक है। इनकी कहानियों में उसकी माँ, शाप, कला का पुरस्कार, जल्लाद और देशभक्त आदि विशेष प्रसिद्ध हैं।

ओमप्रकाश वाल्मीकि | OM PRAKASH VALMIKI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

ओमप्रकाश वाल्मीकि

(सन् 1950-2013)

ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म बरला, जिला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े।

वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। वे देहरादून स्थित आप्टो इलैक्ट्रॉनिक्स फ़ैक्टरी (ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्रीज़, भारत सरकार) में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे। बाद में सेवानिवृत्त हो गए। सन् 2013 में अस्वस्थ हो गए और दिल्ली में ही उन्होंने अंतिम साँस ली।

हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि दलित ही दलित की पीड़ा को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है। उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रुचि है। अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें सन् 1993 में डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सन् 1995 में परिवेश सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। जूठन के अंग्रेजी संस्करण को न्यू इंडिया बुक पुरस्कार, 2004 प्रदान किया गया।

उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - सदियों का संताप, बस! बहुत हो चुका (कविता संग्रह); सलाम, घुसपैठिये (कहानी संग्रह), दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र तथा जूठन (आत्मकथा)|