सोमवार, 30 जनवरी 2017

आजकल - अजयकुमार

 आजकल….


कैसे निज़ाम है इस शहर में आजकल

बाहर से ज्यादा खतरा है घर में आजकल

अखबार पढके लगता है, शहरों का मुकद्दर

जैसे हो शिव की तीसरी नजर में आजकल

सुबह का गया शाम को लौटे न जब तलक

आता सुकून जर नहीं जिगर में आजकल

इतनी अदावतें है जमाने को मुझसे क्यों

आता है मेरा नाम हर खबर में आजकल

हम तो लगाके तरकीब और तरतीब थक गये

फिर भी नसीब अपना है भंवर में आजकल

मौला ! चुनावी खेल भी आता नहीं समझ

हुक्काम मिल रहे हैं रह - गुज़र में आजकल

दे दे के हारा पर, न टली उसकी बलाएं

रिश्ता खतम है, दुआ और असर में आजकल

उम्मदी की हवा करे मौसम को खुशगवार

पत्ते नये आने लगे शजर में आजकल

इंसान अपनी ख्वाहिशों का खुद शिकार है


सोता नहीं अजेय किसी पहर में आजकल....


Mr. AJAY KUMAR,
Education Officer (EO)
UGC.

रविवार, 29 जनवरी 2017

आदिकाल : नामकरण एवं सीमा निर्धारण

आदिकाल : नामकरण एवं सीमा निर्धारण

इस वीडियो में आदिकाल के नामकरण एवं सीमा निर्धारण की कठिनाइयों को समझाया।

*** मुख्यतः आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. रसाल द्वारा किया गया नामकरण उचित समझते है।

*** आचार्य रामचंद्रशुक्ल द्वारा निर्धारित अंतिम समय सीमा सन् 1318 तक उचित मानते है।

*** मिश्रबंधु – आदिकाल को प्रारंभिक काल माना।

*** ग्रियर्सन – आदिकाल को चारणकाल माना।

*** आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. रसाल - आदिकाल माना।

*** रामकुमार वर्मा – संधिकाल,चारणकाल कहा।

*** राहुल सांकृत्यायन सिद्ध सामंतकाल माना।

*** विश्वनाथ प्रसाद मिश्र – वीरगाथाकाल माना।

*** आचार्य रामचंद्रशुक्ल – आदिकाल को वीरगाथा काल माना।

*** आचार्य रामचंद्रशुक्ल ने जिन बारह ग्रन्थों को आधार माना – वे इस प्रकार है।

1. विजयपाल रासो (नल्लसिंह – संवत् 1355)

2. खुमानरासो (दलपति विजय – संवत् 1180-1205)

3. बीसलदेव रासो (नरपति नाल्हा – संवत् 1292)

4. पुथ्वीराज रासो (चंदबरदाई – संवत् 1225 – 1249)

5. जयचंद्र प्रकाश ( भट्टकेदार – संवत् 1225)

6. जयमयंक जस चंद्रिका ( मधुकर कवि – संवत् 1240)

7. हम्मीररासो (शाङगंधर – संवत् 1375)

8. परमालरासो ( जगनिक – संवत् 1230)

9. कीर्तिलता ( विद्यापति – संवत् 1460)

10. कीर्तिपताका (विद्यापति – संवत् 1460)

11. विद्यापति पदावली ( विद्यापति – संवत् 1460)

12. खुसरो की पहेलियाँ (अमीर खुसरो – संवत् 1330)


 

हिन्दी भाषा और साहित्य का आरंभ (मध्यकालीन काव्य)

हिन्दी भाषा और साहित्य का आरंभ

               हिन्दी भाषा और साहित्य का आरंभ (मध्यकालीन काव्य)

          
                इस वीडियो से हिन्दी भाषा के शुरूवत से परिचय करवाकर, हिन्दी साहित्य के आरंभ की प्रवृत्तियों से अवगत कराना मुख्य उद्देश्य है। 

*** हिन्दी भाषा का आरंभ की जडे अवहट्ठ, अपभ्रंश, प्राकृत, पालि से लेकर संस्कृत भाषा तक फैली मानी जाती है।

 *** संस्कृत को प्राचीन आर्यभाषा, पालि-प्राकृत-अपभ्रंश के मध्यकालीन आर्यभाषा और हिन्दी – गुजराती – मराठी – बंगला आदि को आधुनिक आर्यभाषा माना जाता है। 

*** अनेक भाषा वैज्ञानिक हिन्दी को सिंधी का ईरानी भाषा रूपांतरण मानते है। उत्तर भारत में हिन्दी से अधिक हिंदवी नाम का प्रचलन था। अमीर खुसरो जैसे कवियों ने मध्यदेश की भाषा के वजह से हिंदवी का नाम लिया है। 

*** अपभ्रंश की मिलावट तो सबकी भाषा में है, शुक्ल जी इसी को देशभाषा मिश्रित अपभ्रंश कहते है। 

*** इसी के समानांतर ब्रज, अवधी, मैथिली आदि प्रादेशिक भाषाओं में साहित्य मिलते हैं। इसके जरिये हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध बनाता है। 

*** डॉ. रामविलास शर्मा(आलोचक) – हिन्दी सहित्य के शुरूवत को हिन्दी जाती के गठन से जोडकर देखते है। 

*** हिन्दी साहित्य के निर्माण में हिन्दू-मुस्लिम दोंनों का योगदान है। 

*** अंत में कह सकते है कि हिन्दी साहित्य का रूढ़ अर्थ खडीबोली का साहित्य रह गया है। उर्दू, हिन्दुस्तानी को भी वह पीछे छोडकर अपने विकासपथ पर हिन्दी अग्रसर है।