शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

विद्यापति | VIDYAPATHI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

विद्यापति

(सन् 1380-1460)

विद्यापति का जन्म मधुबनी (बिहार) के बिस्पी गाँव के एक ऐसे परिवार में हुआ जो विद्या और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। उनके जन्मकाल के संबंध में प्रामाणिक सूचना उपलब्ध नहीं है। उनके रचनाकाल और आश्रयदाता के राज्यकाल के आधार पर उनके जन्म और मृत्यु वर्ष का अनुमान किया गया है। विद्यापति मिथिला नरेश राजा शिवसिंह के अभिन्न मित्र, राजकवि और सलाहकार थे।

विद्यापति बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और तर्कशील व्यक्ति थे। साहित्य, संस्कृति, संगीत, ज्योतिष, इतिहास, दर्शन, न्याय, भूगोल आदि के वे प्रकांड पंडित थे। उन्होंने संस्कृत, अवहट्ट (अपभ्रंश) और मैथिली-तीन भाषाओं में रचनाएँ कीं। इसके अतिरिक्त उन्हें और भी कई भाषाओं-उपभाषाओं का ज्ञान था।

वे आदिकाल और भक्तिकाल के संधिकवि कहे जा सकते हैं। उनकी कीर्तिलता और कीर्तिपताका जैसी रचनाओं पर दरबारी संस्कृति और अपभ्रंश काव्य परंपरा का प्रभाव है तो उनकी पदावली के गीतों में भक्ति और शृंगार की गूँज है। विद्यापति की पदावली ही उनके यश का मुख्य आधार है। वे हिंदी साहित्य के मध्यकाल पहले ऐसे कवि हैं जिनकी पदावली में जनभाषा में जनसंस्कृति की अभिव्यक्ति हुई है।

मिथिला क्षेत्र के लोक-व्यवहार में और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में उनके पद इतने रच-बस गए हैं कि पदों की पंक्तियाँ अब वहाँ के मुहावरे बन गई हैं। पद लालित्य, मानवीय प्रेम और व्यावहारिक जीवन के विविध रंग इन पदों को मनोरम और आकर्षक बनाते हैं। राधा-कृष्ण के प्रेम के माध्यम से लौकिक प्रेम के विभिन्न रूपों का चित्रण, स्तुति-पदों में विभिन्न देवी-देवताओं की भक्ति, प्रकृति संबंधी पदों में प्रकृति की मनोहर छवि रचनाकार के अपूर्व कौशल, प्रतिभा और कल्पनाशीलता के परिचायक हैं। उनके पदों में प्रेम और सौंदर्य की अनुभूति की जैसी निश्छल और प्रगाढ़ अभिव्यक्ति है हुई है वह अन्यत्र दुर्लभ है।

उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं-कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पुरुष परीक्षा, भू-परिक्रमा, लिखनावली और पदावली।

मलिक मुहम्मद जायसी | MALIK MUHAMMAD JAYASI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

मलिक मुहम्मद जायसी

(सन् 1492-1542)

मलिक मुहम्मद जायसी अमेठी (उत्तर प्रदेश) के निकट जायस के रहने वाले थे। इसी कारण वे जायसी कहलाए। वे अपने समय के सिद्ध और पहुँचे हुए फ़कीर माने जाते थे। उन्होंने सैयद अशरफ और शेख बुरहान का अपने गुरुओं के रूप में उल्लेख किया है।

जायसी सूफ़ी प्रेममार्गी शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं और उनका पद्मावत प्रेमाख्यान परंपरा का सर्वश्रेष्ठ प्रबंधकाव्य है। भारतीय लोककथा पर आधारित इस प्रबंधकाव्य में सिंहल देश की राजकुमारी पद्मावती और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के प्रेम की कथा है। जायसी ने इसमें लौकिक कथा का वर्णन इस प्रकार किया है कि अलौकिक और परोक्ष सत्ता का आभास होने लगता है। इस वर्णन में रहस्य का गहरा पुट भी मिलता है। प्रेम का यह लोकधर्मी स्वरूप मानवमात्र के लिए प्रेरणादायी है।

फ़ारसी की मसनवी शैली में रचित बराबर चलती रहती है। स्थान-स्थान पर काव्य की कथा सर्गों या अध्यायों में बँटी हुई नहीं है, के रूप में घटनाओं और प्रसंगों का उल्लेख अवश्य है। जायसी ने इस काव्य-रचना के लिए दोहा-चौपाई की शैली अपनाई है। भाषा उनकी ठेठ अवधी है और काव्य-शैली अत्यंत प्रौढ़ और गंभीर। जायसी की कविता का आधार लोकजीवन का व्यापक अनुभव है। उनके द्वारा प्रयुक्त उपमा, रूपक, लोकोक्तियाँ, मुहावरे यहाँ तक कि पूरी काव्य-भाषा पर ही लोक संस्कृति का प्रभाव है जो उनकी रचनाओं को नया अर्थ और सौंदर्य प्रदान करता है।

पद्मावत, अखरावट और आखिरी कलाम जायसी की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं, जिनमें पद्मावत उनकी प्रसिद्धि का प्रमुख आधार है।

घनानंद | GHANANAND | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

घनानंद

(सन् 1673-1760)

रीतिकाल के रीतिमुक्त या स्वच्छंद काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि घनानंद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। कहते हैं कि सुजान नाम की एक स्त्री से उनका अटूट प्रेम था। उसी के प्रेम के कारण घनानंद बादशाह के दरबार में बे-अदबी कर बैठे, जिससे नाराज़ होकर बादशाह ने उन्हें दरबार से निकाल दिया। साथ ही घनानंद को सुजान की बेवफ़ाई ने भी निराश और दुखी किया। वे वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदाय में दीक्षित होकर भक्त के रूप में जीवन-निर्वाह करने लगे। परंतु वे सुजान को भूल नहीं पाए और अपनी रचनाओं में सुजान के नाम का प्रतीकात्मक प्रयोग करते हुए काव्य-रचना करते रहे। घनानंद मूलतः प्रेम की पीड़ा के कवि हैं। वियोग वर्णन में उनका मन अधिक रमा है। उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय, और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप व्यक्त हुआ है, इसीलिए घनानंद को साक्षात रसमूर्ति कहा गया है।

घनानंद के काव्य में भाव की जैसी गहराई है, वैसी ही कला की बारीकी भी। उनकी कविता में लाक्षणिकता, वक्रोक्ति, वार्गवदग्धता के साथ अलंकारों का कुशल प्रयोग भी मिलता है। उनकी काव्य-कला में सहजता के साथ वचन-वक्रता का अद्भुत मेल है।

घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रजभाषा है। उसमें कोमलता और मधुरता का चरम विकास दिखाई देता है। भाषा की व्यंजकता बढ़ाने में वे अत्यंत कुशल थे। वस्तुतः वे ब्रजभाषा प्रवीण ही नहीं सर्जनात्मक काव्यभाषा के प्रणेता भी थे। घनानंद की रचनाओं में सुजान सागर, विरह लीला, कृपाकंड निबंध, रसकेलि वल्ली आदि प्रमुख हैं।

निर्मल वर्मा | NIRMAL VERMA | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

निर्मल वर्मा

(सन् 1929-2005)

निर्मल वर्मा का जन्म शिमला (हिमाचल प्रदेश) में - दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कालेज से इतिहास में हुआ। उन्होंने एम.ए. किया और अध्यापन कार्य करने लगे। चेकोस्लोवाकिया के प्राच्य विद्या संस्थान प्राग के निमंत्रण पर सन् 1959 में वहाँ गए और चेक उपन्यासों तथा कहानियों का हिंदी अनुवाद किया।

निर्मल वर्मा को हिंदी के समान ही अंग्रेज़ी पर भी अधिकार प्राप्त था। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया तथा हिंदुस्तान टाइम्स के लिए यूरोप की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर अनेक लेख और रिपोर्ताज लिखे हैं जो उनके निबंध संग्रहों में संकलित हैं। सन् 1970 में वे भारत लौट आए और स्वतंत्र लेखन करने लगे।

निर्मल वर्मा का मुख्य योगदान हिंदी कथा-साहित्य के क्षेत्र में है। वे नयी कहानी आंदोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कव्वे और काला पानी, बीच बहस में, सूखा तथा अन्य कहानियाँ आदि कहानी-संग्रह और वे दिन, लाल टीन की छत, एक चिथड़ा सुख तथा अंतिम अरण्य उपन्यास इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। रात का रिपोर्टर जिस पर सीरियल तैयार किया गया है, उनका उपन्यास है। हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उठती धुन में उनके यात्रा संस्मरण संकलित हैं। शब्द और स्मृति तथा कला का जोखिम और ढलान से उतरते हुए उनके निबंध-संग्रह हैं, जिनमें विविध विषयों का विवेचन मिलता है। सन् 1985 में कव्वे और काला पानी पर उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

निर्मल वर्मा की भाषा-शैली में एक ऐसी अनोखी कसावट है, जो विचार-सूत्र की गहनता को विविध उद्धरणों से रोचक बनाती हुई विषय का विस्तार करती है। शब्दचयन में जटिलता न होते हुए भी उनकी वाक्य-रचना में मिश्र और संयुक्त वाक्यों की प्रधानता है। स्थान-स्थान पर उन्होंने उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा-शैली में अनेक नवीन प्रयोगों की झलक मिलती है।

असगर वजाहत | ASGHAR WAJAHAT | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

असगर वजाहत

(जन्म सन् 1946)

असगर वजाहत का जन्म फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा फतेहपुर में हुई तथा विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की। सन् 1955-56 से ही असगर वजाहत ने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ में उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य किया, बाद में वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। वजाहत ने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा लघुकथा तो लिखी ही हैं, साथ ही उन्होंने फ़िल्मों और धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन का काम भी किया है।

उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल और सब कहाँ कुछ, आधी बानी, मैं हिंदू हूँ (कहानी संग्रह), फिरंगी लौट आए, इन्ना की आवाज़, वीरगति, समिधा, जिस लाहौर नई देख्या तथा अकी (नाटक) सबसे सस्ता गोश्त (नुक्कड़ नाटकों) का संग्रह और रात में जागने वाले, पहर दोपहर तथा सात आसमान, कैसी आगि लगाई (प्रमुख उपन्यास)।

असगर वजाहत की भाषा में गांभीर्य, सबल भावाभिव्यक्ति एवं व्यंग्यात्मकता है। मुहावरों तथा तद्भव शब्दों के प्रयोग से उसमें सहजता एवं सादगी आ गई है। असगर वजाहत ने गज़ल की कहानी वृत्तचित्र का निर्देशन किया है तथा बूँद-बूँद धारावाहिक का लेखन भी किया है।

ममता कालिया | MAMTA KALIA | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

ममता कालिया

(जन्म सन् 1940)

ममता कालिया का जन्म मथुरा उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी शिक्षा के कई पड़ाव रहे जैसे नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी विषय से एम.ए. किया एम.ए. करने के बाद सन् 1963-1965 तक दौलत राम कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्राध्यापिका रहीं। 1966 से 1970 तक एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में अध्यापन कार्य, फिर 1973 से 2001 तक महिला सेवा सदन डिग्री कालेज, इलाहाबाद में प्रधानाचार्य रहीं। 2003 से 2006 तक भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता की निदेशक रहीं। वर्तमान में नयी दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही हैं।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं-बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ दौड़ आदि (उपन्यास) हैं तथा 12 कहानी संग्रह प्रकाशित हैं जो संपूर्ण कहानियाँ नाम से दो खंडों में प्रकाशित हैं। हाल ही में उनके दो कहानी-संग्रह और प्रकाशित हुए हैं, जैसे पच्चीस साल की लड़की, थियेटर रोड के कौवे।

कथा-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से साहित्य भूषण 2004 में तथा वहीं से कहानी सम्मान 1989 में प्राप्त हुआ। उनके समग्र साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता ने रचना पुरस्कार भी दिया। इसके अतिरिक्त उन्हें सरस्वती प्रेस तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी प्राप्त है।

ममता कालिया शब्दों की पारखी हैं। उनका भाषाज्ञान अत्यंत उच्चकोटि का है। साधारण शब्दों में भी अपने प्रयोग से जादुई प्रभाव उत्पन्न कर देती हैं। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति उनकी खासियत है। व्यंग्य की सटीकता एवं सजीवता से भाषा में एक अनोखा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। अभिव्यक्ति की सरलता एवं सुबोधता उसे विशेष रूप से मर्मस्पर्शी बना देती है।