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बुधवार, 16 जनवरी 2019

हिन्दी साहित्य का इतिहास – हिन्दी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा

हिन्दी साहित्य का इतिहास – हिन्दी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा 

*** हिन्दी साहित्य का इतिहास सन्1000 से प्रारम्भ होकर वर्तमान काल तक विकासशील इतिहास है।

*** साहित्य की विषय-वस्तु में भी परिवर्तन हुआ, कई विधाओं का उदय हुआ, कई शैलियाँ विकसित हुई।

*** काल की प्रवृत्ति विशेष को समझना ........

*** इस युग में धार्मिक दृष्टि से इस्लाम के साथ-साथ हिन्दू, बौद्ध और नाथ-सिद्ध भी थे....

*** इस काल में हेमचंद्र, अमीर खुसरो, चन्दबरदाई, जगनिक मुल्ला दाऊद, विद्यापति आदि उपस्थित थे।

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

हिन्दी साहित्य का इतिहास – भक्ति के उदय और विकास

हिन्दी साहित्य का इतिहास – भक्ति के उदय और विकास 

इस वीडियो के माध्यम से भक्ति के उदय और विकास का स्वरूप, भक्ति साहित्य की विविध प्रवृत्तियाँ, निर्गुण और सगुण भक्ति साहित्य का अन्तर, हिन्दी साहित्य के विकास में भक्ति साहित्य की भूमिका और उसका महत्व समझ सकेंगे।

*** भक्ति का उदय दक्षिण में आलवार भक्तों द्वारा हुआ, किन्तु इसके पीछे एक सामाजिक-दार्शनिक आधार भी मौजूद था। भक्ति का बाह्य और आन्तरिक स्वरूप सुनिचित करने में चार आचार्य मुख्य थे - रामानुज, मध्वाचार्य, निम्बार्क और वल्लभाचार्य

*** निर्गुण राम के उपासकों में कबीर, तथा नानक जैसे भक्त हुए तो सगुण राम की लोकमंगलकारी लीलाओं के उपासक तुलसीदास हुए।

*** वात्सल्य और प्रेम का वर्णन करने वाले सूरदास जैसे भक्त हुए। इसके साथ ही इस्लाम की सूफी काव्य-परम्परा और भारत के नाथपन्थियों से प्रभाव ग्रहण कर हिन्दी में सूफी काव्य भी लिखे गए। सूफी कवियों ने भारतीय लोक-कथाओं पर आधारित प्रबन्ध काव्यों की रचना की है, मुल्ला दाऊद का चन्दायन तथा जायसी का पद्मावत आदि उदाहरण स्वरूप देखा जा सकता है।

*** हिन्दी के भक्ति साहित्य की लगभग चार सौ वर्षों की विराट चिन्तन परम्परा ने कबीर, नानक, सुर, तुलसी, जायसी और मीरा बाई जैसे महान भक्तों को जन्म दिया।
जय हिन्दी – जय भारत

सोमवार, 7 जनवरी 2019

हिन्दी साहित्य का इतिहास - रासो साहित्य की परम्परा

हिन्दी साहित्य का इतिहास - रासो साहित्य की परम्परा

*** रास, रासक या रासो के स्वरूप से परिचित करवाना.... प्रमुख रासो ग्रंथों से परिचित करवाना और रासो ग्रन्थों की विशेषताएँ समझाना आदि।

*** आचार्य रामचंद्रशुक्ल जी ने रासो काव्य परम्परा के कारण इस काल को वीरगाथा काल के नाम से अभिहित किया।

*** आदिकालीन साहित्य में रासो की परम्परा दो रूपों में विकसित हुई है – नृत्य-गीतपरक धारा और छंद वैविध्यपरक धारा।

*** रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो सर्वश्रेष्ठ रचना है। कवि ने वीर और श्रृंगार रस का जैसा मार्मिक वर्णन इस ग्रन्थ में किया है, अन्य दुर्लभ है।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

हिन्दी साहित्य का इतिहास - हिन्दी साहित्य की पृष्ठभूमि


हिन्दी साहित्य का इतिहास - हिन्दी साहित्य की पृष्ठभूमि 



 *** हिन्दी साहित्य की पृष्ठभूमि के दो पक्ष हो सकते है। एक तो तात्कालिक पृष्ठभूमि, जिसके अंतर्गत उन समसामयिक प्रभावों और दबावों का विवेचन किया जाता है, जिनके भीतर रहते हुए साहित्य की रचना होती है। दूसरे, पीछे से चली आती वे पूर्व-परम्पराएँ, जिन्होंने जातीय मानसिकता का निर्माण किया। जातीय मानसिकता साहित्य को रचती है और उसमें अभिव्यक्ति भी होती है। इस संदर्भ में पृष्ठभूमि के अध्ययन का अर्थ इस्लाम के भारत-प्रवेश के पहले से चली आती परम्परा के उन घटकों का अध्ययन है, जो ‘भारतीय चिंता का स्वाभाविक विकास’ कहे जा सकते हैं। 

*** हिन्दी साहित्य के आदिकाल ने अपनी पृष्ठभूमि से इस विषयवस्तु और संवेदना की विरासत के साथ अपभ्रंश का भाषागत उत्तराधिकार भी पाया, जो आगे चलकर हिन्दीभाषी प्रदेश की अनेक बोलियों में विकसित हुआ।


शनिवार, 28 जनवरी 2017

रीतिसिद्ध काव्य की काव्यगत प्रवृत्तियाँ

रीतिसिद्ध काव्य की काव्यगत प्रवृत्तियाँ

आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

इस वीडियो में आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों के साथ विभिन्न काव्य रूपों की जानकारी दी। ऐसे ही खडीबोली की प्रारंभिक कविताओं के साथ आदिकालीन गद्य साहित्य का परिचय भी दिया।

*** धार्मिक, साहित्य, लौकिक जैन साहित्य, रासो साहित्य का युद्ध वर्णन के साथ नायिका भेद एवं नाथों का हठयोग, खुसरो की पहेलियाँ, नख-शिख वर्णन, छंदों के विपुल प्रयोग आदि को इस काल के महत्वपूर्ण योगदान है।

**** रासो काव्यों का महत्व समझ सकेंगे।
**** अमीर खुसरो और विद्यापति का साहित्यिक महत्व समझ सकेंगे।
**** अपभ्रंश प्रभावित रचनाओं में सिध्द साहित्य, नाथ साहित्य, जैन साहित्य आदि प्रमुख हैं और अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हिन्दी की रचनाओं में बीसलदेव रासो, परमाल रासो, पृथ्वीराज रासो, विद्यापति, खुसरो की पहेलियाँ आदि प्रमुख हैं।
**** आदिकाल को भाषा का संधिकाल कहा जाता है। इस काल में अपभ्रंश में रचनाएँ हो रही थीं तो अपभ्रंश का परिवर्तित स्वरूप भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। 
 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

हिन्दी साहित्य का इतिहास - आदिकाल की प्रमुख प्रवृतियाँ

हिन्दी साहित्य का इतिहास - आदिकाल की प्रमुख प्रवृतियाँ

हिन्दी साहित्य का इतिहास - आदिकाल की प्रमुख प्रवृतियाँ

**** आदिकालीन साहित्य के प्रमुख प्रवृत्तियों की विशेषताएँ जान सकेंगे।
**** रासो काव्यों का महत्व समझ सकेंगे।
**** अमीर खुसरो और विद्यापति का साहित्यिक महत्व समझ सकेंगे।
**** अपभ्रंश प्रभावित रचनाओं में सिध्द साहित्य, नाथ साहित्य, जैन साहित्य आदि प्रमुख हैं और अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हिन्दी की रचनाओं में बीसलदेव रासो, परमाल रासो, पृथ्वीराज रासो, विद्यापति, खुसरो की पहेलियाँ आदि प्रमुख हैं।
**** आदिकाल को भाषा का संधिकाल कहा जाता है। इस काल में अपभ्रंश में रचनाएँ हो रही थीं तो अपभ्रंश का परिवर्तित स्वरूप भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। 



हिन्दी आलोचना का विकास

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हिन्दी नाटक का विकास

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हिन्दी निबंध का विकास

हिन्दी निबंध का विकास

हिन्दी कहानी का विकास

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हिन्दी उपन्यास का विकास

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समकालीन हिन्दी कविता

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प्रगतिशील हिन्दी काव्य-धारा

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छायावाद (CHAYAVAAD)

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