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सोमवार, 21 दिसंबर 2020

स्वानुभूति और सहानुभूति (SWANUBHUTI AUR SAHANUBHUTI)

स्वानुभूति और सहानुभूति (SWANUBHUTI AUR SAHANUBHUTI) स्वानुभूति और सहानुभूति (SWANUBHUTI AUR SAHANUBHUTI)

दलित साहित्य की भाषा (DALIT SAHITYA KI BHASHA)

दलित साहित्य की भाषा (DALIT SAHITYA KI BHASHA) दलित साहित्य की भाषा (DALIT SAHITYA KI BHASHA)

दलित साहित्य का स्वरूप DALIT SAHITYA KA SWAROOP)

दलित साहित्य का स्वरूप DALIT SAHITYA KA SWAROOP) दलित साहित्य का स्वरूप DALIT SAHITYA KA SWAROOP)

दलित साहित्य की परंम्परा-3 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-3)

दलित साहित्य की परंम्परा-3 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-3) दलित साहित्य की परंम्परा-3 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-3)

दलित साहित्य की परंम्परा-2 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-2)

दलित साहित्य की परंम्परा-2 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-2) दलित साहित्य की परंम्परा-2 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-2)

दलित साहित्य की परंम्परा-1 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-1)

दलित साहित्य की परंम्परा-1 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-1) दलित साहित्य की परंम्परा-1 (DALIT SAHITYA KI PARAMPARA-1)

दलित साहित्य की अवधारणा (DALIT SAHITYA KI AVDHARANA)

दलित साहित्य की अवधारणा (DALIT SAHITYA KI AVDHARANA) दलित साहित्य की अवधारणा (DALIT SAHITYA KI AVDHARANA)

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

सलाम – ओमप्रकाश वाल्मीकि (कहानी)

सलाम – ओमप्रकाश वाल्मीकि (कहानी)

सरहपा-2

सरहपा-2

सरहपा-1

सरहपा-1

आज बाजार बन्द है (AAJ BAJAR BAND HAI)

आज बाजार बन्द है

साजिश

साजिश

दोहरा अभिशाप – कौसल्या बैसंत्री

दोहरा अभिशाप – कौसल्या बैसंत्री

रविवार, 20 नवंबर 2016

दलित साहित्य का वैचारिक आधार और डॉ. भीमराव अम्बेडकर DALIT SAHITYA KA VAICHARIK ADHAR - DR.B.R AMBEDAKAR

दलित साहित्य का वैचारिक आधार और डॉ. भीमराव अम्बेडकर DALIT SAHITYA KA VAICHARIK ADHAR - DR.B.R AMBEDAKAR

दलित साहित्य का वैचारिक आधार और डॉ. भीमराव अम्बेडकर 

DALIT SAHITYA KA VAICHARIK ADHAR - DR.B.R AMBEDAKAR

दादू दयाल : जीवन और साहित्य

दादू दयाल : जीवन और साहित्य

दादू दयाल : जीवन और साहित्य

जूठन आत्मकथा और दलित रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि

जूठन आत्मकथा और दलित रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि

जूठन का आलोचनात्मक अध्ययन 

इस वीडियो के माध्यम से दलित आत्मकथाकार ओंप्रकाशवाल्मीकि जी की रचनाओं का परिचय और जूठन के माध्यम से दलित साहित्य के स्वरूप समझाया।

*** जूठन आत्मकथा में लेखक के बचपन (जन्म 1950) से लेकर 35 वर्ष (सन् 1985) तक की घटनाएँ हैं।

*** यह आत्मकथा सदियों से शोषित-उत्पीडित जन समुदाय के हित में एक नए समाज की ठोस परिकल्पना प्रस्तुत करती है।

*** डॉ. अम्बेड़कर द्वारा दलितोत्थान के लिए दिए गए त्रिसूत्रीय नारे "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" में शिक्षित बनना दलित आन्दोलन की पहली सीढ़ी है।

*** ओंप्रकाशवाल्मीकि के पिता अनपढ़ होते हुए भी उन्होंने हमेशा कहते है कि "पढ़ने से जाति सुधरती है"


*** जूठन निश्चित ही एक महत्वपूर्ण कृति है। लेखक ने आत्मकथा में अपनी दृष्टि से, अपने जीवन का वर्णन किया। यह आत्मकथा दलित चेतना के विकास के साथ साथ आगे भी बढाने की कोशिश है।