रविवार, 12 दिसंबर 2021

लाल बहादुर शास्त्री LAL BAHADUR SHASTRI

लाल बहादुर शास्त्री 

बच्चो! आप के विद्यालय में दो अक्टूबर को दो महान विभूतियों का जन्मदिन मनाया जाता है - एक मोहन दास करमचंद गांधी और दूसरे 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 ई० को मुगलसराय (तत्कालीन वाराणसी वर्तमान चंदौली) के साध्ररण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद तथा माता का नाम रामदुलारी देवी था। मात्र डेढ़ वर्ष की अवस्था में पिता का देहांत हो जाने के कारण अनेक अभावों और कठिनाइयों को झेलते हुए वे जीवन पथ पर आगे बढ़े। वे स्वतंत्र भारत के पहले रेल मंत्री बने। उसके बाद उद्योग मंत्री तथा स्वराष्ट्र मंत्री भी बने। जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद ये सर्वसम्मति से भारत के दूसरे प्रधानमंत्री भी बने।

देशवासियों के स्वाभिमान को जगाने वाले महान लोकप्रिय नेता लाल बहादुर शास्त्री का निधन 10 जनवरी 1966 को ताशकंद (रूस) में हुआ था।

लाल बहादुर शास्त्री जी का व्यक्तित्व बहुत ही व्यावहारिक एवं संतुलित था। वे जो कहते थे, उसे पहले स्वयं करते थे। इसका उल्लेख उनके जीवन की कई घटनाओं में मिलता है। आइए, उनमें से कुछ प्रसंगों के बारे में जानें -

प्रसंग - 1

शास्त्री जी उन दिनों रेलमंत्री थे। एक बार उन्हें बनारस के पास सेवापुरी जाना पड़ा। छोटे कद का होने के कारण शास्त्री जी को गाड़ी से प्लेटफार्म पर उतरने में काफी दिक्कत हुई। यह देखकर वहाँ खड़ी कुछ औरतें हँस कर कहने लगीं कि अब महसूस हो रहा होगा कि महिलाओं को प्लेटफार्म पर उतरते समय कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। प्लेटफार्म पर पहुँचते ही शास्त्री जी ने स्टेशन मास्टर को बुलाया और उनसे कहा एक फावड़े का इंतजाम कर सकते हैं? फावड़ा तुरंत लाया गया। शास्त्री जी ने फावड़ा लेकर क्या वे उस नीचे प्लेटफार्म के दूसरी ओर जमीन खोदनी शुरू कर दी और मिट्टी प्लेटफार्म पर डालने लगे। यह देखकर वहाँ जो लोग खड़े थे वे भी फावड़ा और उसी तरह की चीजें ले आए।

शास्त्री जी का अनुसरण करने लगे। सभी को तब सुखद अचरज हुआ, जब तीन घंटों के अंदर वह नीचा प्लेटफार्म मानक स्तर तक ऊँचा बन गया।

प्रसंग - 2

यह प्रसंग भी उस समय का है, जब शास्त्री जी रेलमंत्री थे और सरकारी काम से इलाहाबाद जा रहे थे। शास्त्री जी की कार रेल फाटक से थोड़ी ही दूर थी कि लाइनमैन ने फाटक बंद कर दिया। शास्त्री जी के स्टाफ का एक सदस्य लाइनमैन की ओर दौड़कर गया और उससे कहा कि कार में रेलमंत्री बैठे हैं, तुम तुरंत फाटक खोल दो। लाइनमैन ने फाटक खोलने से साफ मना कर दिया और बोला कि मैं नहीं जानता कि कौन रेलमंत्री है और कौन प्रधानमंत्री। मैं अपनी ड्यूटी कर रहा हूँ। जब आने वाली गाड़ी गुजर जाएगी, फाटक खोल दूँगा। स्टाफ के अफसर ने लौटकर कहा” श्रीमान्, वह आदमी बड़ा जिद्दी है। उसके

विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए।" दूसरे दिन जब लाइनमैन की तरक्की कर उसे आगे का ग्रेड दिया गया तो सभी लोग अचंभे में पड़ गए।

प्रसंग - 3

यह प्रसंग उन दिनों का है जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे। एक बार उनका ड्राइवर सुबह निश्चित समय पर नहीं आया। उन्होंने कुछ समय प्रतीक्षा की फिर हाथ में फाइल लेकर पैदल ही दफ्तर की ओर चल दिए। उनका दफ्तर घर से करीब एक किलोमीटर दूर था। इस बात से सचिवालय में हड़कंप मच गया। ड्राइवर से जवाब तलब किया गया। जवाब में उसने कहा कि एकाएक उसका छोटा बच्चा गंभीर रूप से बीमार हो गया था और उसे भागकर डॉक्टर के पास जाना पड़ा। शिकायती फाइल जब शास्त्री जी के पास पहुँची तो उन्होंने उस पर टिप्पणी लिखी कि “उसके लिए उसके बेटे के जीवन का महत्व और किसी भी कार्य से अधिक महत्वपूर्ण है।"

प्रसंग-4

यह घटना उस समय की है, जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे। एक दिन खाने की मेज पर परिवार के सभी सदस्य बहुत गंभीर थे और बिना कुछ बोले चुपचाप खाना खा रहे थे। जब शास्त्री जी ने इस बारे में पूछा तो भी वे चुप रहे। उनके जोर देने पर उनके बेटे ने कहा "बाबू जी, आजकल आप हमें बहुत कम समय देते हैं।" शास्त्री जी ने जवाब दिया "तुम जानते हो कि प्रधानमंत्री बनने के पहले सिर्फ तुम लोग ही मेरे परिवार के सदस्य थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पूरा देश मेरा परिवार है। अगर इसे ध्यान में रखें तो तुम्हारे साथ जो समय बीतता है, वह देश के करोड़ों लोगों के साथ बीतने वाले समय के अनुपात की दृष्टि से बहुत ज्यादा है।"

प्रसंग - 5

शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के फौरन बाद एक विपक्षी दल ने प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन की अगुवाई महिलाएं कर रही थीं। अनेक महिलाएं अपनी गोद में बच्चे लिए हुए थीं। प्रधानमंत्री आवास के सामने पहुँच कर उन्होंने बहुत ऊँची आवाज में चिल्लाना शुरू कर दिया। तेज गरमी के कारण प्रदर्शन करने वाले पसीना-पसीना हो रहे थे। एकाएक शास्त्री जी उठ खड़े हुए। उन्होंने एक ट्रे उठाई, उसमें गिलास रखे और वाटर कूलर के पास जाकर एक-एक करके उनमें पानी भरा। इसके बाद वे हाथ में ट्रे लेकर फाटक की ओर चल दिए। सुरक्षा बलों ने मदद देने को कहा लेकिन उन्होंने सख्ती से मना कर दिया।

वे सीधे एक महिला प्रदर्शनकारी के पास पहुँचे। महिला की गोद में एक छोटा सा बच्चा था जो रो रहा था। उन्होंने पिता की तरह महिला को डाँटते हुए कहा," तुम इस छोटे बच्चे की माँ हो। क्या तुम्हें यह नहीं मालूम कि यह बच्चा प्यासा है, इसीलिए रो रहा है ?" उन्होंने बच्चे को अपनी गोद में लिया और ट्रे माँ के हाथ में पकड़ा दी। फिर एक गिलास उठाया और बच्चे को पानी पिलाने लगे। महिलाओं ने उनके पैर छूने शुरू कर दिए। कुछ ही क्षणों में भीड़ हटने लगी और लोगों को यह बिल्कुल याद न रहा कि वे वहाँ किस उद्देश्य से आए थे। जब सिर्फ चार-पाँच आदमी बच गए तब शास्त्री जी ने उनसे अनुरोध किया कि वे अंदर चलें और इस संबंध में बातचीत करें।