बुधवार, 24 नवंबर 2021

शहीद भगत सिंह | BHAGAT SINGH | शहीद दिवस | 23 मार्च 1931

शहीद भगत सिंह

उस दिन सुबह 'वीरा' स्कूल के लिए कहकर घर से निकला। सन्ध्या हो गयी लेकिन घर नहीं लौटा। जलियाँवाला बाग की घंटना से हम सभी दुःखी और घबराये हुए थे। काफी देर रात बीते वह गुमसुम सा घर आया। मैने कहा -“कहाँ गया था वीरा? सब जगहू तुझे ढँढा, चल फल खा ले। "वह फफक कर रो उठा। मैंने उसे आमतौर पर कभी रोते हुए नहीं देखा था। उसने अपनी नेकर की जेब से एक शीशी निकाली जिसमें मिट्टी भरी हुई थी। उसने कहा “ मिट्टी नहीं अमरों यह शहीदों का खून है। " उस श्शीशी से वह रोज खोलता, उसे चूमता और उसमें भरी हुई मिट्टी से तिलक लगाता, फिर स्कूल जाता।

अमरो का यही वीरा आगे चलकर महान क्रान्तिकारी भगत सिंह के नाम से विख्यात हुआ। भगत सिंह का जन्म लायलपुर (जो अब पाकिस्तान में है) जिले में 27 सितम्बर 1907 को हुआ था। उस समय पूरे देश में अंग्रेजी श्शासन के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला धधक रही थी। उनके पिता किशन सिंह अपने चारों भाइयों के साथ लाहौर के सेंट्रल जेल में बन्द थे।

माँ विद्यावती ने अत्यन्त लाड़-दुलार के साथ उनका पालन-पोषण किया। इस परिवार में संघर्ष और देश भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। जिसका असर भगत सिंह पर भी पड़ा। इनकी बड़ी बहन का नाम अमरो था।

भगत सिंह बचपन से ही असाधारण किस्म के कार्य किया करते थे। एक बार वे अपने पिता के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में ही पिता के एक घनिष्ठ मित्र मिल गये जो अपने खेत में बुवाई का काम कर रहे थे। मित्र को पाकर पिता उनसे हाल-चाल पूछने लगे। भगत सिंह वहीं खेत में छोटे-छोटे तिनके रोपने लगे। पिता के मित्र ने पूछा “यह क्या कर रहे हो भगत सिंह?” बालक भगत सिंह का उत्तर था - "बन्दूकें बो रहा हूँ।" भगत सिंह जैसे-जैसे बड़े होते गये उनकी विशिष्टताएँ उजागर होती गयीं।

इसी समय अंग्रेजी सरकार द्वारा एक कानून लाया गया - रौलेट एक्ट। इस कानून का पूरे देश में विरोध किया जा रहा था। इसी कानून के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी। अचानक अंग्रेज पुलिस आयी और चारों ओर से प्रदर्शनकारियों को घेर लिया। पुलिस अधिकारी जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। सैकड़ों मासूम मारे गये। इस घटना ने पूरे राष्ट्र को झकझोर कर रख दिया। भगत सिंह के बालमन पर इस घटना का इतना गहरा असर पड़ा कि उन्हां ने बाग की मिट्टी लेकर देश के लिए बलिदान होने की शपथ ली।

आरम्भिक पढ़ाई पूरी करने के बाद भगत सिंह आगे की शिक्षा के लिए नेशनल कालेज लाहौर गये। वहाँ उनकी मुलाकात सुखदेव और यशपाल से हुई। तीनों मिंत्र बन गये और क्रान्तिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे।

भगत सिंह जब बी.ए. में पढ़ रहे थे तभी उनके पिताजी ने उनके विवाह की चर्चा छेडी और भगत सिंह को एक पत्र लिखा। पत्र पढ़कर भगत सिंह बहुत दुःखी और उन्होंने दोस्तों से कहा -

“दोस्तों मैं आपको बता दूँ कि अगर मेरी शादी गुलाम भारत में हुई तो मेरी दुल्हन सिर्फ मौत होगी, बारात शवयात्रा बनेगी और बाराती होंगे शहीद।” पिताजी के पत्र का जवाब देते हुए उन्होंने लिखा “यह वक्त शादी का नहीं, देश हमें पुकार रहा है। मैंने तन मन और धन से राष्ट्र सेवा करने की सौगन्द्द खायी है। मुझे विवाह बन्धनों में न बाँधे बल्कि आशीर्वाद दें कि मैं अपने आदर्श पर टिका रहूँ।”

सन् 1926 में उन्होंने लाहौर में नौजवान सभा का गठन किया। इस सभा का उद्देश्य था –

**स्वतन्त्र भारत की स्थापना।

**एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण के लिए देश के नौजवानों में देश भक्ति की भावना जाग्रत करना।

**आर्थिक सामाजिक और औद्योगिक क्षेत्रों के आन्दोलनों में सहयोग प्रदान करना।

**किसानों और मजदूरों को संगठित करना।

इसी बीच भगत सिंह की मुलाकात प्रसिद्ध क्रान्तिकारी एवं देश भक्त गणेशशंकर विद्यार्थी से कानपुर में हुई। गणेशशंकर विद्यार्थी उस समय अपनी प्रखर पत्रकारिता से जनमानस को उद्वेलित करने का काम कर रहे थे। भगत सिंह उनके विचारों से इतने प्रभावित कि कानपुर में ही उनके साथ मिलकर क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने लगे। लेकिन दादी माँ की अस्वस्थता के कारण उन्हें लाहौर लौटना पड़ा।

लाहौर में उस समय सारी क्रान्तिकारी गतिविधियाँ हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसियेशन के बैनर तले संचालित हो रही थीं। भगत सिंह को एसोसियेशन का मंत्री बनाया गया। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन आने वाला था। भगत सिंह ने कमीशन के बहिष्कार की योजना बनायी। लाला लाजपतराय की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का डटकर विरोध किया गया। “साइमन वापस जाओ” और “इन्कलाब जिन्दाबाद” के नारे लगाये गये। निरीह प्रदर्शनकारियों पर अंग्रेज पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज किया। लाला लाजपत राय के सिर में गंभीर चोटें आयीं जो बाद में उनकी मृत्यु का कारण बनीं। इस घटना से भगत सिंह व्यथित हो गये। आक्रोश में आकर उन्होंने पुलिस कमिश्नर सांडर्स की हत्या कर दी और लाहौर से अंग्रेजों को चकमा देते हुए भाग निकले।

अप्रैल 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। इस धमाके के साथ उन्हों ने कुछ पर्चे भी फेंके। भगत सिंह और उनके साथियों पर साण्डर्स हत्याकाण्ड तथा असेम्बली बम काण्ड से सम्बन्धित मुकदमा लाहौर में चलाया गया। मुकदमे के दौरान उन्हें और उनके साथियों को लाहौर के सेंटरल जेल में रखा गया। जेल में कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। उन्हें प्राथमिक सविधाएँ और भोजन ठीक से नहीं दिया जाता था। भगत सिंह को यह बात ठीक नहीं लगी। उन्होंने इसके विरोध स्वरूप भूख हड़ताल शुरू कर दी। आखिर अंग्रेजी सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा और कैदियों को बेतहर सुविधाएँ मिलने लगीं। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा सुनायी गयी। तीनां क्रान्तिकारियों को 23 मार्च 1931 को फाँसी दे दी गयी।

उनकी शहादत की तिथि 23 मार्च को हमारा देश “शहीद दिवस” के रूप में मनाता है। उनके क्रांन्तिकारी विचार, दर्शन और शहादत को यह देश कभी नही भुला सकेगा।

कुछ यादं : कुछ विचार:

1. बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है :-

असेम्बली में बम फेंकने के बाद जो पर्चे फेंके गये थे। उनका शीर्षक यही था। इस पर्चे में और भी कुछ था -

“आज फिर जब लोग साइमन कमीशन से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखे फैलाये हैं और इन टुकड़ों के लिए लोग आपस में झगड़ रहे हैं। विदेशी सरकार पब्लिक सेफ्टी बिल (सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक) और टेण्डर्स डिस्प्प्यूट्स विल (औद्योगिक विवाद विधेयक) के रूप में अपने दमन को और भी कडा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आने वाले अधिवेशन में प्रेस सैडिशन एक्ट (अखबारों द्वारा राजद्रोह रोकने का कानून) जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है।

जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखण्ड को छोड़कर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जायें और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरुद्ध क्रान्ति के लिए तैयार करें।”

2. क्रान्ति -

“क्रान्ति से हमारा आशय खून खराबा नहीं। क्रान्ति का विरोध करने वाले लोग केवल पिस्तौल, बम, तलवार और रक्तपात को ही क्रान्ति का नाम देते हैं परन्तु क्रान्ति का अभिप्राय यह नहीं है। क्रांति के पीछे की वास्तविक शक्ति जनता द्वारा समाज की आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने की इच्छा ही होती है।"

3. प्रख्यात गांधीवादी श्री पटभिरमैया –

“उस समय भगत सिंह का नाम सारे देश में गाँधीजी की तरह ही लोकप्रिय हो गया था।"

4. बालकृष्ण शर्मा नवीन:

“किसी भी देश का युवक जितना सच्चा चरित्रवान, संतोषी, आदर्शवादी, उत्सुक, और निखरा हुआ तप्त स्वर्ण हो सकता है, भगत सिंह वैसा ही है। यदि भगत सिंह लार्ड इरविन का पुत्रं होता तो हमें विश्वास है वे भी उसे प्यार करते। वह बड़ा ही सुसंस्कृत भोला भाला, नौजवान है। वह हमारी वत्सलता, स्नेह, अपार वात्सल्य और प्यार का व्यक्त रूप है।"

एक और बेबे (माँ)

जेल में जो महिला कर्मचारी भगत सिंह की कोठरी की सफाई करने जाती थी उसे भगत सिंह प्यार से बेबे कहते थे। आप इसे बेबे क्यों कहते है? एक दिन किसी जेल अधिकारी ने पूछा तो वे बोले-जीवन में सिर्फ दो व्यक्तियों ने ही मेरी गंदगी उठाने का काम किया है। एक बचपन में मेरी माँ ने और जवानी में इस माँ ने। इसलिए दोनों माताओं को प्यार से मैं बेबे कहता हूँ।

फाँसी से एक दिन पहले जेलर खान बहादुर अकबर अली ने उनसे पूछा - आपकी कोई खास इच्छा हो तो बताइए, मैं उसे पूरा करने की कोशिश करूँगा।

भगत सिंह ने कहा - हाँ, मेरी एक खास इच्छा है और उसे आप ही पूरा कर सकते हैं। मैं बेबे के हाथ की रोटी खाना चाहता हूँ।

जेलर ने जब यह बात उस सफाई कर्मचारी से कही तो वह स्तब्ध रह गयी। उसने भगत सिंह से कहा “सरदार जी मेरे हाथ ऐसे नहीं हैं कि उनसे बनी रोटी आप खायें।”

भगत सिंह ने प्यार से उसके दोनों कन्धा को थपथपाते हुए कहा “माँ जिन हाथों से बच्चों का मल साफ करती है उन्हीं से तो खाना बनाती है। बेंबे तुम चिन्ता मत करो और रोटी बनाओ।”