मंगलवार, 23 नवंबर 2021

डॉ० भीमराव अम्बेडकर | B. R. AMBEDKAR | भीमा | जय भीम

डॉ० भीमराव अम्बेडकर

"जब तक हम अपना तीन तरह से शुद्धिकरण नहीं करते, तब तक हमारी स्थायी प्रगति नहीं हो सकती। हमें अपना आचरण सुधारना होगा, अपने बोलचाल का तरीका बदलना होगा और विचारों में दृढ़ता लानी होगी।” ये उद्गार हैं डॉ० भीमराव अम्बेडकर के। डॉ० भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा, समाज सेवी एवं विद्दिवेत्ता के रूप में जाना जाता है इन्होंने देश की स्वतंतरता के पश्चात 4 नवम्बर 1948 को भारतीय संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रस्तुत किया। डॉ० अम्बेडकर इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। इस प्रारूप में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान सभा में कई बार पढ़े जाने के बाद अन्तत: 26 नवम्बर 1949 को इस प्रारूप को स्वीकार कर लिया गया।

जन्म: 14 अप्रैल 1891

जन्मस्थान: महू, इन्दौर, मध्य प्रदेश

मृत्यु: माता: भीमा बाई सकपाल

पिता: रामजी

भीमराव अपने भाइयों में सबसे छोटे थे। बचपन में माँ इन्हें प्यार से “भीमा” कहकर पुकारती थीं। इनके पिता अंग्रेजी सेना में सूबेदार थे। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने 14 साल तक मिलिट्री स्कूल में हेड मास्टर के रूप में कार्य किया। अम्बेडकर के घर में शिक्षा का माहौल था। पिता बच्चों को रामायण तथा महाभारत की कहानियों के साथ संत नामदेव, तुकाराम, मोरोपंत तथा मुक्तेश्वर की कविताएँ सुनाते थे तथा स्वयं उनसे सुनते थे। इन्हीं दिनों ज्योतिबा फुले दलितों में शिक्षा का प्रसार एवं उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाने की दिशा में कार्य कर रहे थे। भीमराव के पिता रामजी इनके अच्छे मित्र और प्रशंसक थे। ज्योतिबा के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव बालक भीमराव पर भी पड़ा।

भीमराव पाँच वर्ष की उम्र में स्कूल जाने लगे परन्तु उनका मन पढ़ने से ज्यादा बागवानी में लगता था। पिता उनकी पढ़ाई के बारे में काफी चिन्तित रहते थे। धीरे-धीरे बालक भीम की रुचि पुस्तकों में बढ़ती गयी। अब वे पाठ्यपस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकें भी पढ़ने लगे। उन्हें पुस्तकों से गहरा लगाव हो गया। 1907 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने एलफिस्टन कालेज से इण्टर की पढ़ाई पूरी की। 17 वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह रमाबाई से कर दिया गया। पिता का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा था। अब भीमराव के आगे की पढ़ाई का खर्च भी उठाना मुश्किल हो रहा था।

भीमराव की प्रतिभा को पहचानकर बड़ौदा नरेश सयाजी राव ने उनकी पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की इसके सहारे उन्होंने 1912 में बी0ए0 (स्नातक) की परीक्षा उत्तीर्ण की। सयाजी राव ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजा। न्यूयार्क विश्वविद्यालय से उन्होंने 1915 में एम० ए० की डिग्री हासिल की। इसी दौरान भीमराव ने एक शोध प्रबन्ध भी लिखा। इस शोध प्रबन्ध का शीर्षक था - "भारत के लिए राष्ट्रीय लाभांश ऐतिहासिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन”। इस शोध प्रबन्धं पर कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने उन्हें "डॉक्टर ऑफ फिलासफी” की उपाधि प्रदान की। अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र के अध्ययन के लिए भीमराव लंदन चले गये। इसी बीच सयाजी राव ने इनकी छात्रवृत्ति समाप्त कर दी। भीमराव को विवश होकर स्वदेश लौटना पड़ा, परन्तु उन्होंने मन ही मन संकल्प कर लिया कि पढ़ाई के लिए एक बार वे पुन: लंदन जायेंगे। पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपने दैनिक खर्चों में कटौती करके अब तक लगभग 2000 पुस्तकें खरीद ली थीं।

उल्लेखनीय

** जुलाई 1924 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना। इसका उद्देश्य छुआछूत दूर करना था।

**ब्रिटिश सरकार द्वारा दलितों को सेना में भर्ती पर रोक को लेकर 19-20 मार्च 1927 को महाड़ में दलितों का सम्मेलन बुलाना।

**सरकार ने दलित हितों का प्रतिनिधित्व करने हेतु मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल के लिए 1929 में मनोनीत किया। डॉ0 अम्बेडकर ने शिक्षा, मद्य-निषेध, कर व्यवस्था, महिला एवं बाल कल्याण जैसे विषयों पर कड़ा रुख अपनाया।

**प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय गोलमेज सम्मेलन में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेना

**महात्मा गांधी के साथ दलितों के उत्थान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर। यह समझौता ‘पूना समझौता’ कहलाता है।

**प्रमुख रचनाएँ - दी बुद्ध एण्ड हिज गास्पेल, थॉट्स आन पाकिस्तान, रेवोल्यूशंस एण्ड काउन्टर रेवोल्यूशंस इन इण्डिया।

महाराष्ट्र में रहकर उन्होंने शाहूजी महाराज की सहायता से 31 जनवरी 1920 से “मूकनायक” नामक अखबार निकालने की शुरुआत की। इस अखबार का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्याप्त जाति प्रथा को समाप्त करना तथा अस्पृश्यता का निवारण करना था। 21 मार्च 1920 को भीमराव ने कोल्हापुर में दलितों के सम्मेलन की अध्यक्षता की। सम्मेलन में कोल्हापुर नरेश शाहूजी महाराज ने लोगों से कहा –

“तुम्हें अम्बेडकर के रूप में अपना उद्धारक मिल गया है”

भीमराव अम्बेडकर पैसों का प्रबन्ध करके पुनः 1920 में लंदन गये। वहाँ वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौट आये। अब वे बैरिस्टर बन चुके थे।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर आजीवन विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे। लगातार काम करने से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। इसी बीच 27 मई 1935 को इनकी पत्नी रमाबाई का निधन हो गया।

1936 में डॉ० अम्बेडकर ने "इंडिपेंडट लेबर पार्टी” नाम से एक राजनैतिक दल का गठन किया। 1937 में हुए प्रांतीय चुनाव में डॉ0 अम्बेडकर और उनके कई साथी भारी बहुमत से विजयी हुए जबकि इस चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा ‘हिन्दू महासभा जैसे राजनीतिक दल चुनाव में भाग ले रहे थे। डॉ० भीमराव अम्बेडकर को जुलाई 1941 में गणित रक्षा सलाहकार समिति का सदस्य नियुक्त किया गया। 1945 में उन्होंने पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की। इस सोसाइटी ने अपना पहला शिक्षण संस्थान 1946 में सिद्धार्थ कॉलेज के नाम से खोला। 1952 में डॉ. अम्बेडकर लोक सभा के उम्मीदवार थे लेकिन चुनाव हार गये। उनको मार्च 1952 में राज्य सभा के लिए चुन लिया गया और वे भारत सरकार के कानून मन्त्री बने। 14 अक्टूबर 1956 को डॉ० अम्बेडकर ने अपने तीन लाख समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।

6 दिसम्बर 1956 को भारतीय क्षितिज का यह सितारा सोया तो फिर नहीं उठा। उनके योगदानों के लिए भारत सरकार ने सन् 1990 में उन्हें मरणोपरान्त 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। भले ही आज डॉ0 अम्बेडकर हमारे बीच नहीं हैं फिर भी अपने सामाजिक और वैचारिक योगदानों के लिए यह देश उन्हें युगों-युगों तक याद करता रहेगा।

स्मरणीय :-

**डॉ0 अम्बेडकर 1941 में गणित रक्षा सलाहकार समिति के सदस्य बने।

**1945 में पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना।

**1946 में सिद्धार्थ कॉलेज खोलना ।

**1952 में राज्य सभा के लिए निर्वाचित

**14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म ग्रहण करना।

**1990 में मरणोपरान्त 'भारत 'रत्न' से सम्मानित।