सोमवार, 29 मार्च 2021

ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ। अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ॥ (संत कबीरदास के दोहे)

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संत कबीरदास के दोहे

ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ॥

कबीर ने उपर्युक्त दोहे में वाणी को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कहा है। ऐसी वाणी बोलना चाहिए जिसमें मन का अहंकार न हो , ऐसी वाणी वक्ता के शरीर को शीतलता देती है और श्रोता को सुख प्रदान करती है। मधुर वाणी औषधि के सामान होती है, जबकि कटु वाणी तीर के समान कानों से प्रवेश होकर संपूर्ण शरीर को पीड़ा देती है। मधुर वाणी से समाज में एक – दूसरे के प्रति प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनों से सामाजिक प्राणी एक - दूसरे के विरोधी बन जाते है।

कहते है कि “तलवार का घाव देर-सवेर भर ही जाता है, किंतु कटु वचनों से हुआ घाव कभी नहीं भरता।” इसलिए हमेशा मीठा और उचित वाणी ही बोलना चाहिए, जो दूसरों को तो प्रसन्न करता ही है और खुद को भी सुख की अनुभूति होता है। कभी कभी मधुर वचनों से बिगड़े हुए कार्यो को भी बनाया जा सकता है।

वाणी मनुष्य के लिए ईश्वर की दी हुई एक अनोखी देन है, अतः कटु वचन बोलकर इस देन को व्यर्थ न करें। वाणी की मधुरता हृदय के द्वार खोलने की कुंजी है। हमारी वाणी से ही हमारी शिक्षा, दीक्षा, परंपरा और मर्यादा का पता चलता है। कटु वचन बोलने वाले को समाज में कभी सम्मान नहीं मिलता। इसलिए जैसा कि कबीर दास के दोहे में कहा गया है – हमें हमेशा लोगों से प्रेमभरी मीठी वाणी में बात करनी चाहिए।

महाकवि संत कबीर दास के दोहे में कहा गया है कि हमेशा मीठा और उचित ही बोलना चाहिए, जो दुसरो को तो प्रसन्न करता ही है और खुद को भी सुख की अनुभूति कराता है। विनम्रता ज्ञान की पहचान है। जैसे फलदार वृक्ष झुकता है वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए। विनम्र और मीठी वाणी से स्वंय का अहंकार तो दूर होता है और दूसरों को भी इससे सुख प्राप्त होता है। कबीर साहेब ने भी कई प्रकार की यातनाएँ सही लेकिन कहीं भी उनकी वाणी में प्रतिशोध और बदले की भावना दिखाई नहीं देती है जो की एक संत की मूल निशानी है।

कठिन शब्दार्थ :

बाणी : बोली, जुबान

मन का आपा : मन का 'अहम्'

खोयी : समाप्त होना।

अपना तन सीतल करै : स्वंय को भी सुखद लगना

औरन कै सुख होई : दूसरों के भी सुख लगना