गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

महाकवि तुलसीदास की समन्वय साधना का विश्लेषण कीजिए। | TULASIDAS

महाकवि तुलसीदास की समन्वय साधना का विश्लेषण कीजिए।
(अथवा)
तुलसीदास लोकनायक कहलाते हैं - किसलिए?
(अथवा)
गोस्वामी तुलसीदास के लोकनायकत्व पर विचार कीजिए।
(अथवा)
'लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके', इस उक्ति की पृष्टि पर विचार कीजिए।

रूपरेखा ::

1. प्रस्तावना

2. तुलसी का युग

3. तुलसी की समन्वय वचारधारा

4. उपसंहार

1. प्रस्तावना :

हिन्दी साहित्याकाश में महाकवि तुलसीदास सतत प्रसन्न चन्द्रमा है। किसी ने सही ही कहा सूर 'सूर तुलसी ससि' गोरखामी तुलसी दास के बारे में बताना सारे आकाश की चित्रकारी करने के समान है अथवा सारे समुद्र के पानी को उलींचने के समान है। तुलसीदास को नाभादास ने कलियुग वाल्मीकि का अवतार कहा है। वेदों में पुराणों में, शास्त्रों में तथा काव्यों में बताये गये, रामतत्त्व को उन्होंने अपने महान काव्य रामचरित मानस में ढालकर जन मानस में रामभक्ति का संचार कराया। भारतीय संस्कृति, चरित्र चित्रण, रसपरिपाक आदि में रामचरितमानस का संमतुल्य करनेवाला काव्य हिन्दी साहित्य जगत में कोई अन्य नहीं। बाल्मीकि रामयण में बताये गये राम के धर्म स्वरूप (रामो विग्रहवान धर्मः) को लेकर उन्होंने मर्यादा पुरोषत्तम के रूप में प्रस्तुत किया।

2. तुलसी का युग -

तुलसीदास का जन्म अनेक विश्रृंखलताओं के युग में हुआ - देश के धार्मिक भेद में नाना प्रकार के संप्रदाय प्रचलित थे। एक ओर अलख जगाने वाले नाथ-पंथि योगियों का प्रशिक्षित वर्ग पर प्रभाव पड रहा था, तो दूसरी ओर जात-पांत के विरोधी कबीरदास अलखोपासना का संदेश सुना रहे थे। शाक्त संप्रदाय में वामपक्ष तथा दक्षिण पक्ष प्रबल हो रहे थे। वामपक्ष में मद्य, माँस, मत्स्य, मुद्रा तथा मैथुन पंचमकारों की वासनामय उपासना होने लगी! शैदों और वैष्णवों के बीच भेद उत्पन्न हुए। फिर वैष्णवों में भी राम भक्ति शाखा तथा कृष्ण भक्ति शाखा के बीच मतभेद होने लगे। अदद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद और दद्वैतवाद में परस्पर संघर्ष होने लगा। राजनीतिक दृष्टि से विदेगीजाति ने भारतीय जनता को अपने शासन के अधीन कर लिया। वह सच्चा कलियुग (पाप का युग) था।

“गोड गँवार नृपाल महि, यमन महा महिपाल।

साम न दान न भेद, कलि केवल दण्ड कराल॥"

तत्कालीन समाज आर्थिक रूप से भी विपिन्न था। दंपति सुख भोगों में मग्न होकर पारिवारिक कर्तव्यों की उपेक्षा करते थे। नव यौवना पत्नी के सौन्दर्य के लोभ में अनेक युवक अपने माता- पिता की उपेक्षा कर रहे थे। युवक अति विलासिता में भंग होने के कारण सामाजिक जीवन में शिथिलता आने लगी। वेद और धर्म दूर हो चुके थे। धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक तथा आर्थिक दृष्टि से तुलसी के समय समाज ह्रासोन्मुख था।

तुलसीदास ने तत्कालीन समाज को परखा। लोकमंगल की भावना उनके हृदय में जागरित हुई। समाज में धार्मिक सांस्कृतिक, तथा आर्थिक करने की हुई, गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस द्वारा समाज को रक्षक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के दर्शन कराये। उनकी रामायण श्रुति सम्मत है। उनके राम शील, शक्ति तथा सौन्दर्य के प्रतिरूप है।

3. तुलसीदास की समान्वय विचारधारा -

(क) साहित्यिक समन्वय :- तुलसीदास में साहित्यिक समान्वय भावना गोचर होती है। आप की कृतियाँ तीस से अधिक बताई जाती हैं, लेकिन उन में बारह ही आज प्राप्त हैं।

1. रामचरिमानस उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है, जो प्रबन्ध काव्य है। इस में संपूर्ण रामकथा का विवरण है।

2. विनयपत्रिका भक्ति समन्वित पदों की रचना है। इस काव्य में तुलसी की भक्ति विशेषता का चरमोत्कर्ष प्रकट होता है।

3. कवितावली - कवितावली में कवित्त, सवैया, छप्पय आदि छन्दों का समाहार है।

4. गीतावली - रामकथा की गीतरचना है।

5. दोहावली - इस में नीति, भक्ति, नाम महिमा आदि का उल्लेख तथा बिवरण हुआ है।

6.कृष्ण गीतावली - कृष्ण गीतावली में कृष्ण की महमा की कथा है।

7. पार्वती मंगल - यह शैव संप्रादाय की पुष्टि में लिखा हुआ काव्य है। इस प्रकार तुलसी ने तत्कालीन सारी काव्य शैलियों में कृतियों की रचना की।

(ख) धार्मिक समन्वय :- महाकवि तुलसीदास ने धार्मिक क्षेत्र में समन्वय लाने का प्रयत्न किया। शिव, राम की स्तुति करते हैं और राम शिव का स्मरण करते हैं। राम स्वयं कहते हैं -

शिब द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहु मोहि न पावा।

संकर विमुख भगति चहु मोरी। सो नर की मूढ़ मति थोरी॥

रामचरित को शिव अपने हृदय में रख लेते हैं। इसलिए इस काव्य का नाम रामचरितमानस रखा गया है। निर्गुण और सगुण में समन्वय लाते हुए उन्होंने कहा है -

अगुनहिं सगुनहि नहिं कछु भेदा।

भक्ति और ज्ञान में समन्वय लाते हुए तुलसी ने बताया –

“भगतिहि म्यानहि नहिं कछु भेदा। उभय हरहि भव संभव खेदा॥"

(ग) राजनीतिक समन्वय :- गोस्वामी तुलसीदास एक ओर तत्कालीन विश्रृंखल शासन का तिरस्कार करते हुए रामराज्य की स्थापना भारत से चाहते हैं।

"दैहिक, दैविक, भौतिक, तापा। रामराज्य काहु हि नहि व्यापा॥"

(घ) सामाजिक समन्वय :- रामचरितमानस में वर्णाश्रम धर्म का विवरण हुआ है। जिस में राजा - प्रजा का संबन्ध, माता पिता का संबन्ध, पिता पुत्र का संबन्ध, भाई- भाई का संबन्ध, सास बहू का संबन्ध - स्वामी सेवक का सबन्ध आदि का चित्रण मर्यादा पूर्वक हुआ है। इस से तुलसीदास सामाजिक क्षेत्र में समन्वय भावना की इच्छा रखते हैं। सीता और राम भगवान के स्वरूप होते हुए भी साधारण प्रजा से और बन में विचरने वाले कोल किरातों से हृदयाविष्कार के साथ व्यवहार करते हैं। इसीलिए राम शील, शक्ति तथा सौन्दर्य के समन्वय रूप माने जाते हैं। सीता और राम के अवतार स्वरूप मे सारे विश्व में प्रतिबिंबित होते हुए तुलसीने बताया।

सीय राम मय सब जग जानि। करउ प्रणाम जोरि जुग पानि॥

रामराज्य में सब लोग दान देनेवाले ही थे। लेनेवाला कोई भी नहीं था। यहाँ तुलसीदास आर्थिक तथा नैतिक समन्व्य करते हैं।

(ङ) दार्शनिक समन्वय :- तुलसीदास की विचार धारा में कोई नई बात नहीं थी। जो कुछ भी उन्होंने कहा है श्रृति सम्मत कहा है। उपयुक्त विषय के संग्रह में और अनुपयुक्त विषय को त्यागने में वे अत्यन्त सफल थे। फिर वे अपने सिद्धान्तों को रामचरितमानस के द्वारा जन मानस में व्याप्त करते गये। उन सिद्धान्तों का सार ही तुलसी मत है। उनका मानस नाना पुराण निगमागम सम्मत होने के कारण उनका रामकाव्य महान समन्वय काव्य बन गया है। गोस्वामी जी की भक्ति श्रुति सम्मत है।

तुलसी ने तत्कालीन सारे दार्शनिक विचारों को परखा और सब का समन्वय किया। उपनिषदों का ब्रह्मवाद, गीता का अनासक्ति योग, वौद्धों और जैनों का अहिंसा वाद, वैष्णवों और शैवों का अनुराग - विराग, शक्तों का जप, शंकर का अद्वैतवाद, रामानुज की भक्ति भावना, निंबार्क का द्वैताद्वैत, मध्व की रामोपासना, बल्लभ का बालरूप आराध्य, चैतन्य का प्रेम, कबीर आदि सतों का नाम जप आदि - आदि तुलसी के रामचरितमानस में दर्शित होते हैं।

उपसंहार

धर्म ग्लानि होने पर, समय समय पर लोकनायक अवतरित होते हैं और लोक रक्षा अपने-अपने बिधान से करते हैं। -

उदा - यदा... यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।

धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥ .

जिस प्रकार महाभारत काल में योगिराज कृष्ण ने ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्वय करके समाज का पथप्रदर्शन किया, उसी प्रकार महाकवि तुलसीदास ने भारतीय समाज में दर्शनिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, नैतिक, पारिवारिक तथा साहित्यिक समन्वय करके समाज को प्रशारत किया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन है. "भारत वर्ष का - लोक नायक वही है जो समन्वय कर सके। तुलसी ही समन्वयकारी थे। रामचरितमानस आद्यन्त समन्वय काव्य है।"

तुलसीदास ने तत्कालीन समाज को परखा। उन में लोक मंगल की भावना जागरित हुई। श्रुति सम्मत आदर्श राम कथा रची। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र संसार को दिया। जड चेतन गुण दोषमय संसार को पार करने के लिए तुलसी ने समाज को रामरस का पान कराया। शील, शक्ति तथा सौन्दर्य का समन्वय ही रामचरितमानस है। तुलसी का मानस आत्म सुख प्रदान करनेवाला महान काव्य है। तुलसी की समन्वय भावना अतुलित है। इसीलिए वे लोक नायक कहलाते हैं।

“कविता करके तुलसी न लसे। लसी कविता पा तुलसी की कला॥“ – हरिऔध