रविवार, 27 मार्च 2016

मीराबाई

मीराबाई

कवि परिचय :

हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की कवियत्रियों में मीराबाई प्रथम कवियत्री है। मीराबाई राजस्थान के मेडता वीर शासक एवं रात्नसिंह की इकलौती पुत्री थी। उनका जन्म मेडता के चौकडी नामक गाँव में हुआ। उनका विवाह मेवाड के राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ मीरा का विवाह कर दिया। परन्तु उनका वैवाहिक जीवन बहुत ही संक्षिप्त रहा और विवाह के कुछ समय बाद ही कुँवर भोजराज की मृत्यु हो गयी। अतः बीस वर्ष की उम्र में ही मीरा विधवा हो गयी। शोक में डूबी मीरा को कृष्ण के प्रेम का सहारा मिला। राजगृह की मर्यादा की रक्षा के लिए मीरा को मारने का प्रयत्न किया, पर वे मीरा को मार न सके। इस घटना के बाद मीरा ने गृह-त्याग करके पवित्र स्थानों की यात्रा की। मीराबाई के प्रेम का मूलाधार श्रीकृष्ण ही है। उनके पदों में सर्वत्र ही उनकी व्यक्तिगत अनुभूतियों का प्रतिबिंब झलक उठता है। 
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"श्री गिरधर आगे नाचुंगी ।।
नाची नाची पिव रसिक रिझाऊं प्रेम जन कूं जांचूंगी।
प्रेम प्रीत की बांधि घुंघरू सूरत की कछनी काछूंगी ।।
श्री गिरधर आगे नाचुंगी ।।
लोक लाज कुल की मर्यादा, या मैं एक ना राखुंगी।।
पिव के पलंगा जा पौढुंगी, मीरा हरि रंग राचुंगी।।
श्री गिरधर आगे नाचुंगी"

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"दरस बिन दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।
सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।
बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।"

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"म्हारां री गिरधर गोपाल
म्हारां री गिरधर गोपाल दूसरां णा कूयां।
दूसरां णां कूयां साधां सकल लोक जूयां।
भाया छांणयां, वन्धा छांड्यां सगां भूयां।
साधां ढिग बैठ बैठ, लोक लाज सूयां।
भगत देख्यां राजी ह्यां, ह्यां जगत देख्यां रूयां
दूध मथ घृत काढ लयां डार दया छूयां।
राणा विषरो प्याला भेज्यां, पीय मगण हूयां।
मीरा री लगण लग्यां होणा हो जो हूयां॥"

भाषा के संदर्भ में अज्ञेय का विचार

भाषा के संदर्भ में अज्ञेय का विचार

अज्ञेय ने काव्य को रूढ़ अभिजात्य से मुक्त करने के लिए भाषा को नया संस्कार देना चाहा है। इस संदर्भ में कवि ने महसूस किया कि लोक व्यवहार में प्रचलित भाषा सम्प्रेषण की दृष्टि से बड़ी सशक्त और ईमानदार होती है, इसलिए अज्ञेय जी ने लोक भाषा के शब्द और मुहावरों को भाषा में गढ़ना शुरू किया। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजरते हुए अज्ञेय जी की भाषा पहले तद्भव-देशज शब्दों को अपनाती है, क्रमशः ठेठ होती हुई यह प्रायः गद्यात्मक हो गई है और उनकी रचना ‘महावृक्ष के नीचे’ में काव्य भाषा का विशुद्ध गद्यात्मक रूप प्रतिफलित हुआ है –

“जियो मेरे आजाद देश के सांस्कृतिक प्रतिनिधियों
जो विदेश जाकर विदेशी नंग को देखने के लिए
पैसे देकर टिकट खरीदते हो
पर घर लौट कर देशी नंग को ढँकने के लिए
खजाने में पैसा नहीं पाते।”


अज्ञेय की कविता की संरचना प्रायः गद्यात्मक है, छन्दमुक्त है, मगर शब्दों की संगति एस प्रकार है कि एक अंतर्निहित लय संयोजन पूरी कविता को कविता बना जाता है –

“मेरे घोड़े की टाप
चौखटा जड़ती जाती है
आगे के नदी, व्योम, घाटी, पर्वत के आस पास
मैं एक चित्र में लिखा गया सा
आगे बढ़ना जाता हूँ”।

अज्ञेय जी का मंतव्य है कि “मैं उन व्यक्तियों में से हूँ – और ऐसे व्यक्तियों की संख्या शायद दिन प्रतिदिन घटती जा रही है जो भाषा का सम्मान करते है और अच्छी भाषा को अपने आप में एक सिद्धि मानते हैं।” अज्ञेय न तो प्रयोग ‘वादी’ है न प्रतीकवादी - अपितु अभिव्यक्ति सामर्थ्य के लिए उनकी भाषा प्रतीकधर्मी है और प्रयोगधर्मी भी। “मेरी पीढ़ी का कवि एक ऐसे स्थल पर पहुँचा जहाँ उसे अपनी पिछली समूची परम्परा का अवलोकन करके अभिव्यक्ति के नए आयाम प्रकार खोजने की आवश्यकता प्रतीत हुई..... कवि ने नए सत्य देखे, नए व्यक्ति सत्य भी और सामाजिक सत्य भी। और उनको कहने के लिए उसे भाषा को नए अर्थ देने की आवश्यकता हुई। आवश्यकता काव्य के क्षेत्र में भी प्रयोग की जननी है और जिन जिन कवियों ने अनुभूति के नए सत्यों की अभिव्यक्ति करनी चाही, सभी ने नए प्रयोग किए”। काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण उन्हें एकसूत्रता में बाँधता है।

अज्ञेय जी कहते हैं कि – “प्रत्येक शब्द का समर्थ उपयोक्ता उसे नया संस्कार देता है। इसके द्वारा पुराना शब्द नया होता है यही उसका कल्प है”। अज्ञेय का काव्यमय वक्तव्य संक्षिप्त, संयत और कलात्मक होता है। इस संक्षिप्तता में प्रतीक, बिंब, लय, संगीत, सब कुछ अपने औचित्य में समाया रहता है। सूक्ष्म संयोजन से व्यापक अर्थ प्रतीति वाले शब्दों को जोड़ने की कला अज्ञेय के रचना कल्प को विशिष्ट बनाती है।

अज्ञेय की कविता में प्रतीक हैं, संशिलष्ट बिम्ब हैं और अन्तः संगीत के साथ लयात्मकता भी सुरक्षित है। यह उनकी मौलिक प्रतिभा की देन है। लोकभाषा के शब्दों को अपनाकर कवि लोकजीवन से आत्मीय होना चाहता है।

अज्ञेय के विचारानुसार “प्रतीक वास्तव में ज्ञान का उपकरण है। जो सीधेसादे अभिधा में नहीं बँधता, उसे आत्मसात करने या प्रेषित करने के लिए प्रतीक काम देते हैं”। उनकी कलात्मक काव्य भाषा संघटित बिम्बों की भाषा है, जिस में गत्यात्मक, ध्वन्यात्मक, दृश्यात्मक और भोगे हुए जीवन के सापेक्ष सहज बिम्बों की भरमार है। अज्ञेय ने कविता में मिथकों को सामयिक सन्दर्भों से जोड़कर व्यक्त किया है। उनकी मिथ संरचना युगीन सत्यों से जुड़ी हुई व्यापक है और रूपात्मक स्तर पर इसमें प्रतीक, बिम्ब सभी का समन्वय है।

हिन्दी साहित्य में आधुनिक संवेदना के सक्रिय आविष्कारक अज्ञेय हैं। अज्ञेय की काव्य भाषा का एक विशिष्ट दर्शन है, जिस में अज्ञेय शब्द के अन्तरालों को नीरवताओं को सुनते हैं। वहाँ कवि ‘मौन’ को ही अधिक तीक्ष्ण अभिव्यंजना मान कर चला है। यह प्रयोग कविता में आधुनिक होने के साथ अनुभूति के स्तर पर अधिक व्यंजनात्मक हैं। अज्ञेय जी स्वीकारते हैं कि – “सही भाषा जब सहज भाषा हो जाए तभी वह वास्तव में सही है”।

श्रीशैलम् एक महान पुण्यक्षेत्र

श्रीशैलम् एक महान पुण्यक्षेत्र

श्रीशैलम् एक पवित्र शैव क्षेत्र है। कर्नूल जिला, नल्लमलाँ पहाड का यह सुप्रसिद्द प्राचीन पुण्य क्षेत्र है। यहाँ भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी और भ्रमरांबिकादेवी की पूजा हो रही है। यह भगवान शिव के बाहर ज्योतिलिंगो में से एक है। ऐतिहासिक विषय है कि बैद्धधर्म के आचार्य नागार्जुन इसी पहाड पर रहते थे। श्री शंकराचार्य ने शिवनंदलहरी में श्री शैलेश्वर की स्तुति की। सारे पुण्य क्षेत्र, सर्वतीर्थ युक्त यह सिद्ध क्षेत्र साक्षात भूलोक कैलाश, अखंड भूमंडल में आध्यात्मिक सुसंपन्न भारत खंड में श्रीशैलम एक महान पुण्यक्षेत्र है। पौराणिक शिखर श्रीशैलम की प्रधानता, क्षेत्र का प्रस्तापन, भक्त शिलाद की कहानी, करवीर की कहानी, त्रिपुरासुर संहार, पाताल गंगा की महानता, साक्षिगणेश, नंदी मंडलम, ओंकार क्षेत्र की महिमा दर्शन का फल द्वारा तथा उपदार, शंकरी पुर, खेचरी बिलम, अलंपूर, रससिद्ध की कहानी, अक्कमहादेवी की कहानी, भ्रमरांब की कहानी, ऐलेश्वर के क्षेत्र तथा तीर्थ, मुक्ति शिखरम, फलधृति आदि विषयों की विशेषताएँ यहाँ उपलब्ध है। इस पुण्यस्थल का दर्शन हमारे लिए सौभाग्य है। 

नयी कहानी और हरिशंकर परसाई

नयी कहानी और हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाई कहानीकार के साथ–साथ उपन्यासकार, निबंधकार, कुशल रेखाचित्रकार, संस्मरण व रिपोर्ताज के लेखक तथा स्तम्भकार भी हैं। नयी कहानी विकास की जिस प्रक्रिया से गुजरी है, उसके बीज प्रेमचंद और यशपाल में विद्यमान थे। आज के कहानीकार के अनुभव असीमित हैं। उसमें एक नयी संवेदनशीलता और प्रतिबद्दता हैं। संपूर्ण मानवता और ऐतिहासिक परंपरा उनके लेखन में होती हैं।

हरिशंकर परसाई ने लिखा है “ हिन्दी में कहानी की एक पुष्ट, समर्थ और स्वस्थ परंपरा है और वर्तमान कहानी उसका एक विकसित रूप हैं”। पुरानी पीढी के साथ बौद्दकता की कमी नहीं थी, किंतु बदलते हुए परिवेश के साथ अपने बने–बनाये साँचों को तोडना नहीं चाहते थे। नयी कहानी के कथानक, चरित्र – चित्रण, वातावरण, पात्र, कथोपकथन, भाषा-शैली और उद्देश्य के बने-बनाये साँचों को तोड फेंका हैं। नयी कहानी का लेखक आज के यथार्थ को अपने ढंग से खोजता और अभिव्यक्त करता है। कहानी की परिभाषा को बदलकर झूठी मर्यादा और आदर्श को तोडता हैं। नयी कहानी मानवीय मूल्यों को रेखांकित करती हैं। इन कहानियों के पात्र सिर्फ अपनी ही नहीं, अपने समय और वातावरण की कहानी कहते हैं। बने-बनाये जड ढाँचों से नयी कहानी ने स्वयं को अलग किया या इन ढाँचों से अलग जो कहानियाँ लिखी गयीं उन्हें नयी कहानी कहा गया। इस संदर्भ में हरिशंकर परसाई लिखिते हैं – “ हम से पहले की कहानी का एक पूर्व–निश्चित चौखटा था, छंद शास्त्र की तरह उसके भी पैटर्न तय थे। पर जैसे नवीन अभिव्यक्ति के आवेग से कविता में परंपरागत छंद-बंदन टूटे, वैसे ही अभिव्यक्ति की माँग करते हुए नये जीवन प्रसंगों, नये यथार्थ ने, कहानी को उस चौखट से निकाला। आज जीवन का कोई भी खंड, मार्मिक क्षण, अपने में अर्थपूर्ण कोई भी घटना या प्रसंग कहानी के तंत्र में बँध सकता हैं”। नयी कहानी आंदोलन के दौड में जो कहानीकार अपने योगदान केलिये विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, वे हैं कमलेश्वर, अमरकांत, भीष्म साहनी, हरिशंकर परसाई आदि।

“ जिन वर्गों के प्रति जनमानस में आक्रोश था, उन्हें कुछ लेखकों ने गहरे व्यंग से पेश किया। उन तमाम स्वार्थी वर्गें के प्रति एक तीव्र घृणा और हिराकत का दृष्टिकोण पैदा हुआ। हरिशंकर परसाई ने अकेले ही नेता वर्ग के आडंबर को अनावरित किया। केशवचंद्र शर्मा ने संस्थाऒं और व्यक्तियों की आंतरिक विसंगति को पकडा। शरदजोशी ने आदमी में उपज रहे दूसरे आदमी या उसके दोहरे व्यक्तित्व को उधेडकर रखा और श्रीलाल शुक्ल ने वर्तमान अफ्सरशाही को नश्तर लगाकर चीरा। जीजा-साली, सास-दामाद, पति-पत्नी के निहायत बेहूदे और भोडे मजाक के दायरे से निकलकर हास्य-व्यंग की रचनाऒं ने जनमानस की वाणी अख्तियार की”। यही तीव्र सामाजिक व्यंग्य आज की कहीनी की विशेष उपलब्धि है।

स्वातंत्रोत्तर हिन्दी कहानी ने कई मूल्यवान उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। नयी कहानी आंदोलन के रचनाकारों ने अपनी पूरी प्रतिभा और ईमानदारी से लेखन कार्य किया। इसके फलस्वरूप कहानी ने एक सम्मानजनक स्थान प्रप्त कर लिया। किन्तु सनू 1960 के बाद यह आंदोलन शिथिल पड गया। भरत पर चीन के आक्रमण के बाद परिस्थितियाँ बदलीं। फिर राष्ट्र भक्ति की लहर दौड गयी । उस समय के रचनाकार जो नयी कहानी आंदोलन के ही कहानीकार थे, समय के साथ अपने लेखन में परिवर्तन न कर सके।

परसाई ने भी उसी समय कहानियाँ लिखीं जब नयी कहानी आंदोलन शुरू हुआ था। किन्तु इस आंदोलन के भी अपने अन्तर्विरोध थे। मध्यवर्गीय कुण्ठा, एकाकीपन, विद्रोह और संवेदनहीनता की भावना में नये कहानीकार घिरे थे, तभी भोगे हुए यथार्थ, गहरी मानवीय संवेदना और अनुभव की प्रमाणिकता लेकर परसाई ने कहानी के क्षेत्र में प्रवेश किया। “ जब नयी कहानी में बकौल मुक्तिबोधः आधुनिक मानव की विविध मनोदशा को उसके सारे संदर्भों से काटकर, उसके सारे बाहूय सामाजिक – पारिवारिक संबंधों से काटकर, उस मनोदशा को अधर में लटकाकर चित्रित किया जा रहा था और कहानी में एक धुंध समा रही थी। भीतरी और बाहरी दोनों ओर, परिणाम स्वरुप वस्तु-सत्यों के संवेदनात्मक चित्रों का प्रायः लोप ही रहा था। तब परसाई ने समकालीन मनुष्य के भरसक विविधता-भरे, समग्र और संपूर्ण बिम्ब पेश किये।

अपने समय के सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और सार्थक क्षेत्रों की सच्ची तस्वीर पेश कर सकने केलिए साहित्य के क्षेत्र में व्यंग्य एक महत्वपूर्ण सशक्त माध्यम हैं। व्यंग्य मन की गहराईयों तक पहुँचकर सोचने केलिए बाध्य करता है। परसाई ने बडी कुशलता से अपनी व्यंग्य कथाऒं में समकालीन विद्रूप की मुकम्मल तस्वीर पेश की है। इसलिए परसाई की कहानियों पर नकारात्मक और ऋणात्मक सोच की कहानियाँ का आरोप लगाया गया था। घनंजय वर्मा ने कहा है – “ कुछ आचार्य–आलोचकों ने उन्हें नकारात्मक योजना, पराजयका सचक्र और अकेलात्मक दृष्टि वाला घोषित किया था और नयी कहानी की कुछ नये प्रवक्ताऒं ने उन्हें मूलतः दुःखी प्रणी कहा था और उनके लेखन के पीछे उनकी व्यक्तिगतहीनता ग्रंथियों की सक्रियता देखी थी। शायद यही कारण रहा हो कि पिछले तीन दशकों के अब तक लगभग डेढ सौ से आधिक कहानियाँ लिखने के बावजूद परसाई अधिक चर्चा का विषय नहीं बने। इस बात को नामवर सिंह ने एक साक्षात्कार में उठाया भी हैं, “ मुझे अफसोस है कि मेरा ध्यान उस हद तक नहीं गया, परसाई जी तो व्यंग्य के लेख भी लिख रहे थे, लेकिन वे शुरू में कहानियाँ भी लिख रहे थे। उन्हीं आरंभिक दिनों की उनकी भोलाराम का जीव, भूत के पाँव पीछे, जैसे उनके दिन फिरे जैसी चीजें आई थीं, यध्यपि मैं उनकी चर्चा नहीं कर सका। उन दिनों, क्योंकि मैंने एक लंबी योजना बनायी थी और सोचा था कि कुछ कहानियों के इर्दगिर्द लेख लिखे जायें जो पूरी नहीं हो सकी।“

हरिशंकर परसाई की कहानियाँ समकालीन आलोचना केलिये एक चुनौती बन गयीं क्योंकि उन्होंने कहानी विधा के सभी साँचों को तोडा हैं। उनकी कहानियों में निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, आलेख आदि कई विधाऒं के मिले–जुले रूप भी दिखाई पडते हैं।

SPOKEN HINDI

SPOKEN HINDI

1) INTRODUCTION

Hindi is not a very difficult language. You can learn it if you follow the systematic method that we have presented here.

First we must start with the alphabet. As you know in English we have vowels, a e, I, o, u and the other letters , the consonants, b, c, d, e, f, g, h, I, j, k, l, m, n, p, q, r, s, t, v, w, x, y and z.

In a similar way, we have 52 sounds in Hindi, 10 vowels and 40 consonants.

Once you have learnt the basic characters you can read and write Hindi.

First let us learn the VOWELS.

2) MASTER VOWELS

Read the following aloud 3 times.

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Now let us learn the CONSONANTS.

3) MASTER CONSONANTS

Read the following aloud 3 times

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We have learnt the consonants and vowels. It is good to learn the sounds in a sequence and this sequence of writing the consonants is called BARAHKADI. Let us master Barhakhadi.

4) MASTER SEQUENCE 9BARHAKHADI)

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5) MASTER BASIC WORDS

Now let us go to the next step and learn the basic verbs in Hindi with their English meanings. Read and say aloud 3 times, both hindi and English, the following verbs and over 10 days commit all the words in memory.

Dekhna- to see

Sunana- to hear

Bolna- to speak

Khana- to eat

So on 200 basic verbs

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List of basic nouns- 200

Now let us go to the next step and learn the basic nouns in Hindi with their English meanings. Read and say aloud 3 times the following words and over 10 days commit all the words in memory.

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List of basic adjectives- 100

Now let us go to the next step and learn the basic adjectives in Hindi with their English meanings. Read and say aloud 3 times the following words and over 10 days commit all the words in memory.

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List of basic adverbs- 50

Now let us go to the next step and learn the basic adverbs in Hindi with their English meanings. Read and say aloud 3 times the following words and over 10 days commit all the words in memory.

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6) MASTER PRONOUNS

Pronouns are obviously universal and very important. Let us learn pronouns. Pronouns are best learnt through a sentence. In the following, we have chosen the SIMPLE PRESENT TENSE to teach you pronouns.

Simple present tense is mainly used for LONG TERM ACTIONS like I eat non vegetarian, I go t temple every Friday, we go to Tirupati every year, I get up early every day, etc.

All these are long term actions. Let us learn simple present tense and also learn the pronouns.

Read the following aloud 3 times, both Hindi and English.

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7) MASTER INFLECTIONS

Read the following 3 times both Hindi and English.

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WH QUESTIONS

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8) MASTER TENSES

Read the following 3 times aloud.

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(GIVE TABLES OF TENSES WITH “WALK” AND ALL PRONOUNS)

SENTENCE

TENSES PRACTICE WITH TRANSITIVE AND INTRANSITIVE.

Read the following aloud 3 times

We have given practice sentences with most important tenses (with both transitive and intransitive verbs)

In both, in Hindi , note the change in the past tense.

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Practice with the following transitive and intransitive list given below

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9) CONVERSATIONS

Now we have got a basic understanding of Hindi. Let us now master basic sample conversations for a feel of Hindi

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10) STORIES

Read the following stories to get a feel of Hindi aloud 3 times.

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CONCLUSION

We have opened Hindi for you. This should be not the end but the beginning. You must now go on and listen to Hindi songs, stories etc, read Hindi, speak and write. Make Hindi a serious hobby and enjoy listening, reading, speaking and writing. Slowly you will get the feel and master this beautiful and wonderful language. Happy journey!!

कबीरदास (समाजसुधारक संत कबीरदास)

कबीरदास

आचार्य पं. रामचंद्र शुक्ल - “हिन्दू धर्मशास्त्र सम्बंधी ज्ञान उन्होंने हिन्दू साधु-सन्यासियों के सत्संग से प्राप्त किया, जिसमें उन्होंने सूफियों के सत्संग से प्राप्त प्रेमतत्व का मिश्रण किया, वैष्णवों से अहिंसा का तत्व लिया और एक अलग पंथ खड़ा किया। xxx इस प्रकार उन्होंने भारतीय ब्रह्मवाद सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपत्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खड़ा किया। उनकी बानी में ये समस्त तत्व लक्षित होते है”।

कबीर एक संत एवं समाज सुधारक थे। भारतीय धर्म-साधना के इतिहास में कबीर ऐसे महान विचारक एवं प्रतिभाशाली महाकवि है, जिन्होंने शताब्दियों की सीमा का उल्लंघन कर दीर्घकाल तक भारतीय जनता का पथ आलोकित किया और सच्चे अर्थों में जन-जीवन का नायकत्व किया। कबीर का सारा जीवन सत्य की खोज तथा असत्य के खण्डन में व्यतीत हुआ। कबीर की साधना मानने से नहीं, जानने से आरम्भ होती है।

कबीर सिकन्दर लोधी के समकालीन थे। स्वामी रामानंद इनके दीक्षा गुरू थे। ‘भक्तमाल’ में रामानंद के प्रमुख शिष्यों का उल्लेख करते हुए कबीर को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। कबीर मुख्यतः गुरू को ही अत्यंत महत्व दिया है। क्योंकि गुरू ही हमारा मार्गदर्शन करेगा।

जैसे ----
“गुरू कुम्हार सिष कुम्भ है, गढ़ गढ़ काढ़ै खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट”।।

“माया दीपक नर पतंग, भ्रमि-भ्रमि इवै पडंत।
कहै कबीर गुरू ग्यान थैं, एक आध उभरंत”।।

किंवदन्ती है कि एक विधवा ब्राह्मणी ने लोक-लाज के कारण नवजात कबीर को लहरतारा नाम के तालाब के निकट फेंक दिया था। नीरू जुलाहा और उसकी पत्नी नीमा ने बालक के रूप में विद्यमान सत्पुरूष को अपने घर लाकर पालन-पोषण किया। इस प्रकार जुलाहा परिवार में परिपालित सत्पुरूष ने युग के शोषण और बंधनों को शिथित करके सामाजिक जीवन का एक नया परिच्छेद उद्घाटित किया। जनश्रृतियों में प्रसिद्ध है कि कबीर की पत्नी का नाम लोई थी। उनके संतान के रूप में पुत्र कमाल और पुत्री कमाली का उल्लेख मिलता है।

“पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भयानक होय।
ढ़ाई अक्षर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय”।।

अक्षर-ब्रह्म के परम साधक कबीर सामान्य अक्षर ज्ञान से रहित थे। उन्होंने बडे स्पष्ट शब्दों में कहा है – “मसि कागद छुयौ नही, कलम गह्यौ नहिं हाथौ”। उन्होंने स्वयं नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्योंने उसे लिख लिया। उन्होंने सत्संग व्दारा पर्याप्त ज्ञान अर्जित किया था। उनकी वाणी में भारतीय अव्दैतवाद, अथवा ब्रह्मवाद, औपनिषिदिक रहस्यवाद, सूफियों के भावात्मक एवं साधनात्मक रहस्यवाद तथा उनके प्रेम की पीर, वैष्णव भक्ति तथा उसकी अहिंसा एवं जीवदया तथा सिद्धों एवं नाथों की हठयोग साधना आदि से सम्बंधित तत्वों का साधिकार निरूपण हुआ है।

कबीर की वाणी का संग्रह ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग – ‘साखी,सबद और रमैनी’। यह पंजाबी, राजस्थानी, खडीबोली, अवधी, पूरबी, ब्रजभाषा आदि कई भाषाओं की किचडी है।

कबीर सधुक्कडी भाषा में किसी भी सम्प्रदाय और रूढ़ियों की परवाह किये बिना खरी बात कहते थे। कबीर ने समाज में व्याप्त रूढिवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया। मूर्तिपूजा और खुदा को पुकारने के लिए जोर से आवाज लगाने पर कबीर ने गहरा व्यंग्य किया।

हिन्दुओं की मूर्तिपूजा पर खण्डन......

“पहान पूजै हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
या तो यह चक्की भली पीस खाये संसार”।।

तो मुसलमानों से पूछा………

“काँकर पाथर जोरिकै, मस्जिद लई बनाय।
ता चंदि मुल्ला बांगदै बहरा हुआ खुदाय”।।

हिन्दू-मुसलमान भेदभाव का खण्डन.....

“वही महादेव वही महमद ब्रह्मा आदम कहियो ।
को हिंदू को तूरक कहावै,एक जमीं पर रहियो”।।

शास्त्रों के नाम पर रूढ़िवाद का खण्डन......

“जाति-पांति पूछे नहिं कोई,
हरि को भजै सो हरि का होई”।

वर्णाश्रय व्यवस्था पर खण्डन..........

“एक बून्द एकै मल मूतर, एक चाम एक गूदा।
एक जोति में सब उत्पनां, कौन बाह्मन कौन सूदा”।।

बाह्याडम्बरों का खण्डन......

“तेरा साँई तुज्झ में,ज्यों पुहुपन में बास ।
कस्तूरी का मिरग ज्यों,फिर-फिर ढूँढे घास”।।

कबीर को हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी कवि माना जाता है।
साधना के क्षेत्र में जिसे ब्रह्म कहते है, साहित्य में उसे रहस्यवाद कहा जाता है। कबीर ने रहस्यवाद की दोनों कोटियों – साधनात्मक एवं भावनात्मक का वर्णन किया है। इनकी रहस्यात्मक अनुभूति गम्भीर है।

“जल में कुंभ-कुंभ में जल है, बाहिर भीतर पानी।
फूटा कुंभ जल जलहि समान, यहु तत कथो गियानी”।।

मुख्यतः हम समझना है कि पथभ्रष्ट समाज को उचित मार्ग पर लाना ही उनका प्रधान लक्ष्य है। कथनी के स्थान पर करनी को, प्रदर्शन के स्थान पर आचरण को तथा बाह्यभेदों के स्थान पर सब में अन्तर्निहित एक मूल सत्य की पहचान को महत्व प्रदान करना कबीर का उद्देश्य है।

रविवार, 6 मार्च 2016

जहाँ पहिया है (रिपोर्ताज) - लेखक-पी.साईनाथ (LESSON PLAN)

जहाँ पहिया है (रिपोर्ताज) - लेखक-पी.साईनाथ (LESSON PLAN)






रहीम के दोहे (LESSON PLAN)

रहीम के दोहे (LESSON PLAN)














कठपुतली (आत्मकथा) - भवानी प्रसाद मिश्र (LESSON PLAN)

कठपुतली(आत्मकथा)-भवानी प्रसाद मिश्र(LESSON PLAN)










कठपुतली(आत्मकथा)-भवानी प्रसाद मिश्र(Teaching Aids) - प्रशन्ना

कठपुतली(आत्मकथा)-भवानी प्रसाद मिश्र(Teaching Aids)

















मंगलवार, 1 मार्च 2016

रामदरश मिश्र


रामदरश मिश्र


रामदरश मिश्र हिन्दी के श्रेष्ठ उपन्यासकार, कवि और आलोचक हैं। उनकी रचनाओं का कथा साहित्य में विशिष्ट स्यान है। हिन्दी उपन्यास साहित्थ के संवर्ध्दन में डाँ.रामदरश मिश्र का महात्वपर्ण योगदान है। बहुमुखी प्रतिभा के घनी मिश्र ने उपन्यास, कविता, कहानी, आलोचना, निबन्ध तथा आत्मकथा जैसी विधाओं में महत्वपूर्ण लेखन किया है। इनमें सर्वाधिक ख्याति उनके उपन्यासों को मिली है।