रविवार, 9 जनवरी 2022

प्रान तुषातुर के रहे, थोरेहूँ जलपान | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE | NCERT | दोहे | #shorts | #hindi | #india

वृंद के दोहे


प्रान तुषातुर के रहे, थोरेहूँ जलपान।
पीछे जलभर सहस घट, डारे मिलत न प्रान।।

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नीकी पै फीकी लगे, बिन अवसर की बाता | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE | NCERT | दोहे | #shorts | #hindi | #india

वृंद के दोहे


नीकी पै फीकी लगे, बिन अवसर की बाता।

जैसे बरनत जुद्ध में, नहिं सिंगार सुहाता।।

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साहित्य भारती | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | FIRST YEAR HINDI| CHAPTER 02 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

साहित्य भारती | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | FIRST YEAR HINDI| CHAPTER 02 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india


भक्तिकाल के प्रसिद्ध राम भक्त कवि तुलसीदास था। तुलसीवास का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन् 1532 में हुआ था। रामभक्ति परंपरा में तुलसी अंतुलनीय हैं। रामचरितमानस कवि की अनन्य रामभक्ति और उनके सृजनात्मक कौशल का मनोरम उदाहरण है। उनके राम मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक हैं जिनके माध्यम से तुलसी ने नीति, स्नेह, शील, विनय, त्याग जैसे उदात्त आदर्शों को प्रतिष्ठित किया। रामचरितमानस के अलावा कवितावली, गीतावली, दोहावली, कृष्णगीतावली, विनयपत्रिका आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ। हैं। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।

तुलसी ने रामचरितमानस की रचना अवधी में और विनयपत्रिका तथा कवितावली की रचना ब्रजभाषा में की। | उस समय प्रचलित सभी काव्य रूपों को तुलसी की रचनाओं में देखा जा सकता है। रामचरितमानस का मुख्य छंद चौपाई है तथा बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छंद पिरोए गए हैं। विनयपत्रिका की रचना गेय पदों में हुई है। कवितावली में सवैया और कवित्त छंद की छटा देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्यों का उत्कृष्ट रूप है।

तुलसीदास के दोहे

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।

सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।


तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।

वसीकरण यह मंत्र है, परिहरु वचन कठोर।।


सोई ज्ञानी सोई गुनी जन, सोई दाता ध्यानी।

तुलसी जाके चित्त भई, राग द्वेष की हानि।।


तुलसी या संसार में, सबसे मिलिए धाय।

न जाने किस रूप में, नारायण मिल जाय।।


तुलसी काया खेत है, मनसा भयो किसान।

पाप-पुण्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान।।


तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।

साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसो एक।।


तुलसी पावस के समै, धरीं कोकिला मौन।

अब तो दादुर बोलि है, हमें पूछि है कौन॥


सम कंचन काँचौ गिनत, सत्रु मित्र सम होइ।

तुलसी या संसार में कहत संतजन सोइ।।

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साहित्य भारती | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | FIRST YEAR HINDI| CHAPTER 01 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

साहित्य भारती | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | FIRST YEAR HINDI| CHAPTER 01 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी

पिता का नाम : नीरू 

माता का नाम : नीमा

पत्नी का नाम : लोई बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)

मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी

मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।

कबीर के दोहे

सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपकार।

लोचन अनँत उघारिया, अनंत दिखावन हार।।


सोना सज्जन साधु जन टूटि जुरै सौ बार।

दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।।


साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै, साँच है, ताके हिरदै आप।।


जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।

यह आपा तू डारि दे, दया करै सब कोय ॥


बोली तो अनमोल है, जो कोइ जानै बोल।

हिये तराजू तोलि के, तब मुख बाहर खोल।।


कबीर गर्व न कीजिये, काल गहे कर केस।

ना जानौ कित मारि है, क्या घर क्या परदेस॥


जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप।

जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप


रात गंवाई सोय कर, दिवस गंवायो खाय।

हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥

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तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE |प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

तुलसी के दोहे


तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।

सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।

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तुलसी या संसार में, सबसे मिलिए धाय | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE |प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

तुलसी के दोहे


तुलसी या संसार में, सबसे मिलिए धाय।

न जाने किस रूप में, नारायण मिल जाय।।

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