मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला (आई.पी.ए.) (ANTARRASHTRIYA SWN VARNMALA IPA)

अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला (आई.पी.ए.) (ANTARRASHTRIYA SWN VARNMALA IPA) अंतरराष्ट्रीय स्वन वर्णमाला (आई.पी.ए.) (ANTARRASHTRIYA SWN VARNMALA IPA)

स्वन गुणिक दृग्विषय : अक्षर, बलाघात, तान और अनुतान (SWANGUNIK DRIGVISHAY AKSHAR BALAGHAT TAAN AUR ANUTAAN)

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स्वरों एवं व्यंजनों का वर्गीकरण (SWARON AUR VYANJANON KA VARGIKARAN)

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वाक् उत्पादन प्रक्रिया (VAAK UTPADAN PRAKRIYA)

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स्वन विज्ञान : परिभाषा एवं स्वरूप (SWANVIGYAN PARIBHASHA AUR SWAROOP)

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भाषा संरचना के विभिन्न स्तर और उनके अन्तसंबंध (BHASHA SANRACHNA KE VIBHINNA STR AUR UNKE ANTASSAMBANDH)

भाषा संरचना के विभिन्न स्तर और उनके अन्तसंबंध (BHASHA SANRACHNA KE VIBHINNA STR AUR UNKE ANTASSAMBANDH) भाषा संरचना के विभिन्न स्तर और उनके अन्तसंबंध (BHASHA SANRACHNA KE VIBHINNA STR AUR UNKE ANTASSAMBANDH)

भाषा की परिभाषा और स्वरूप (BHASHA KI PARIBHASHA AUR SWAROOP)

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गुरुवार, 4 जून 2020

पर्वत प्रदेश में पावस (कविता) - सुमित्रानंदन पंत

पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत





पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, 
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकार पर्वत अपार 
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़, 
अवलोक रहा है बार-बार 
नीचे जल में निज महाकार,

जिसके चरणों में पला ताल 
दर्पण-सा फैला है विशाल!

गिरि का गौरव गाकर झर-झर 
मद में नस-नस उत्तेजित कर 
मोती की लड़ियों-से सुंदर 
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर 
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर 
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर 
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर 
फड़का अपार पारद के पर! 
रव-शेष रह गए हैं निर्झर! 
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल! 
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल! 
यों जलद-यान में विचर-विचर 
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।



जन्म : 20 मई 1900
निधन : 28 दिसंबर 1977
जन्म स्थान : कौसानी-अलमोड़ा, उत्तराखंड, भारत

विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी रचनाकार, छायावादी युग के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत है। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जी है। सुमित्रानंदन पंत झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। पंत जी की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद वे मार्क्स और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए, बाद की कविताओं में अरविंद दर्शन का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। 

1961 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया। पंत जी को कला और बूढ़ा चाँद कविता संग्रह पर 1960 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार, 1969 में चिदंबरा संग्रह पर ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं - वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण और लोकायतन।

शुक्रवार, 22 मई 2020

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें (कविता) - शमशेर बहादुर सिंह

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें (कविता) - शमशेर बहादुर सिंह 
(दस-ग्यारह साल की एक लड़की) 


गोल हैं खूब मगर 
आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा। 
आप पहने हुए हैं कुल आकाश 
तारों - जड़ा ; 
सिर्फ़ मुँह खोले हुए हैं अपना 
गोरा - चिट्टा 
गोल - मटोल, 

अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त। 
आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे 
- खूब हैं गोकि! 
वाह जी, वाह! 

हमको बुद्धू ही निरा समझा है! 
हम समझते ही नहीं जैसे कि 
आपको बीमारी है : 

आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं, 
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि 
बढ़ते ही चले जाते हैं 
दम नहीं लेते हैं जब तक बि ल कु ल ही 
गोल न हो जाएँ, 
बिलकुल गोल। 

यह मरज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में... 
आता है।

गुरुवार, 21 मई 2020

वह चिड़िया जो (कविता) - केदारनाथ अग्रवाल

वह चिड़िया जो - केदारनाथ अग्रवाल 

वह चिड़िया जो 
चोंच मारकर 
दूध - भरे झुंडी के दाने 
रुचि से, रस से खा लेती है 
वह छोटी संतोषी चिड़िया 
नीले पंखोंवाली मैं हूँ 
अन्न से बहुत प्यार है। 


वह चिड़िया जो 
कंठ खोलकर 
बूढ़े वन - बाबा की खातिर 
रस उँडेलकर गा लेती है 
वह छोटी मुँह बोली चिड़िया 
नीले पंखोंवाली मैं हूँ 
मुझे विजन से बहुत प्यार है । 


वह चिड़िया जो 
चोंच मारकर 
चढ़ी नदी का दिल टटोलकर 
जल का मोती ले जाती है 
वह छोटी गरबीली चिड़िया 
नीले पंखोंवाली मैं हूँ 
मुझे नदी से बहुत प्यार है।