शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

तुलसी सुधा (LESSON PLAN)

तुलसी सुधा (LESSON PLAN)


तुलसी सुधा

कवि परिचय:-

        गोस्वामी “तुलसीदास” भक्तिकाल की सगुणभक्ति धारा के “रामभक्ति शाखा” के प्रवर्तक एवं प्रतिनिधी कवि है। उनका जन्म सन् 1532 में और मृत्यू सन् 1623 में हुआ था। इनके पिता का नाम “आत्मारामदूबे” और माता का नाम “हुलसी” था। मूला नक्षत्र के अशुभा मुहुर्त में पैदा होने के कारण इनके माता पिता इन्हें छोड दिया था। “बाबानरहरिदास” ने इनका पालन-पोषण किया था। बाद में “रत्नावली” नामक एक स्त्री से आपका विवाह हुआ था। तुलसी राम के अनन्य भक्त थे। वे मध्ययुग के सबसे बडे लोकनायक माना गया था। क्योंकि वे समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को मार्गदर्शन किया था। इनके गुरु का नाम बाबानरहरिदास” माना गया था।
          तुलसी की निम्नलिखित बारह रचनाएँ हैं – “रामचरितमानस, विनयपत्रिका, वैराग्य संदीपिनी, रामलला नहछू दोहावली, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, कृष्णगीतावली, कवितावली, गीतावली, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल” आदि प्रसिद्द ग्रंथ हैं। “रामचरितमानस” तुलसी की अमर रचना है। इन्होंने अवधि और व्रज दोनों ही भाषाओं में रचनाएँ किये थे। भाषा और शैली दोनों ही दृष्टी से वे अपने समय के बेजोड थे।
तुलसी संत सुअंब तरु, फूलिं फलहिं परहेत।
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत।।
                                                    













तुलसी सुधा (Teaching Aids)


तुलसी सुधा (Teaching Aids)



तुलसी सुधा

कवि परिचय:-

        गोस्वामी “तुलसीदास” भक्तिकाल की सगुणभक्ति धारा के “रामभक्ति शाखा” के प्रवर्तक एवं प्रतिनिधी कवि है। उनका जन्म सन् 1532 में और मृत्यू सन् 1623 में हुआ था। इनके पिता का नाम “आत्मारामदूबे” और माता का नाम “हुलसी” था। मूला नक्षत्र के अशुभा मुहुर्त में पैदा होने के कारण इनके माता पिता इन्हें छोड दिया था। “बाबानरहरिदास” ने इनका पालन-पोषण किया था। बाद में “रत्नावली” नामक एक स्त्री से आपका विवाह हुआ था। तुलसी राम के अनन्य भक्त थे। वे मध्ययुग के सबसे बडे लोकनायक माना गया था। क्योंकि वे समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को मार्गदर्शन किया था। इनके गुरु का नाम बाबानरहरिदास” माना गया था।

       तुलसी की निम्नलिखित बारह रचनाएँ हैं– “रामचरितमानस, विनयपत्रिका, वैराग्य संदीपिनी, रामलला नहछू दोहावली, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, कृष्णगीतावली, कवितावली, गीतावली, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल” आदि प्रसिद्द ग्रंथ हैं। “रामचरितमानस” तुलसी की अमर रचना है। इन्होंने अवधि और व्रज दोनों ही भाषाओं में रचनाएँ किये थे। भाषा और शैली दोनों ही दृष्टी से वे अपने समय के बेजोड थे।

तुलसी संत सुअंब तरु, फूलिं फलहिं परहेत।
 इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत।।

                                              






गुरु का महत्व - संत कबीरदास (Teaching Aids)

गुरु का महत्व - संत कबीरदास (Teaching Aids)



गुरु का महत्व

                               (संत कबीरदास)
कवि परिचय:- (जन्म 1399- मृत्य 1495)
      
         कबीर एक संत एवं समाज सुधारक थे। महात्मा “कबीरदास” भक्तिकाल की निर्गुणभक्ति धारा के “ज्ञानाश्रयी शाखा” के कवियों मे सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। आप हिन्दी के सर्वप्रथम “रहस्यवादी” कवि भी है। आपका जीवन चरित्र अत्यंत विवादास्पद है। फिर भी यह मानी हुई बात है कि आपका जन्म हिंदु विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। और आपका पालन-पोषण मुसलमान जुलाहा दंपति ने किया। फिर भी इन्होंने “हिंदु-मुसलिम-ऐक्यविधायक” बने। इन्होंने दोनों धर्मों के बाह्याडंबरों और दुराचारों का खण्डन किया था। वे अनपढ थे। उन्होंने खूब देशाटन किया था। वे स्वयं आत्मज्ञानी थे। इनके गुरु का नाम “रामानंद” माना गया था। “धर्मदास” इनके प्रधान शिष्य थे।
        
कबीर की ग्रंथ “बीजक” है। आप करघे पर काम करते हुए बोलते जाते थे। आपके शिष्यों ने आपके वचनों को संगृहित करके एक ग्रंथ लिखा था। उस ग्रंथ का नाम बीजक है। इसमें “साखी, सबद, रमैनी” तीन भाग हैं। उनकी भाषा “सधुक्कडी” या “खिचडी” कही जाती हैं। कबीरदास के अनेक रुप हैं। वे भक्त, प्रेम, ज्ञानी और समाज सुधारक। 
       
गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढ गढ काढै खोट।

 अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।