मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

श्रीलाल शुक्ल

श्रीलाल शुक्ल

श्रीराम वर्मा

श्रीराम वर्मा

श्रीकांत वर्मा

श्रीकांत वर्मा

शिवमंगल सिंह सुमन

शिवमंगल सिंह सुमन

शिव प्रसाद सिंह

शिव प्रसाद सिंह

कवियों के कवि शमशेर बहादुर सिंह


शमशेर बहादुर सिंह




शमशेर की कविताओं में लोक जीवन का स्वरूप स्वयमेव उभरकर आ जाता है। वे आम जनता के पक्ष में सृजनरत बनते हैं। लोकपक्ष को बहुत ही मार्मिकता के साथ वे कविताओं में प्रस्तुत करते हैं। प्रकृति के सभई तत्व उनकी कविताओं में जीवंत रूप में उपस्थित होते हैं। लोक जीवन इन सभी तत्वों पर टिका रहता है। मिट्टी की खुश्बू उनकी कविता द्वारा उपलब्ध होती है। प्रकटतः न सही शमशेर बहादूर सिंह लोक कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। अपने स्थानीय परिवेश का वर्णन कविता द्वारा वे व्यक्त करते हैं। शामशेर की कविता पथरीली घास भरी इस पहाडी के ढांल पर में प्रकृति का सजीव चित्र के माध्यम से वे लोकदृष्टि को व्यक्त करते हैं-

एक अनमना-सा आधा स्केचः
धूप में चमकती, मेरी गोद में एक सफेद कापी खुली
हिलते-चमकते बहुत-हरे छोटे-बड़े पेड़े मेरे चारों ओर खड़े
धुप से उज्जवल-नीलों आकाश में,
धुले आकाश में उज्वल, वर्षा के बादल।
माने रूई की बिखरी-बिखरी छोटी-बड़ी पूनियाँ

कभी-कभी धीमी-धीमी साफ मधुर हवा की गूँज

शकुंतला माथुर

शकुंतला माथुर

तोप | वीरेन डंगवाल | top |viren dangwal | cbse | hindi | class 10


तोप - वीरेन डंगवाल

(1947 -2015)

5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर में जन्मे वीरेन डंगवाल ने आरंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में पाई। पेशे से प्राध्यापक डंगवाल पत्रकारिता से भी जुड़े हुए हैं।

समाज के साधारण जन और हाशिए पर स्थित जीवन के विलक्षण ब्योरे और दृश्य वीरेन की कविताओं की विशिष्टता मानी जाती है। इन्होंने ऐसी बहुत-सी चीज़ों और जीव-जंतुओं को अपनी कविता का आधार बनाया है जिन्हें हम देखकर भी अनदेखा किए रहते हैं।

वीरेन के अब तक दो कविता संग्रह इसी दुनिया में और दुष्चक्र में स्रष्टा प्रकाशित हो चुके हैं। पहले संग्रह पर प्रतिष्ठित श्रीकांत वर्मा पुरस्कार और दूसरे पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अलावा इन्हें अन्य कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वीरेन डंगवाल ने कई महत्त्वपूर्ण कवियों की अन्य भाषाओं में लिखी गई कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। 28 सितंबर 2015 को इनका देहावसान हुआ।

प्रस्तुत पाठ में ऐसे ही दो प्रतीकों का चित्रण है। पाठ हमें याद दिलाता है कि कभी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के इरादे से आई थी। भारत ने उसका स्वागत ही किया था, लेकिन करते-कराते वह हमारी शासक बन बैठी। उसने कुछ बाग बनवाए तो कुछ तोपें भी तैयार कीं। उन तोपों ने इस देश को फिर से आज़ाद कराने का सपना साकार करने निकले जाँबाज़ों को मौत के घाट उतारा। पर एक दिन ऐसा भी आया जब हमारे पूर्वजों ने उस सत्ता को उखाड़ फेंका। तोप को निस्तेज कर दिया। फिर भी हमें इन प्रतीकों के बहाने यह याद रखना होगा कि भविष्य में कोई और ऐसी कंपनी यहाँ पाँव न जमाने पाए जिसके इरादे नेक न हों और यहाँ फिर वही तांडव मचे जिसके घाव अभी तक हमारे दिलों में हरे हैं। भले ही अंत में उनकी तोप भी उसी काम क्यों न आए जिस काम में इस पाठ की तोप आ रही है...

तोप

कंपनी बाग के मुहाने पर

धर रखी गई है यह 1857 की तोप

इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले

कंपनी बाग की तरह

साल में चमकाई जाती है दो बार।


सुबह-शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी

उन्हें बताती है यह तोप

कि मैं बड़ी जबर

उड़ा दिए थे मैंने

अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे

अपने ज़माने में


अब तो बहरहाल

छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो

तो उसके ऊपर बैठकर

चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप

कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं।

खास कर गौरैय


वे बताती है कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप

एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।

तुलसीदास

तुलसीदास