शनिवार, 30 जनवरी 2016

भवानीप्रसाद मिश्र

भवानीप्रसाद मिश्र

भगवतीचरण वर्मा

भगवतीचरण वर्मा

प्रभाकर माचवे



प्रभाकर माचवे






प्रभाकर माचवे की कविताओं में लोकजीवन का संपूर्ण दृश्य उभरकर आता है। प्रकृति का सजीव चित्र भी प्रस्तुत करने में वे सक्षम हैं। लोक संस्कृति की पूर्ण अभिव्यक्ति एक दृश्य में दृष्टव्य होती हैं-

उनकाल अछोर खेतों में 

हलवाहों के बालकगण कुछ खेल रहे हैं

पहली झड़ियों से निर्मित कर्दम की गेदों झेल रहै हैं

वे बालक हैं, वे भी कर्दम-मिट्टी के ही राजदुलारे

बादल पहले-पहले बरसे, बचे-खुचे छितरे दिशहारे 

सद्यस्नाता हरित-श्यामता, शस्य-बालियों में प्रफुल्लता

प्रकृति में सौन्दर्य फैलता

किन्तु गाँववालों के लड़के ये मट मैल्,

करते धक्कामधक्का।