बुधवार, 6 सितंबर 2023

मत बांटो इंसान को | विनय महाजन | MAT BANTO INSAAN KO | VINAY MAHAJAN | CBSE | HINDI | CLASS 6

मत बांटो इंसान को - विनय महाजन  
MAT BANTO INSAAN KO - VINAY MAHAJAN


मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने

बांट लिया इंसान को

धरती बांटी, सागर बांटा

मत बांटों इंसान को।



अभी राह तो शुरू हुई है

मंजिल बैठी दूर है

उजियाला महलों में बंदी

हर दीपक मजबूर है।



मिला न सूरज का संदेशा

हर घाटी मैदान को।

धरती बांटी, सागर बांटा

मत बांटों इसान को।

अब भी हरी भरी धरती है



ऊपर नील वितान है

पर न प्‍यार हो तो जग सूना

जलता रेगिस्‍तान है।



अभी प्‍यार का जल देना है

हर प्‍यासी चट्टान को

धरती बांटी, सागर बांटा

मत बांटों इंसान को।



साथ उठें सब तो पहरा हों

सूरज का हर द्वार पर

हर उदास आंगन का हक हो

खिलती हुई बहार पर।



रौंद न पाएगा फिर कोई

मौसम की मुस्‍कान को।

धरती बांटी, सागर बांटा मत बांटों इंसान को।

रविवार, 23 जुलाई 2023

दो हरियाणवी लोकगीत | Haryanvi Lok Geet | ऋतु गीत - संत गंगादास | विदाई गीत | Haryanvi Folk Song | cbse

दो हरियाणवी लोकगीत


ऋतु गीत - संत गंगादास (1823-1913)

सावण में सूखे रह गए, गिरधर बिन भाग म्हारे।।

स्याम घटा घन गहर-सी आवै।

देख लहर पै लहर-सी आवै।

हमें कृष्ण बिन कहर-सी आवै।

आगे फेर सलोनो आती।

हमें श्याम बिन वृथा लगाती।

गंगादास लेस न पाती।

हम मोह सिंधु में बह गए, कहो धोवें दाग हमारे।।


विदाई गीत - पारंपरिक

काहे को ब्याही बिदेस रे लक्खी बाबुल मेरे।

हम हैं रे बाबुल मुँडेरे की चिड़ियाँ,

कंकरी मारे उड़ जायें रे, लक्खी बाबुल मेरे।

हम हैं रे बाबुल चोणे की गउएँ,

जिधर हाँको हँक जायें रे, लक्खी बाबुल मेरे।

घर भी सूना आंगन भी सूना लाडो चली पिता घर त्याग।

घर में तो उस के बाबुल रोवैं अम्मां बहिन उदास।

कोठे के नीचे से निकली पलकिया-निकली पलकिया,

आम नीचे से निकला है डोला, भय्या ने खाई है पछाड़।
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छूना और देखना |Jo Dekhakar Bhee Nahin Dekhte | cbse | hindi

छूना और देखना


तुम जानते ही हो कि हम आसपास की दुनिया को अपनी इंद्रियों की मदद से महसूस करते हैं। आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं, नाक से सूँघते हैं, जीभ से स्वाद लेते हैं और त्वचा से छूकर किसी चीज़ का अनुभव करते हैं। आओ हम प्रयोगशाला में अपनी नज़र और स्पर्श के माध्यम से कुछ प्रयोग करें और चित्र बनाकर देखें कि हम लोग अपनी आँखों से कितना बारीक अवलोकन कर पाते हैं और कितना छूकर।

इस गतिविधि के लिए आठ-दस किस्म के पेड़-पौधों की पत्तियों की ज़रूरत होगी और तीन चार साथियों की भी। जितने दोस्त इस प्रयोग में शामिल होना चाहें, उतने कागज़ के लिफ़ाफ़े पास रखने होंगे जिनसे आर-पार दिखे।

हर लिफ़ाफ़े में एक पत्ती डाल दो। हर दोस्त को एक-एक लिफ़ाफ़ा दे दो। हाँ, यह ध्यान रखना कि तुम्हारे दोस्त यह न देख पाएँ कि उनके लिफ़ाफ़े में किस तरह की पत्ती डाली जा रही है।

अब तुम अपने दोस्तों से यह कहो कि वे अपने-अपने हाथ डालकर पत्ती को छुएँ। अंदाज़ा लगाएँ कि उनके पास किस पौधे की पत्ती है। पत्ती के आकार को टटोलें और उसका चित्र बनाने का प्रयास करें। इस पूरी प्रक्रिया में पत्ती को आँखों से नहीं देखना है।

जब बिना देखे चित्र बनाने का कार्य पूरा हो जाए तो लिफ़ाफ़े से पत्ती निकाल कर सामने रखें और उसे देखकर चित्र बनाएँ।

*** कौन सा चित्र ज़्यादा बारीकी से बना है? बिना देखे बनाया हुआ या देखकर बनाया हुआ?

*** क्या और कोई तरीका भी है जिससे पत्ती को बिना देखे पहचानने में सहयोग मिल सकता है?

एक दौड़ ऐसी भी | Ek Daud Aisi Bhi | cbse | ncert | hindi

एक दौड़ ऐसी भी


कई साल पहले ओलंपिक खेलों के दौरान एक विशेष दौड़ होने जा रही थी। सौ मीटर की इस दौड़ में एक गज़ब की घटना हुई। नौ प्रतिभागी शुरुआत की रेखा पर तैयार खड़े थे। उन सभी को कोई-न-कोई शारीरिक विकलांगता थी।

सीटी बजी, सभी दौड़ पड़े। बहुत तेज़ तो नहीं, पर उनमें जीतने की होड़ ज़रूर तेज़ थी। सभी जीतने की उत्सुकता के साथ आगे बढ़े। सभी, बस एक छोटे से लड़के को छोड़कर। तभी एक छोटा लड़का ठोकर खाकर लड़खड़ाया, गिरा और रो पड़ा।

उसकी आवाज़ सुनकर बाकी प्रतिभागी दौड़ना छोड़ देखने लगे कि क्या हुआ? फिर, एक-एक करके वे सब उस बच्चे की मदद के लिए उसके पास आने लगे। सब के सब लौट आए। उसे दोबारा खड़ा किया। उसके आँसू पोंछे, धूल साफ़ की। वह छोटा लड़का ऐसी बीमारी से ग्रस्त था, जिसमें शरीर के अंगों की बढ़त धीमे होती है और उनमें तालमेल की कमी भी रहती है। इस बीमारी को डाउन सिंड्रोम कहते हैं। लड़के की दशा देख एक बच्ची ने उसे अपने गले से लगा लिया और उसे प्यार से चूम लिया, यह कहते हुए कि, “इससे उसे अच्छा लगेगा।”

फिर तो सारे बच्चों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा और साथ मिलकर दौड़ लगाई और सब के सब अंतिम रेखा तक एक साथ पहुँच गए। दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे, इस सवाल के साथ कि सब के सब एक साथ बाज़ी जीत चुके हैं, इनमें से किसी एक को स्वर्ण पदक कैसे दिया जा सकता है। निर्णायकों ने भी सबको स्वर्ण पदक देकर समस्या का शानदार हल ढूँढ़ निकाला। सब के सब एक साथ विजयी इसलिए हुए कि उस दिन दोस्ती का अनोखा दृश्य देख दर्शकों की तालियाँ थमने का नाम नहीं ले रही थीं।

पेपरमेशी | जया विवेक | Paper Mache | jaya vivek | craft | cbse | hindi

पेपरमेशी - जया विवेक


मिट्टी की मूर्तिकला के समान कागज़ की कला 'पेपरमेशी' पुरानी नहीं है। अट्ठारहवीं शताब्दी में इस माध्यम में यूरोप में बहुत काम हुआ। सुंदर डिजाइनों वाले डिब्बे, छोटी-छोटी सजावट की चीजें आदि बनाई गई। दरवाजों और चौखटों पर सुंदर बेलबूटे भी इससे बनाए जाते थे।

सन् 1850 के आसपास बड़े-बड़े भवनों के अंदर की सजावट के लिए भी पेपरमेशी का खूब उपयोग हुआ। इससे मुखौटे, गुड़ियों के चेहरे, चित्र के चारों तरफ़ लगने वाले नक्काशीदार फ्रेम, ब्लॉक आदि भी बनाए जाते थे।

अपने यहाँ भी पेपरमेशी में मूर्तियाँ, डिब्बे इत्यादि खूब बनाए जाते हैं। बिहार में मानव आकार जितनी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ भी बनाई जाती हैं और उन्हें वहाँ की प्रसिद्ध चित्र शैली मधुबनी के समान रंगा भी जाता है। बिहार में इस तरह मूर्तियाँ बनाने वालों में सुभद्रादेवी का नाम प्रसिद्ध है। कश्मीर में पेपरमेशी से डिब्बे बनाने का काम बहुत सुंदर होता है। उनके ऊपर बेलबूटों के सुंदर डिज़ाइन भी बनाए जाते हैं।

अलग-अलग प्रदेशों में लोकनृत्यों और लोककलाओं में कागज़ के बने मुखौटों का खूब उपयोग किया जाता है।

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पेपरमेशी

कागज़ से तरह-तरह की आकृतियाँ, खिलौने, सजावट के लिए झालर, झंडियाँ आदि तो तुमने खूब बनाई होंगी, पर कभी मूर्ति बनाई है कागज़ से? हाँ भई, कागज़ से भी मूर्ति बनाई जा सकती है। इस कला को अंग्रेज़ी में पेपरमेशी कहा जाता है।

कागज़ से मूर्ति बनाने की चार विधियाँ हैं। इन विधियों के बारे में कुछ मूल बातें यहाँ दे रहे हैं।

कागज़ को भिगोकर


सबसे पहले यह तय करो कि तुम क्या बनाना चाहते हो क्योंकि जो भी बनाना चाहोगे उसके साँचे की ज़रूरत पड़ेगी।

पुराने अखबार या रद्दी कापी-किताबों को टुकड़े-टुकड़े करके पानी में भिगो दो। कागज़ को डेढ़-दो घंटे भीगने दो। जब कागज़ अच्छी तरह भीग जाए तो एक-एक टुकड़ा लेकर साँचे पर चिपकाते जाओ। जब परे साँचे पर एक तह जम जाए तो उसके ऊपर पाँच-छह तह गोंद की मदद से चिपकाकर बनाओ। अब इसे सूखने के लिए रख दो। सूख जाने पर सावधानी से धीरे-धीरे साँचे पर कागज़ से बनी रचना को अलग करो। तुम्हारी मूर्ति तैयार है। यह वज़न में हलकी भी होगी और गिरने पर टूटने का डर भी नहीं रहेगा। इसे तुम मन चाहे रंगों से रंग भी सकते हो।

इस विधि से तुम मुखौटे भी बना सकते हो। और हाँ, मुखौटे के लिए तो साँचे की भी आवश्यकता नहीं। बस किसी चेहरे के आकार का बरतन का गोल पेंदा उपयोग कर सकते हो। तसला या बड़ा कटोरा (या अन्य कोई बरतन) चाहिए। इस पर ऊपर बताए तरीके से ही गीले कागज़ की पाँच-छह तह चिपकाओ और सूखने के लिए छोड़ दो। जब अच्छी तरह सूख जाए तो इसे मुँह पर लगाकर अनुमान से आँख और नाक के निशान बना लो। आँखों की जगह दो छेद बनाओ। नाक की जगह पर भी छेद बना सकते हो, ताकि तुम्हारी नाक बाहर निकल आए। चाहो तो मुखौटे में कागज़ की नाक भी बना सकते हो। जब कागज की तीन-चार तह बन जाए तो एक सूखे कागज़ को हाथ से दबाकर, मुट्ठी में भींचकर गोला-सा बना लो। इस गोले को दबाकर ऊपर से संकरा और नीचे से थोड़ा चौड़ा नाक जैसा आकार दे दो। अब इसे गोंद लगाकर मुखौटे पर नाक. की जगह चिपका दो।

मुखौटे पर रंग करके उसे सुंदर बना सकते हो। रंग की मदद से ही आँख की भौंहें, मुँह, मूँछ आदि भी बना लो। भुट्टे के बाल, जूट आदि लगाकर भी दाढ़ी, मूँछ या भौंहें बनाई जा सकती हैं!

कागज़ की लुगदी बनाकर


कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़े किसी पुराने मटके या अन्य बरतन में पानी भरकर भिगो दो। इन्हें दो-तीन दिन तक गलने दो। जब कागज़ अच्छी तरह गल जाए तो उसे पत्थर पर कूटकर एक-सा बना लो। अब इस पर गोंद या पिसी हुई मेथी का गाढ़ा घोल डालकर अच्छी तरह मिला लो। इस तरह कागज़ की लुगदी तैयार हो जाएगी। इस लुगदी से मनचाही मूर्ति बना सकते हो। गाँवों में इस विधि से डलिया आदि बनाई जाती हैं। शायद तुमने भी बनाई हो। पर इस तरह की लुगदी से सुघढ़ तथा जटिल डिज़ाइन वाली मूर्तियाँ या वस्तुएँ नहीं बनाई जा सकतीं।

लुगदी में खड़िया (चॉक पाउडर) मिलाकर


अगर खड़िया मिलाकर बनाना है तो एक किलो कागज़ की लुगदी में एक पाव गोंद, पाँच किलो खड़िया चाहिए। कागज़ को पानी में भिगोकर लुगदी बना लो। अगर पानी ज़्यादा लगे तो हाथ से दबाकर निकाल दो। अब इसमें खड़िया मिलाते हुए आटे जैसा गूंधते जाओ। बीच में गोंद भी मिला लो। जब तीनों चीजें अच्छी तरह मिल जाएँ तो मूर्ति के लिए लुगदी तैयार है।

अब इससे तुम जैसी चाहो, वैसी मूर्ति बना सकते हो। साँचे से भी और बिना साँचे के भी। बनने वाली मूर्तियाँ खड़िया के कारण सफ़ेद होंगी। रंग करके मूर्ति को सुंदर बना सकते हो। बाज़ार में बिकने वाले बहुत-से खिलौने इसी विधि से बनते हैं।

लुगदी में मिट्टी मिलाकर


इस विधि में एक किलो कागज़ के लिए एक पाव गोंद तथा दस किलो मिट्टी की आवश्यकता होगी। कागज़ गल जाने पर लुगदी तैयार करते समय उसमें साफ़ छनी महीन मिट्टी मिलाते जाओ और आटे जैसा गूंधकर एक-सा करते जाओ। गोंद भी इसी बीच मिला दो।

लुगदी देखने में मिट्टी की तरह दिखेगी, पर हलकी होगी। इससे तुम साँचे या बिना साँचे के उपयोग के मूर्तियाँ बना सकते हो।

साँचे से बनाने के लिए अंदाज़ से आवश्यक लुगदी लो। उसकी गोल लोई बना लो। अब फ़र्श पर थोड़ी सूखी मिट्टी परथन की तरह फैला दो। इस पर लोई को रखकर हाथ या बेलन से साँचे के आकार में बड़ा करते जाओ। पर उसकी मोटाई बाजरे या ज्वार की रोटी जितनी अवश्य होनी चाहिए।

बेलन हलके हाथ से चलाना। जब लोई साँचे के आकार की हो जाए तो इसे उठाकर साँचे पर रख दो और हाथ से धीरे-धीरे दबाओ, ताकि उसमें साँचे का आकार अच्छे से आ जाए। जब यह थोड़ा कड़क हो जाए तो साँचे को उलटा करके हलके हाथ से थोड़ा-सा ठोको और साँचे को उठा लो। तुम्हारी मूर्ति तैयार है। इसे पकाया तो नहीं जा सकता, पर हाँ, टूटने पर गोंद या फ़ेविकोल से जोड़ ज़रूर सकते हैं और रंग तो कर ही सकते हैं।

**** जया विवेक

वन के मार्ग में | तुलसीदास | सवैया | van ke marg mein | Tulsidas | 6th class | cbse | ncert | hindi

वन के मार्ग में – तुलसीदास


सवैया

पुर तें निकसी रघुबीर-बधू, धरि धीर दए मग में डग द्धै।

झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।

फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहौं कित है?"।

तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।



“जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े'

पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहौं भूभुरि- डाढ़े।।'

तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।

जानकीं नाह को नेह लख्यौ, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।।