रविवार, 16 जनवरी 2022

साहित्य अमृत | रहीम के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE | HINDI | FRIST YEAR |PART-2 | RAHIM KE DOHE | नीतिपरक उपदेश

साहित्य अमृत | रहीम के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE |HINDI | FRIST YEAR |PART-2 | | RAHIM KE DOHE | नीतिपरक उपदेश

रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।

इनके नीतिपरक दोहे में दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।

रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली आदि। ये सभी कृतियाँ 'रहीम ग्रंथावली' में समाहित हैं।

रहीम के दोहे

बिगरी बात बनै नहिं, लाख करो किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।

टूटे से फिर ना जुरै, जुरै गांठ पर जाय।।


रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल।

आपु तो कहि भीतर गयी, जूती खात कपाल।।


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।


रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवारि ।।


तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।

कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।

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साहित्य अमृत | कबीर के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE |HINDI | FRIST YEAR | PART-2 | |KABIR KE DOHE | संत कवि | नीतिपरक उपदेश

साहित्य अमृत | कबीर के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE |HINDI | FRIST YEAR |PART-2 | |KABIR KE DOHE | संत कवि | नीतिपरक उपदेश

जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी

पिता का नाम : नीरू 

माता का नाम : नीमा

पत्नी का नाम : लोई 

बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)

मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी

मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।

कबीर के दोहे

गुरू गोविन्द दोऊ खडे, काके लागौ पॉय।

बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।।


जाति न पूछो साथ की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।


साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै, साँच है, ताके हिरदै आप।।


पोथी-पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।


दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।

जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख में काहे होय।।


काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

पल में, परलै होयगो, बहुरी करैगो कब ।।

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अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा सी देह | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

बिहारी के दोहे

अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा सी देह।

दिया बढाऐं हूँ रहै बड़ौ उज्यारौ गेह।।

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कोक कोटिक संग्रहों कोऊ लाख हजार | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

बिहारी के दोहे


कोक कोटिक संग्रहों कोऊ लाख हजार।

सो सम्पति जदुपति सदर विपति विद्यारन हार।।

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साखी, सबदी दोहरा, कहि कहनी, उपखान | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

तुलसी के दोहे


साखी, सबदी दोहरा, कहि कहनी, उपखान।

भगति निरुपति भगत कलि, निहि वेद-पुरान।।

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चरन-चोंच-लोचन रंगौ, चलौ मराली चाल | तुलसी के दोहे |TULSI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

तुलसी के दोहे


चरन-चोंच-लोचन रंगौ, चलौ मराली चाल।

छीर-नीर विवरन-समय वक उधरत तेहि काल।।

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