मीठी वाणी से क्रोध शांत हो जाता है, जैसे कि उबलते दूध पर शीतल जल की छींटे पड़ने से उफ़ान कम हो जाता है। अर्थात् दुष्ट व्यक्ति के घमंड को मधुर वाणी से ही मिटाया जा सकता है, उससे लड़ने−झगड़ने से नहीं।
कवि की उक्ति है कि विपरीत समय आने पर प्रिय जन अपने आश्रय स्थल को एकदम नहीं छोड़ते। वे अच्छे के लौटने के इंतज़ार में उसके साथ ही रहते हैं। दुर्दिन को खोकर गुलाब का प्रेमी भौंरा पुष्प-रहित गुलाब के पौधे की जड़ में अटका रहता है कि पुनः वसंतऋतु आएगी और इन ड़ालों में पूर्ववत् रंगीन पुष्प और पत्ते खिलेंगे।
रहीम का कहना है कि इस संसार में धन-दौलत के साथी अनेक होते हैं। अर्थात् किसी इन्सान के पास पैसा होने पर उससे मित्रता स्थापित करने लोग विविध ढंग से आ टपकते हैं। परंतु उनमें से कौन सच्चा मित्र है और कौन नहीं, इस बात का पता विपत्ति के समय चलता है। अर्थात् सच्चा मित्र उसे कहा जाएगा जो अपने मित्र को उसके दुर्दिन में भी न छोड़े, अपितु उसकी सहायता करे।
गिरिधर कविराय के जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। शिवसिंह सेंगर ने इनका जन्मकाल सन् 1713 ई. बताया है। लोग इन्हें अवध का निवासी मानते हैं। कविराय नाम से ऐसा लगता है कि वे जाति के भाट थे। जो भी हो, गिरिधर कविराय रीतिकाल के नीतिकाव्यकार के रूप में सुपरिचित हैं। उनकी कुंडलियाँ विख्यात हैं और उत्तर भारत जनता में खूब प्रचलित हैं। इनमें दैनिक जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी बातें कही गई हैं। सीधी-सादी तथा सरल भाषा में रचित होने के कारण ये ज्यादा लोकप्रिय हुईं। कुछ विद्वानों ने माना है कि 'साई' शब्दवाली कुंडलियाँ गिरिधर की पत्नी की रची हुई हैं। गिरिधर की कुंडि अधिकतर अवधी भाषा में ही मिलती हैं।
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सनमान, राग रँग मनहिं न भावै।।
कह गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे।।
कवि का यह कहना है कि हर व्यक्ति को सोच विचार करके काम करना चाहिए। जो बिना सोच विचार के काम में लग जाता है उसे बाद में पछताना पड़ता है। क्योंकि उसका काम बिगड़ जाता है। संसार में वह हँसी का पात्र बनता है। मानसिक रूप से बेचैन रहता है। खान-पान और मान-सम्मान उसे अच्छे नहीं लगते। मनोविनोद के सारे साधन फीके लगते हैं। दुःख को दूर करने के सारे प्रयत्न बेकार हो जाते हैं। मूल्यवान समय बर्बाद हो जाता है। बार-बार यह बात उसके मन को व्यथित करती है कि बिना सोचे और विचारे मैंने यह काम क्यों किया? अतएव जीवन में कोई भी काम करने से पहले हमें भली-भाँति सोच विचार कर लेना चाहिए ताकि बाद में पछताना न पड़े।
कवि कहते हैं कि व्यक्ति की आँखे देखने पर हृदय स्पष्ट लक्षित होती हैं। जिस प्रकार दर्पण व्यक्ति की वास्तविक छवि बताता है उसी प्रकार किसी व्यक्ति के मन में दूसरे व्यक्ति के प्रति स्नेह या घृणा का भाव है यह बात उसके नेत्रों को देख कर ज्ञात की जा सकती है।