कवि यहाँ पर यह कहना चाहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी नाम से नहीं, गुण और कार्यों से पहचाना जाता है। यदि किसी भी वस्तु की असीम प्रशंसा करें तो और यदि उसमें उन गुणों का अभाव तो वह बड़ी नहीं हो सकती क्योंकि जैसे धतूरे को कनक भी कहते हैं परंतु उससे कोई आभूषण नहीं बनाया जा सकता।
कवि आड़ंबरपूर्ण भक्ति का खंडन करते हुए कहता है कि किसी मंत्र विशेष की माला लेकर स्मरण करने तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक छापे लगाने से तो कभी काम सिद्ध नहीं हो पाता। इस प्रकार के भक्त का मन कच्चा तथा चंचल होता है। राम तो केवल अच्छे हृदय में निवास करते हैं, कच्चा मन तो काँच है जो कभी भी टूट सकता है।
रहीम कहते हैं कि यदि मन पर नियंत्रण हो, तो शरीर भी नियंत्रण में रहेगा। क्योंकि देह तो मन का अनुसरण करती है। पानी पर छाया पड़ने से क्या शरीर कभी भीगता है?