रविवार, 19 दिसंबर 2021

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE |#shorts

 रहीम के दोहे 


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।

रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति उत्तम आचरण और गुणों का होता है, उस पर कुसग यानी बुरी संगति का प्रभाव नहीं पड़ता। अर्थात् सज्जन व्यक्ति बुरे लोगों के निकट होने पर भी उनकी बुराई को नहीं अपनाता। जैसे - चन्दन-पेड़ पर जहरीले साँप लपेटे रहने पर भी चन्दन पर उसके जहर का कोई असर नहीं होता। यहाँ चन्दन-पेड़ के साथ उत्तम गुणवाले व्यक्ति तथा साँप के साथ कुसंग की तुलना की गयी है।

बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | #shorts |

रहीम के दोहे

बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल।
‘रहिमन' हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल।। 

बड़े लोग न ज़्यादा बोलते हैं, न ही अपनी प्रशंसा करते हैं। रहीम कहते हैं कि हीरा कब कहता है कि उसका मूल्य लाख मुद्राएँ हैं।

तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान | रहीम के दोहे | RAHIM KA DOHA | #shorts |

रहीम के दोहे


तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।

कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।


पेड़ अपना फल नहीं खाता। तालाब अपना पानी नहीं पीता। ये दोनों क्रमश: दूसरों के लिए फल और पानी की बचत करते हैं। कारण फल खाने से दूसरों की भूख मिटती है। उसे आनन्द मिलता है। पानी पीने से प्यास मिटती है । सन्तोष होता है । ज्ञानी लोग सूझबूझवाले हैं। इसलिए वे दूसरों की भलाई के लिए संपत्ति का संचय करते हैं। इससे परोपकार होता है। परोपकार एक महान कार्य है।

तुलसी काया खेत है, मनसा भयो किसान | तुलसी के दोहे | TULASIDAS | #shorts |

तुलसी के दोहे


तुलसी काया खेत है, मनसा भयो किसान।

पाप-पुण्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान।।

मानव का शरीर कर्मक्षेत्र है। उसका मन किसान है। पाप और पुण्य दो बीज हैं। जो जैसा बीज बोता है, वह उसी प्रकार फल प्राप्त करता है। मतलब यह है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी के अनुसार फल पाता है।

बहुसुत, बहुरुचि, बहुवचन, बहु अचार-व्यौहार | तुलसी के दोहे | TULASIDAS | #shorts

 तुलसी के दोहे 


बहुसुत, बहुरुचि, बहुवचन, बहु अचार-व्यौहार।

इनको भलो मनाइबो, यह अज्ञान अपार।।

तुलसीदास कहते है कि जान-बुझकर गलती करनेवाले को उपदेश देना मूर्खता है। जिस व्यक्ति की अनेक संतानें हों, अनेक कामनाएँ हों और समयानुसार जिनके आचार-व्यवहार बदलते हों, उन लोगों की भलाई चाहना मूर्खता है।