शनिवार, 18 दिसंबर 2021

तेरो लाल मेरी माखन खायो | सूरदास के पद | SURDAS KE PAD

सूरदास के पद 


बालक-कृष्ण की दधि-चोरी की बाललीला का वर्णन

“तेरो लाल मेरी माखन खायो।

दुपहर दिवस जानि घर सूनी, ढूंढि ढँढोरि जाय ही आयो।

खोल किवार सून मँदिर में, दूध, दही सब माखन खबायो।

छींकै काढ़ि खाट चढ़ मोहन, कछु खायो कछु लै ढरकायो।

लै दिन प्रति हानि होत गोरस की, यह ढोटा कौन रंग लायो।

सूरदास कहति ब्रजनारि, पूत अनोखो जायो।”

बालक-कृष्ण की दधि-चोरी की लीला का वर्णन है। ब्रजभूमि की एक ग्वालिन माता यशोदा से शिकायत करती है कि तेरे लड़के ने हमारा माखन खा लिया। दोपहर को घर सूना देखकर, खोज-खोजकर तेरा बेटा मेरे घर में घुस गया। उसने सूने घर का किवाड़ खोल दिया और घर में जो कुछ दूध-दही-माखन रखा था, सब के सब साथियों को खिला दिया। खाट पर चढ़कर उसने छींके पर रखे हुए दही को खा लिया और कुछ गिरा दिया। इस प्रकार हर दिन दूध, दही, माखन का नुकसान होता है। पता नहीं, यह लड़का कौन सा रंग या ढंग लाया है? तुमने तो एक अनोखे लड़के को जन्म दिया है।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

मनुष्यता | मैथिलीशरण गुप्त | MAITHILI SHARAN GUPT

मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त

इस कविता में मनुष्य को महान बनने की प्रेरणा दी गई है। कवि कहते हैं जिसने इस धरा पर जन्म लिया है, एक न एक दिन अवश्य मरेगा। इसलिए हमें कभी मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। हम ऐसे मरे कि मरने के बाद भी अमर हो जाएँ। यदि हम जीवन भर सत्कर्म नहीं करेंगे तो हमें अच्छी मृत्यु नहीं मिलेगी अर्थात् मरने के बाद कोई याद नहीं रखेगा। जो व्यक्ति दूसरों के काम आता है वह कभी मरता नहीं है। क्योंकि वह कभी भी अपने लिए नहीं जीता है। पशु जिस प्रकार अपने आप मरते रहते हैं उसी तरह की प्रवृत्ति मनुष्य में भी कई बार दिखाई देती है जो ठीक नहीं है। मनुष्य को तो मनुष्य की मदद करने में प्राण दे देना चाहिए।

संपत्ति के लोभ में पड़कर हमें गर्व से नहीं इठलाना चाहिए। कुछ अपने और परिवार आदि लोगों को देखकर भी अपने को बलवान नहीं मानना चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई भी अनाथ या गरीब नहीं होता। यहाँ कोई भी अनाथ नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर जो तीनों लोकों के नाथ हैं, वे सदा सबके साथ रहते हैं। क्योंकि ईश्वर दीनबंधु हैं। गरीबों पर दया करने वाले भी हैं परम दयालु हैं। विशाल हाथ वाले हैं अर्थात् वे सबकी मदद करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। जो अधीर होकर अहंकारी बन जाते हैं वे तो सच में भाग्यहीन हैं। मनुष्य तो वही है जो मनुष्य की सेवा करे और उसके लिए मरे। मनुष्य के लिए प्रत्येक मनुष्य बंधु है, परम मित्र है। इसे हमे समझना होगा। यही हमारा विवेक है एक ही भगवान हम सब के पिता हैं। वे पुरातन प्रसिद्ध पुरुष हैं। वे ईश्वर हैं। यह तो सत्य है कि हमें अपने कर्मों के अनुरूप फल भोगना होता है। इसलिए बाहरी तौर पर हम भले ही अलग अलग दिखाई देते हैं पर अंदर से एक हैं। हम में अन्तर की एकता है। वेद ऐसा ही कहते हैं। समाज में अनर्थ तब होता है जब मनुष्य दूसरे को अपना बंधु नहीं मानता है। मनुष्य को ही मनुष्य की पीड़ा को दूर करना होगा। इसलिए सही माईने में मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है।

मनुष्यता

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,

मरो परंतु यों करो कि याद जो करें सभी।

हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,

मरानहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।

वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त सें,

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

अतीव भाग्यहीन हैं अधीर भाव जो करे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे

'मनुष्य मात्र बंधु है' यही बड़ा विवेक है,

पुराण पुरुष स्वयं पिता प्रसिद्ध एक है।।

फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद हैं।

पंरतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।

अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे;

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

हरि अपने आँगन कछु गावत | सूरदास के पद | SUR KE PAD

सूरदास के पद 


हरि अपने आँगन कछु गावत।

तनक-तनक चरनन सौं नाचत, मनहिं मनहिं रिझावत।।

बाँह उचाइ काजरी-धौरी, गैयनि टेरि बुलावत।

कबहुँक बाबा नंद पुकारत, कबहुँक घर मैं आवत।।

माखन तनक आपने कर लै, तनक-बदन मैं नावत।

कबहुँ चितै प्रतिबिम्ब खंभ मैं, लौनी लिए खबावत।।

दुरि देखति जसुमति यह लीला, हरष आनंद बढ़ावत।

सूर स्याम के बाल-चरित ये, नित देखत मन भावत।।

बालक कृष्ण घर के आंगन में अकेले खेल रहे हैं? उनका यह खेल सबके मन को मोह लेता है । यह वर्णन बहुत ही हृदयग्राही है ।

भगवान कृष्ण अपने आप कुछ गा रहे हैं। वे गाते-गाते नन्हें चरणों से नाचते भी हैं और मन मगन भी हो रहे हैं। कभी वे हाथ उठाकर काली एवं सफेद गायों को बुलाते हैं, तो कभी नंद बाबा को पुकारते हैं। वे कभी घर के भीतर चले जाते हैं। घर में जाकर थोड़ा मक्खन हाथ में लेकर खाते हैं, और थोड़ा सा मुँह में लगा लेते हैं। कभी खंभे में अपना प्रतिबिंब देखकर उसे माखन खिलाते हैं। माता यशोदा दूर से ही खड़ी होकर यह लीला देख रही हैं और आनंदित हो रही हैं। सूरदास कह रहे हैं कि कन्हैया की यह बाललीला रोज-रोज देखने पर भी प्यारी लगती है। इससे मन तृप्त नहीं होता।

एक तिनका | अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | AYODHYA PRASAD UPADHYAY

एक तिनका 
 अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' 


यह एक छोटी सी कविता है पर है बड़े काम की। छोटी छोटी चीजें ही हमारे जीवन को एकदम बदल देती हैं। मनुष्य को अपने पर बड़ा गर्व होता है । कवि कहते हैं वे एक दिन घमण्ड में भरकर एकदम ऐंठे हुए से तन कर छत के मुँडेर पर खड़े थे। ऐसे में कहीं दूर से एक छोटा-सा तिनका आकर उनकी आँखों में गिरा।

कवि झुंझलाकर परेशान हो उठे। आँख जल रही थी और लाल होकर दुखने भी लगी। लेखक की ऐसी हालत देखकर लोग कपड़े की मुँठ देकर उनकी आँख को सेकने लगे कि शायद थोड़ा आराम मिल जाए पर नहीं। दर्द किसी तरह कम नहीं हुआ। ऐसे में कवि को ऐंठ (घमण्ड) मानों चुपचाप भाग गई थी। वे तो किसी भी तरह उस पीड़ा से छुटकारा पाना चाहते थे।

जब किसी तरह आँख से तिनका निकला तो मानो उनका विवेक उन्हें ताना मार रहा था। तू इतना अकड़ क्यों दिखाता है। एक छोटा-सा तिनका ही तेरे अहंकार को तोड़ने में काफी है।


एक तिनका

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,

एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।

आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,

एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।



मैं झिझक उठा हुआ बेचैन-सा,

लाल होकर आँख भी दुखने लगी।

मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,

ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भागी।



जब किसी ढब से निकल तिनका गया,

तब 'समझ' ने यो मुझे ताने दिए।

ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,

एक तिनका है बहुत तेरे लिए।

गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

चाँद का झिंगोला | रामधारी सिंह 'दिनकर' | RAMDHARI SINGH DINKAR

चाँद का झिंगोला  
रामधारी सिंह 'दिनकर' 

बच्चे दिन-ब-दिन बढ़ते हैं। इसलिए उनकी पोशाक बड़ी साइज की बना ली जाती है। लेकिन चाँद घटता-घटता अमावस के दिन दिखाई नहीं देता। वह चाहता है कि उसके लिए एक झिंगोला या कुर्ता सिलवा दिया जाय। माँ पूछती है, बेटा, किस नापका बनाया जाय? जिसे तू रोज-रोज पहन सके? इसमें एक मजाक और व्यंग्य है। सदा अस्थिर के लिए कुछ नहीं किया जा सकता।

चाँद का झिंगोला

हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से वह बोला,

“सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का, मोटा एक झिंगोला।

सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,

ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह, यात्रा पूरी करता हूँ।

आसमान का सफर और यह, मौसम है जाड़े का"

न हो अगर तो ला दो कुरता ही कोई भाड़े का।"

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, "अरे सलोने!

कुशल करे भगवान, लगें मत, तुझको जादू-टोने जाड़े की तो बात ठीक है,

पर मैं तो डरती हूँ, एक नाप में कभी नहीं, तुझको देखा करती हूँ।

कभी एक उँगल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।

घटना-बढ़ता रोज, किसी दिन, ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की आँखों का, तू दिखलाई पड़ता है।

अब तू ही यह बता, नाप तेरी किस रोज लिवाएँ,

सी दें एक झिंगोला जो, हर रोज बदन में आए?"