कबीरदास कहते हैं कि जिस प्रकार तिल में तेल होता है और चकमक पत्थर में आग होती है, उसी प्रकार तुम्हारा भगवान तुममें ही बसा हुआ है, उसे जगा सको, तो जगा लो।
सज्जन और साधुजन सोने जैसे होते हैं जो टूटने के बाद भी सौ बार जुड़ सकते हैं, जबकि दुर्जन या बुरे व्यक्ति कुम्हार के घड़े जैसे होते हैं जो एक धक्के या झटके से टूट जाते हैं। मतलब सज्जन लोग सर्वदा मित्रता बनाये रखते हैं, मगर दुर्जन जरा सा खटपट होते ही अलग हो जाता है।
संसार में मनुष्य का जन्म दुर्लभ होता है। मनुष्य की देह या शरीर बार-बार नहीं मिलता। वृक्ष से फल के एक बार झड़ जाने के बाद यह पुन: उस पेड़ की डाली पर लग नहीं सकता। मतलब यह है कि मानव को समस्त सांसारिक विषय-वासनाओं को त्याग करना चाहिए। इस क्षणभंगुर शरीर के रहते साधना के जरिये ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। तभी दुर्लभ मानव-जीवन का सदुपयोग हो सकेगा।
सत्य हमेशा महान होता है। संसार में सत्य के समान तपस्या या ज्ञान नहीं। उसी प्रकार झूठ या मिथ्या के बराबर पाप या बुरा काम नहीं। कारण बुराकाम करना पाप है। जिसके हृदय में सत्य का निवास है अर्थात् जो हमेशा सच बोलता है, उसका हृदय निर्मल है । पाप रहित है। उसके निर्मल हृदय में भगवान विराजमान करते हैं। अर्थात् सत्यवादी को भगवान के दर्शन मिलते हैं। वे महान होते हैं, तत्त्व दर्शी होते हैं। समाज सत्यवादी का आदर करता है, पापी का अनादर करता है।
यह सत्य है, प्रमाणित है कि अच्छे काम करने वालों को अच्छा फल मिलता है और बुरे काम करनेवाले को बुरा फल मिलता है। अर्थात् सभी को कर्म के अनुसार फल भुगतना पड़ता है। जैसी करनी वैसी भरनी। कबीर के कहने का अर्थ है कि जो तेरे रास्ते में काँटा बोता है अर्थात् जो तेरी बुराई करता है, तुम उसके रास्ते पर फूल बिछा दो अर्थात् तुम उसकी भलाई करो। इसका नतीजा यही होगा कि तुम्हारी अच्छाई से उन्हें अच्छा फल मिलेगा। उसकी बुराई के लिए उसको बुरा फल मिलेगा। मतलब हुआ कि अच्छा काम करो और अच्छा फल पाओ।