गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

पर्यावरण बचाओ - डॉ. परशुराम शुक्ल | PARSHURAMSHUKLA

पर्यावरण बचाओ 
 डॉ. परशुराम शुक्ल


परिसर के बिना मानव का जीवन असंभव है। शुद्ध पर्यावरण जीव व जगत् के लिए आवश्यक है। आजकल जल, वायु और ध्वनि का प्रदूषण निरंतर बढ़ते जाने के कारण परिसर का संतुलन बिगड़ रहा है। इसलिए पर्यावरण की रक्षा करना सबका आद्य कर्तव्य है। प्रस्तुत कविता में शुक्ल जी ने इस ज्वलंत समस्या की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है।

आज समय की माँग यही है,

पर्यावरण बचाओ।


तब तक जीव है जगत में,

जब तक जग में पानी।

जब तक वायु शुद्ध रहती है,

सोंधी मिट्टी रानी।

तब तक मानव का जीवन है,

यह सबको समझाओ।


ध्वनि, मिट्टी, जलवायु आदि,

जीव जगत के मित्र सभी।

इनकी रक्षा करना,

अब कर्तव्य हमारा।

शोर और मिट्टी का संकट,

दूर करेंगे सारा।


एक वृक्ष यदि कट जाय तो,

ग्यारह वृक्ष लगाओ।

एक वृक्ष हम नित रोपेंगे,

आज शपथ यह खाओ।

आज समय की माँग यही है,

पर्यावरण बचाओ।

जय-जय भारत माता | मैथिलीशरण गुप्त | MAITHILI SHARAN GUPT

जय-जय भारत माता 
मैथिलीशरण गुप्त 


कवि इस कविता में भारत माता का गुणगान कर रहे हैं। कवि प्रार्थना कर रहे हैं कि इस देश के पावन आँगन में अंधेरा हटे और ज्ञान मिले। सब लोग मिलजुल कर भारत माता के यश की गाथा गाएँ।

जय-जय भारत माता।

ऊँचा हिया हिमालय तेरा

उसमें कितना स्नेह भरा

दिल में अपने आग दबाकर

रखता हमको हरा-भरा,

सौ-सौ सोतों से बह-बहकर

सौ-सौ सोतों से बह-बहकर

है पानी फूटा आता,

जय-जय भारत माता ।



कमल खिले तेरे पानी में

धरती पर हैं आम फले,

इस धानी आँचल में देखो

कितने सुंदर भाव पले,

भाई-भाई मिल रहें सदा ही

टूटे कभी न नाता,

जय-जय भारत माता।



तेरी लाल दिशा में ही माँ

चंद्र-सूर्य चिरकाल रहें,

तेरे पावन आँगन में

अंधकार हटे और ज्ञान मिले,

मिलजुल कर ही हम सब गाएँ

तेरे यश की गाथा, जय जय भारत माता।

अभिनव मनुष्य | रामधारीसिंह 'दिनकर' | RAMDHARI SINGH DINKAR

अभिनव मनुष्य 
रामधारीसिंह 'दिनकर'


इस पद्यभाग में वैज्ञानिक युग और आधुनिक मानव का विश्लेषण हुआ है। कवि दिनकर जी इस कविता द्वारा यह संदेश देना चाहते हैं कि आज के मानव ने प्रकृति के हर तत्व पर विजय प्राप्त कर ली है। परंतु कैसी विडबना है कि उसने स्वयं को नहीं पहचाना, अपने भाईचारे को नहीं समझा। प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मनुष्य की साधना है, मानव-मानव के बीच स्नेह का बाँध बाँधना मानव की सिद्धि है। जो मानव दूसरे मानव से प्रेम का रिश्ता जोड़कर आपस की दुरी को मिटाए, वही मानव कहलाने का अधिकार होगा।

इस कविता के द्वारा बच्चे स्नेह, मानवीयता, भाईचारा आदि का महत्व समझ सकते हैं।

आज की दुनिया विचित्र, नवीन;

प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।

है बंधे नर के करों में पारि, विद्युत, भाप,

हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।

नहीं बाकी कहीं व्यवधान

लाँच सकता नर सरित् गिरि सिन्धु एक समान।



यह मनुज,

जिसका गगन में जा रहा है यान,

कांपते जिसके करों को देख कर परमाणु।

यह मनुज, जो सृष्टि का शृंगार,

शान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,

पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।


श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,

श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत;

एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान

तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान, और मानव भी यहीं।

चलना हमारा काम है | शिवमंगल सिंह 'सुमन' | SHIVMANGAL SINGH SUMAN

चलना हमारा काम है 
शिवमंगल सिंह 'सुमन'

बच्चे इस कविता के द्वारा यह सीखते हैं कि जीवन के सफर में अनेक रुकावटें आती हैं और उनका सामना करते हुए लक्ष्य प्राप्ति तक कदम बढ़ानेवाला व्यक्ति आदरणीय होता है।

गति प्रबल पैरों में भरी

फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा

जब आज मेरे सामने

है रास्ता इतना पड़ा

जब तक न मंजिल पा सकूँ,

तब तक मुझे न विराम है,

चलना हमारा काम है।


मैं पूर्णता की खोज में

दर-दर भटकता ही रहा

प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ

रोड़ा अटकता ही रहा

पर हो निराशा क्यों मुझे ?

जीवन इसी का नाम है,

चलना हमारा काम है।


कुछ साथ में चलते रहे

कुछ बीच ही से फिर गए,

पर गति न जीवन की रुकी

जो गिर गए सो गिर गए

जो रहे हर दम,

उसी की सफलता अभिराम है,

चलना हमारा काम है।

मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

वृक्षप्रेमी तिम्मक्का | सालुमरदा तिम्मक्का | VRUKSHA PREMI THIMMAKKA | THIMMAKKA

वृक्षप्रेमी तिम्मक्का

इस पाठ में 'सालुमरदा तिम्मक्का' के अमूल्य पर्यावरण प्रेम का परिचय दिया गया है, जिससे बच्चे पर्यावरण की रक्षा करने में अपना निष्ठापूर्ण सहयोग दे सकते हैं।

सालुमरदा तिम्मक्का का नाम आज कर्नाटक के कोने-कोने में व्याप्त है। कर्नाटक सरकार ने उन्हें इतने सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया है कि समाज-सेवा के क्षेत्र में यह महिला एक मिसाल बन गयी है। इस आदर्श महिला के जीवन के बारे में हम कितना जानते हैं ! आइए, ग्रामीण प्रदेश के गरीब परिवार में जन्म लेनेवाली एक अनपढ़ महिला के उदात्त व्यक्तित्व एवं कार्य का परिचय पावें।

तिम्मक्का का जन्म तुमकूरु जिला, गुब्बी तालुका में से गाँव कक्केनहल्ली में हुआ। उनके पिता चिक्करगय्या और माता विजयम्मा थे। तिम्मक्का इनकी छ: संतानों में से एक एक छोटे थी। तिम्मक्का के मां-बाप मेहनत-मजदूरी करते हुए अपना पेट पालते थे।

तिम्मरका के पति का नाम बिक्कला चिक्कय्या था। वे भी अनपढ़ थे। रोज़ दूसरों के खेत में पसीना बहाकर काम किया करते थे। इस दंपति को एक-एक कौर के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। कमाई भी बहुत कम थी। यदि एक दिन मजदूरी नहीं करते तो उन्हें भूखे रहना पड़ता था।

तिम्मक्का निस्संतान थीं। पति-पत्नी बच्चों के लिए तरस जाते थे। अंत में उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया। दत्तक पुत्र के सगे मां बाप को लोगों की कटु निंदा सुननी पड़ी। उन्होंने अपने बेटे को वापस ले लिया। अपना दत्तक पुत्र खोकर तिम्मक्का बहुत दुःखी हुई। लेकिन सन् 2005 में उन्होंने बल्लूरु के उमेश बी.एन. को पुत्र के रूप में अपनाया जो अब उनकी देखभाल कर रहे हैं।

तिम्मक्का और चिक्कय्या दोनों ने निश्चय किया कि अपने आप को किसी धर्म-कार्य में लगा लें। उनके गाँव के पास ही श्रीरंगस्वामी का मंदिर था, जहां हर साल मेला लगता था। वहाँ आनेवाले जानवरों के लिए पीने के पानी का इंतज़ाम किया।

तिम्मरका ने रास्ते के दोनों ओर पेड़ लगाने, सींचने, बढ़ाने की बात सोची। यह काम आसान नहीं था। फिर भी उन्होंने हुलिकल और कुदूर के बीच के चार कि.मी. के रास्ते के दोनों ओर के डाल लगाये। उन पेड़ा को भेड़-बकरियों से रक्षा करने की व्यवस्था की।

पहले साल दस, दूसरे साल पंद्रह और तीसरे साल में नब्बे पेड़ लगाये। उन्हें अपने बच्चों की तरह प्रेम से पाला-पोसा। यह काम निरंतर दस सालों तक चलता रहा। पेड़ राहगीरों को छाया देने के साथ-साथ, पक्षियों के आश्रयधाम भी बन गए।

तिम्मक्का के जीवन में मुसीबत की घड़ियां शुरू हुईं। तिम्मक्का के पति की तबीयत खराब हुई। बुरी हालत में चिक्कय्या चल बसे। तिम्मक्का अब अकेली पड़ गयीं। फिर भी हिम्मत न हारी और अपने कार्य में तल्लीन रहीं।

तिम्मक्का ने अब तक 8000 से अधिक पेड़ लगाये हैं। अब हमारी कर्नाटक सरकार ने उन पेड़ों की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है। तिम्मक्का को उनकी निष्ठा, त्याग तथा सेवा के लिए नाडोज पुरस्कार, राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र, वीर चक्र, कर्नाटक कल्पवल्ली, गाड़ फ्री फिलिप्स धैर्य पुरस्कार, विशालाक्षी पुरस्कार, डॉ.कारंत पुरस्कार, कर्नाटक सरकार के महिला और शिशु कल्याण विभाग के द्वारा सम्मान पत्र आदि अनेकानेक पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है। तिम्मक्का जी सन् 2012 में संपन्न प्रथम राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन की अध्यक्षा रही।

पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ तिम्मक्का अन्य सामाजिक कार्य भी कर रही हैं। अपने पति की याद में उन्होंने हुलिकल ग्राम में गरीबों की निःशुल्क चिकित्सा के लिए एक अस्पताल के निर्माण कराने का संकल्प किया है। जो भी धनराशि पुरस्कार के रूप में तिम्मनका को मिली है, उसे वह सामाजिक कार्य तथा दीन-दुखियों की सेवा के लिए अर्पित कर रही हैं।

अपने जीवन में दर्द और तकलीफ उठाने के बावजूद सार्थक कार्य करनेवाली तिम्मक्का का व्यक्तित्व सबके लिए आदर्श है। सरकारी संसाधनों के अभाव में भी कोई एक व्यक्ति केवल अपनी निष्ठा व श्रद्धा की बदौलत किस तरह सामाजिक कार्य के लिए स्वयं को समर्पित कर सकता है, इसके लिए एक अत्युत्तम निदर्शन हैं तिम्मक्का।

तिम्मक्का ने अपने जीवन काल में बहुत सारे पेड़ लगाकर उनकी देख-रेख की है। कतारों में शोभायमान बरगद के पेड़ लगाने के कारण वे सालुमरदा तिम्मक्का नाम से जानी जाती हैं।