मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै। दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥ (कबीरदास के दोहे - KABIRDAS KE DOHE)

********

कबीरदास के दोहे - KABIRDAS KE DOHE

सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥

कबीरदास ने उपर्युक्त दोहे में ईश्वर को पाकर माया विमुक्त होने की बात समझाया है।

कबीरदास जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं और निशा में सो रहे हैं। अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। एक मात्र कबीर दुखी हैं जो जागते हुए रो रहे हैं क्योंकि वह ईश्वर को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं।

कबीर को सारा संसार मोह ग्रस्त दिखाई देता है। वह मृत्यु के छाया में रहकर भी सबसे बेखबर विषय-वासनाओं को भोगते हुए अचेत पडा है। कबीर का अज्ञान दूर हो गया है। उनमें ईश्वर के प्रेम की प्यास जाग उठी है। सांसारिकता से उनका मन विरक्त हो गया है। उन्हे दोहरी पीडा से गुजरना पड रहा है। पहली पीडा है - सुखी जीवों का घोर यातनामय भविष्य, मुक्त होने के अवसर को व्यर्थ में नष्ट करने की उनकी नियति। दूसरी पीडा भगवान को पा लेने की अतिशय बेचैनी। दोहरी व्यथा से व्यथित कबीर जाग्रतावस्था में है और ईश्वर को पाने की करुण पुकार लगाए हुए है।

कठिन शब्दार्थ :

सुखिया - सुखी

अरु - अज्ञान रूपी अंधकार

सोवै - सोये हुए

दुखिया - दुःखी

रोवै - रो रहे


हम घर जाल्या आपणाँ लिया मुराड़ा हाथि। अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥ (कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE)

******

कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE


हम घर जाल्या आपणाँ लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

कबीरदास ने उपर्युक्त दोहे में गुरू का महत्व समझाया है।

कबीरदास कहते है कि मोह - माया रूपी घर को जला कर अर्थात त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं। उन्होंने कहा है कि संसारिकता के मोह माया के घर को अपने हाथों से ज्ञान की लकड़ी से जला दिया है। अब जो भी मेरे साथ चलना चाहे मैं उसका भी घर (विषय वासना, मोह माया का घर ) जला दूँगा। सद्गुरु ही ज्ञान प्राप्त कराकर ईश्वर तक पहुँचाता है।

जाल्या - जलाया

आपणाँ - अपना

मुराड़ा - जलती हुई लकड़ी, ज्ञान

हाथि - हाथ (अपने हाथों से अपना घर जलाया है )

जालौं - जलाऊँ

तास का – उसका



कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥ (कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE)

********

कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥

कबीरदास ने उपर्युक्त दोहे में मन की शुद्धता और ईश्वर की महत्ता की महत्त्व समझाया है।

कबीर दास जी कहते है कि कस्तूरी हिरण की नाभि में सुगंध होता है, लेकिन अनजान हिरण उसके सुगन्ध को पूरे जगत में ढूँढता फिरता है। कस्तूरी का पहचान नहीं होता। ठीक इसी तरह ईश्वर भी हर मनुष्य के ह्रदय में निवास करते है क्योंकि संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य उसके अंतंर्मुख ईश्वर को देवालयों, मस्जिदों और तीर्थस्थानों में ढूँढता फिरता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूँढ़ना है तो अपने मन में ढूँढो साथ ही सत्य आचरण को अपनाकर हम ईश्वर तक पहुच सके।

कठिन शब्दार्थ :

कुंडली - नाभि

मृग - हिरण

बसै : रहना।

बन : जंगल।

माहि : के अंदर।

घटी घटी : हृदय में।




बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई। राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।। (कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE)

(कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE)


******** 
  

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।

 
 *******

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।

कबीरदास ने उपर्युक्त दोहे में ईश्वर के वियोग में मनुष्य की दशा का वर्णन किया है।

कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का दुख सांप बन कर लोटने लगता है तो उस पर न कोई मन्त्र का असर करता है और न ही कोई दवा का असर करती है। उसी तरह ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। विरह की वेदना जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मन ही मन काटती रहती है, वैसे ही ईश्वर के रंग में रंगा भक्त भी सबसे जुदा होता है। सच्चा भक्त अपने ईश्वर से दूर नहीं रह सकता। ईश्वर के वियोग में वह जीवित नहीं रह सकता और यदि जीवित रह भी जाए तो वह पागल हो सकता है। विरह-वेदना रूपी नाग उसे निरंतर डसता रहता है। इस वेदना को यदि कोई समझ सकता है तो स्वयं ईश्वर ही समझ सकते हैं।

कठिन शब्दार्थ :

बिरह - बिछड़ने का गम

भुवंगम - भुजंग, सांप

तन बसै : मन में रहना

मन्त्र न लागै कोई : कोई उपचार कार्य नहीं करना बौरा - पागल



बुधवार, 31 मार्च 2021

गुड फ्राइडे (GOOD FRIDAY)

गुड फ्राइडे


गुड फ्राइडे ईसाईयों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। सच तो यह है कि गुड फ्राइडे शोक दिवस है। क्योंकि इस दिन प्रभु ईसा मसीह को सूली में चढ़ा दिया गया था। बाइबल के अनुसार ईसा को जिस जगह सूली पर चढ़ाया गया था, उसका नाम गोलगोथा था। लगभग 2000 वर्षों पहले प्रभु ईशु का जन्म हुआ था। जिन्होंने गैलिली प्राँत में रहकर लोगों को मानवता, एकता और अहिंसा का उपदेश दिया। वह तो मानवता वादी थे। ईसा को काँटों का मुकुट पहनाया गया। उन्हें कूड़ों से क्रूरतापूर्वक पीटा गया। प्यास लगने पर लाठी के एक सिरे पर बरतन टाँगकर उनके ओठों तक पहुँचाया गया। उनपर थूका गया। क्रूस पर हाथों और पाँवों में कीलें ठोंकी गयीं। इस तरह प्रभु ईसा मसीह को सूली में चढ़ा दिया गया था। संसार के ऐसे महान पुरुष को इतनी घोर यातना दी गयी। सलीब पर झूलते हुए भी उन्होंने अपने उत्पीड़कों के लिए इतना ही कहा, ''हे ईश्वर, इन्हें क्षमा कर दीजिए, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।'' उनके भक्त अविरल आँसू बहा रहे थे, वे प्राणघाती पीड़ा से कराह रहे थे। उनका बलिदान सबके लिए था। उनका पुनरुत्थान सबके लिए हुआ। उन्होंने अपना सन्देश सभी को सुनाया। जिन फरीसियों ने उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिए ढूँढा, उन्हें भी अपना संदेश सुनाया। जिन यहूदियों ने उनपर अविश्वास किया, उन्हें भी अपना संदेश सुनाया तथा उन असंख्य भक्तों को भी उन्होंने अपना संदेश सुनाया जिनका वे आदर पाते रहे। प्रभु ईसा ने सारे संसार का पाप अपने पर ओढ़ लिया और उसके परिशोधन के लिए उन्होंने अपना बलिदान किया। यही कारण है कि उनका बलिदान-दिवस- गुड फ्राइडे- केवल ईसाइयों के लिए ही नहीं, समग्र मानवजाति के लिए महान पुण्यदिवस बन गया है। उस दिन शुक्रवार था। तब से इस दिन को गुड फ्राइडे कहा। गुड फ्रायडे एक ऐसा दिन जब ईसा मसीह ने अपने भक्तों के लिए बलिदान देकर निःस्वार्थ प्रेम बरसाया। ईसा मसीह ने विरोध और यातनाएँ सहते हुए अपने प्राण त्याग दिए उन्हीं की आराधना और वचनों के माध्यम से इंसानियत की राह पर चलने का ज्ञान देने वाला दिन है गुड फ्राइडे। गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे आदि नामों से भी जाना जाता है। इसी प्रकार ईस्टर ईसाइयों की नींव है। इस दिन प्रभु ईसा मसीह का पुनरुत्थान हुआ था। प्रभु ईसा का यह बलिदान ईसाई धर्म में सबसे गंभीर माना जाता है। इस दिन ईसाइयों के सबसे बड़े गिरजाघर 'सेंट पीटर्स' से लेकर छोटे-छोटे गिरजाघरों तक शोक छाया छा जाता है और प्रभु ईसा मसीह को याद कर शोक मनाते हैं।


गुड फ्राइडे के 40 दिन पहले से ही ईसाई समुदाय में प्रार्थना और उपवास शुरू हो जाते हैं। प्रभु ईसा मसीह ने मानव सेवा प्रारंभ करने से पूर्व 40 दिन व्रत किया था शायद इसी वजह से उपवास की यह परंपरा शुरू हुई। गुड फ्राइडे की प्रार्थना दोपहर 12 बजे से 3 बजे के मध्य की जाती है क्योंकि इसी दौरान ईसा मसीह को क्रॉस पर चढ़ाया गया था। ईस्टर की आराधना उषाकाल में महिलाओं द्वारा की जाती है क्योंकि इसी वक्त ईसा मसीह का पुनरुत्थान हुआ था और उन्हें सबसे पहले मरियम मदीलिनी नामक महिला ने देखकर अन्य महिलाओं को इसके बारे में बताया था। गुड फ्राइडे के दिन ईसा के अंतिम 7 वाक्यों की विशेष व्याख्या की जाती है, जो क्षमा, मेल-मिलाप, सहायता और त्याग पर केंद्रित होती है। इस घटना की पुनीत स्मृति में संसारभर के ईसाई बड़े ही प्रेम और श्रद्धा के साथ यह त्यौहार मनाते हैं। ईसा मसीह ने मानवता की भलाई के लिए जान दी थी। भगवान ईसा का निधन इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। महाप्रभु ईसा के बलिदान के बाद ही बारथोलोमि, थॉमस, पॉल, पीटर जैसे शिष्य संसार के कोने-कोने में उनके अमर संदेश सुनाकर मानवता का कल्याण करते रहे।

धन्यवाद।