रविवार, 23 जुलाई 2023

दो हरियाणवी लोकगीत | Haryanvi Lok Geet | ऋतु गीत - संत गंगादास | विदाई गीत | Haryanvi Folk Song | cbse

दो हरियाणवी लोकगीत


ऋतु गीत - संत गंगादास (1823-1913)

सावण में सूखे रह गए, गिरधर बिन भाग म्हारे।।

स्याम घटा घन गहर-सी आवै।

देख लहर पै लहर-सी आवै।

हमें कृष्ण बिन कहर-सी आवै।

आगे फेर सलोनो आती।

हमें श्याम बिन वृथा लगाती।

गंगादास लेस न पाती।

हम मोह सिंधु में बह गए, कहो धोवें दाग हमारे।।


विदाई गीत - पारंपरिक

काहे को ब्याही बिदेस रे लक्खी बाबुल मेरे।

हम हैं रे बाबुल मुँडेरे की चिड़ियाँ,

कंकरी मारे उड़ जायें रे, लक्खी बाबुल मेरे।

हम हैं रे बाबुल चोणे की गउएँ,

जिधर हाँको हँक जायें रे, लक्खी बाबुल मेरे।

घर भी सूना आंगन भी सूना लाडो चली पिता घर त्याग।

घर में तो उस के बाबुल रोवैं अम्मां बहिन उदास।

कोठे के नीचे से निकली पलकिया-निकली पलकिया,

आम नीचे से निकला है डोला, भय्या ने खाई है पछाड़।
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छूना और देखना |Jo Dekhakar Bhee Nahin Dekhte | cbse | hindi

छूना और देखना


तुम जानते ही हो कि हम आसपास की दुनिया को अपनी इंद्रियों की मदद से महसूस करते हैं। आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं, नाक से सूँघते हैं, जीभ से स्वाद लेते हैं और त्वचा से छूकर किसी चीज़ का अनुभव करते हैं। आओ हम प्रयोगशाला में अपनी नज़र और स्पर्श के माध्यम से कुछ प्रयोग करें और चित्र बनाकर देखें कि हम लोग अपनी आँखों से कितना बारीक अवलोकन कर पाते हैं और कितना छूकर।

इस गतिविधि के लिए आठ-दस किस्म के पेड़-पौधों की पत्तियों की ज़रूरत होगी और तीन चार साथियों की भी। जितने दोस्त इस प्रयोग में शामिल होना चाहें, उतने कागज़ के लिफ़ाफ़े पास रखने होंगे जिनसे आर-पार दिखे।

हर लिफ़ाफ़े में एक पत्ती डाल दो। हर दोस्त को एक-एक लिफ़ाफ़ा दे दो। हाँ, यह ध्यान रखना कि तुम्हारे दोस्त यह न देख पाएँ कि उनके लिफ़ाफ़े में किस तरह की पत्ती डाली जा रही है।

अब तुम अपने दोस्तों से यह कहो कि वे अपने-अपने हाथ डालकर पत्ती को छुएँ। अंदाज़ा लगाएँ कि उनके पास किस पौधे की पत्ती है। पत्ती के आकार को टटोलें और उसका चित्र बनाने का प्रयास करें। इस पूरी प्रक्रिया में पत्ती को आँखों से नहीं देखना है।

जब बिना देखे चित्र बनाने का कार्य पूरा हो जाए तो लिफ़ाफ़े से पत्ती निकाल कर सामने रखें और उसे देखकर चित्र बनाएँ।

*** कौन सा चित्र ज़्यादा बारीकी से बना है? बिना देखे बनाया हुआ या देखकर बनाया हुआ?

*** क्या और कोई तरीका भी है जिससे पत्ती को बिना देखे पहचानने में सहयोग मिल सकता है?

एक दौड़ ऐसी भी | Ek Daud Aisi Bhi | cbse | ncert | hindi

एक दौड़ ऐसी भी


कई साल पहले ओलंपिक खेलों के दौरान एक विशेष दौड़ होने जा रही थी। सौ मीटर की इस दौड़ में एक गज़ब की घटना हुई। नौ प्रतिभागी शुरुआत की रेखा पर तैयार खड़े थे। उन सभी को कोई-न-कोई शारीरिक विकलांगता थी।

सीटी बजी, सभी दौड़ पड़े। बहुत तेज़ तो नहीं, पर उनमें जीतने की होड़ ज़रूर तेज़ थी। सभी जीतने की उत्सुकता के साथ आगे बढ़े। सभी, बस एक छोटे से लड़के को छोड़कर। तभी एक छोटा लड़का ठोकर खाकर लड़खड़ाया, गिरा और रो पड़ा।

उसकी आवाज़ सुनकर बाकी प्रतिभागी दौड़ना छोड़ देखने लगे कि क्या हुआ? फिर, एक-एक करके वे सब उस बच्चे की मदद के लिए उसके पास आने लगे। सब के सब लौट आए। उसे दोबारा खड़ा किया। उसके आँसू पोंछे, धूल साफ़ की। वह छोटा लड़का ऐसी बीमारी से ग्रस्त था, जिसमें शरीर के अंगों की बढ़त धीमे होती है और उनमें तालमेल की कमी भी रहती है। इस बीमारी को डाउन सिंड्रोम कहते हैं। लड़के की दशा देख एक बच्ची ने उसे अपने गले से लगा लिया और उसे प्यार से चूम लिया, यह कहते हुए कि, “इससे उसे अच्छा लगेगा।”

फिर तो सारे बच्चों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा और साथ मिलकर दौड़ लगाई और सब के सब अंतिम रेखा तक एक साथ पहुँच गए। दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे, इस सवाल के साथ कि सब के सब एक साथ बाज़ी जीत चुके हैं, इनमें से किसी एक को स्वर्ण पदक कैसे दिया जा सकता है। निर्णायकों ने भी सबको स्वर्ण पदक देकर समस्या का शानदार हल ढूँढ़ निकाला। सब के सब एक साथ विजयी इसलिए हुए कि उस दिन दोस्ती का अनोखा दृश्य देख दर्शकों की तालियाँ थमने का नाम नहीं ले रही थीं।