सोमवार, 3 जनवरी 2022

हिन्दी सुमन | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 19 | FIRST LANGUAGE | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

हिन्दी सुमन | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 19 | FIRST LANGUAGE | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

बिहारी (1595-1663)

बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। बिहारी रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। उनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। 1663 में इनका देहावसान हुआ। बिहारी की एक ही रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमें उनके लगभग 700 दोहे संगृहीत हैं।

लोक ज्ञान और शास्त्र ज्ञान के साथ ही बिहारी का काव्य ज्ञान भी अच्छा था। रीति का उन्हें भरपूर ज्ञान था। इन्होंने अधिक वर्ण्य सामग्री शृंगार से ली है। इनकी कविता शृंगार रस की है। बिहारी की भाषा शुद्ध ब्रज है पर है वह साहित्यिक। इनकी भाषा में पूर्वी प्रयोग भी मिलते हैं। बुंदेलखंड में अधिक दिनों तक रहने के कारण बुंदेलखंडी शब्दों का प्रयोग मिलना भी स्वाभाविक है।

बिहारी के दोहे

जपमाला, छापै तिलक, सरै न एकौ कामु।

मन काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै राम।।


बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरुद बड़ाई पाइ।

कहत धतूरे सौ कनकु, गहनौ गढयौ न जाइ।।


इही आस अटक्यौ रहतु, अलि गुलाब के मूल।

ह्रैहै फेरि वसंत ऋतु, इन ड्रारन वे फूल।।

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हिन्दी सुमन | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 19 | FIRST LANGUAGE | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

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रहीम के दोहे

रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।

इनके नीतिपरक दोहे में दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।
रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली आदि। ये सभी कृतियाँ 'रहीम ग्रंथावली' में समाहित हैं।

रहीम के दोहे

जो रहीम मन हाथ है, तो तन कहु बिन जाहि।

जल में जो छाया परे, काया भीजति नाहिं।।


गरीब सो हित करै, धनि रहीम वे लोग।

कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।

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हिन्दी सुमन | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 19 | FIRST LANGUAGE |कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

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कबीर के दोहे

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।

कबीर के दोहे

ज्यों तिल माँही तेल है, ज्यों चकमक में आगि।

तेरा साई तुज्झ में, जागि सकें तो जागि।।


जिनि ढूँढा तिनि पाइयाँ, गहरे पानी पैठि।

हौ बौरी डूबन डूरी, रही किनारे बैठि।।


साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय

सार सार को गहि रहे, थोथा देई उडाय।।

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हिन्दी वल्लरी | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 7 | THIRD LANGUAGE | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india

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तुलसी के दोहे

भक्तिकाल के प्रसिद्ध राम भक्त कवि तुलसीदास था। तुलसीवास का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन् 1532 में हुआ था। रामभक्ति परंपरा में तुलसी अंतुलनीय हैं। रामचरितमानस कवि की अनन्य रामभक्ति और उनके सृजनात्मक कौशल का मनोरम उदाहरण है। उनके राम मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक हैं जिनके माध्यम से तुलसी ने नीति, स्नेह, शील, विनय, त्याग जैसे उदात्त आदर्शों को प्रतिष्ठित किया। रामचरितमानस के अलावा कवितावली, गीतावली, दोहावली, कृष्णगीतावली, विनयपत्रिका आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ। हैं। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।

तुलसी ने रामचरितमानस की रचना अवधी में और विनयपत्रिका तथा कवितावली की रचना ब्रजभाषा में की। | उस समय प्रचलित सभी काव्य रूपों को तुलसी की रचनाओं में देखा जा सकता है। रामचरितमानस का मुख्य छंद चौपाई है तथा बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छंद पिरोए गए हैं। विनयपत्रिका की रचना गेय पदों में हुई है। कवितावली में सवैया और कवित्त छंद की छटा देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्यों का उत्कृष्ट रूप है।


मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।

पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक।।


जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार।

संत-हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि विकार।।


दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।

तुलसी दया न छाडिये, जब लग घट में प्राण।।


तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।

साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसो एक।।


राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।

तुलसी 'भीतर वाहिरी, जो चाहसी उजियार।।

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हिन्दी वल्लरी | KSEEB | CLASS 9 | CHAPTER 17 | THIRD LANGUAGE | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE 

रहीम के दोहे

रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।

इनके नीतिपरक दोहे में दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।

रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली आदि। ये सभी कृतियाँ 'रहीम ग्रंथावली' में समाहित हैं।

रहीम के दोहे

तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।

कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।


रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवारि।।


बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल।

‘रहिमन' हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल।।

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हिन्दी वल्लरी | KSEEB | CLASS 8 | CHAPTER 17 | THIRD LANGUAGE | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE | संत कवि | #shorts | #hindi | #india

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कबीर के दोहे

जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी

पिता का नाम : नीरू 

 माता का नाम : नीमा

पत्नी का नाम : लोई बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)

मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी

मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।

कबीर के दोहे

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।

औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय।।


साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै, साँच है, ताके हिरदै आप।।


बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।


दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।

जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख में काहे होय।।

शनिवार, 1 जनवरी 2022

स्पर्श | भाग-1 | CBSE | CLASS 9 | CHAPTER 8 | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | NCERT | दोहे | #shorts | #hindi | #india

रहीम के दोहे


(1)

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।

(2)

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।

(3)

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

(4)

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।

जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।

(5)

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं।।

(6)

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।

उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।।

(7)

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।

(8)

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

(9)

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ।।

(10)

रहिमन निज संपति बिना कोउ न बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय।।

(11)

रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।

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रहिमन निज संपति बिना कोउ न बिपति सहाय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | दोहे | #shorts | #hindi | #india

रहीम के दोहे


रहिमन निज संपति बिना कोउ न बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय।।

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

लहर | भाग-2 | कबीर की वाणी | सातवीं कक्षा | KABIR KE DOHE | CLASS 7 | CHAPTER 4 | APSCERT | कबीर के दोहे | नीति दोहे | #shorts | #hindi | #india |

कबीर की वाणी


जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी

पिता का नाम : नीरू 

माता का नाम : नीमा

पत्नी का नाम : लोई बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)

मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी

मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।


तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार।

सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।।


जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप।

जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप।


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए


कबीर लहरि समंदर की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हँसा चुनी-चुनी खाई॥

बाल-बगीचा | भाग-2 | कबीर की वाणी | सातवीं कक्षा | KABIR KE DOHE | CLASS 7 | CHAPTER 4 | APSCERT | कबीर के दोहे | नीति दोहे | #shorts | #hindi | #india

कबीर की वाणी

जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी

पिता का नाम : नीरू 

माता का नाम : नीमा

पत्नी का नाम : लोई बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)

मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी

मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।

काल करे सो जज कर, आज करे सो अब

पल में, परलै होयगो, बहुरी करैगो कब ।।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोया।

जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय।।


बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।


ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।

औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय।।

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