मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

कुडालयाँ | गिरिधर कविराय | GIRDHAR KAVIRAY | KUNDALIYA | RITIKAL KE KAVI

कुडालयाँ - गिरिधर कविराय 

कवि परिचय :

गिरिधर कविराय के जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। शिवसिंह सेंगर ने इनका जन्मकाल सन् 1713 ई. बताया है। लोग इन्हें अवध का निवासी मानते हैं। कविराय नाम से ऐसा लगता है कि वे जाति के भाट थे। जो भी हो, गिरिधर कविराय रीतिकाल के नीतिकाव्यकार के रूप में सुपरिचित हैं। उनकी कुंडलियाँ विख्यात हैं और उत्तर भारत जनता में खूब प्रचलित हैं। इनमें दैनिक जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी बातें कही गई हैं। सीधी-सादी तथा सरल भाषा में रचित होने के कारण ये ज्यादा लोकप्रिय हुईं। कुछ विद्वानों ने माना है कि 'साई' शब्दवाली कुंडलियाँ गिरिधर की पत्नी की रची हुई हैं। गिरिधर की कुंडि अधिकतर अवधी भाषा में ही मिलती हैं।

बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछताय।

काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।

जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।

खान-पान सनमान, राग रँग मनहिं न भावै।।

कह गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।

खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे।।

कवि का यह कहना है कि हर व्यक्ति को सोच विचार करके काम करना चाहिए। जो बिना सोच विचार के काम में लग जाता है उसे बाद में पछताना पड़ता है। क्योंकि उसका काम बिगड़ जाता है। संसार में वह हँसी का पात्र बनता है। मानसिक रूप से बेचैन रहता है। खान-पान और मान-सम्मान उसे अच्छे नहीं लगते। मनोविनोद के सारे साधन फीके लगते हैं। दुःख को दूर करने के सारे प्रयत्न बेकार हो जाते हैं। मूल्यवान समय बर्बाद हो जाता है। बार-बार यह बात उसके मन को व्यथित करती है कि बिना सोचे और विचारे मैंने यह काम क्यों किया? अतएव जीवन में कोई भी काम करने से पहले हमें भली-भाँति सोच विचार कर लेना चाहिए ताकि बाद में पछताना न पड़े।

नैना देत बताय सब, हिय को हेत आहेत | वृन्द के दोहे | VRIND KA DOHA | #shorts |

वृन्द के दोहे


नैना देत बताय सब, हिय को हेत आहेत।

जैसे-निर्मल आरसी, भली बुरी कह देत।।

कवि कहते हैं कि व्यक्ति की आँखे देखने पर हृदय स्पष्ट लक्षित होती हैं। जिस प्रकार दर्पण व्यक्ति की वास्तविक छवि बताता है उसी प्रकार किसी व्यक्ति के मन में दूसरे व्यक्ति के प्रति स्नेह या घृणा का भाव है यह बात उसके नेत्रों को देख कर ज्ञात की जा सकती है।

जपत एक हरिनाम ते, पातक कोटि बिलाय | वृन्द के दोहे | VRIND KA DOHA | #shorts |

वृन्द के दोहे


जपत एक हरिनाम ते, पातक कोटि बिलाय।

एकहि कनिका आगि ते, घास ढेर जरि जाय।।

वृन्द कवि कहते हैं कि भगवान के नाम मात्र का जप करने से कोटि कष्ट दूर हो जाते हैं। उदाहरण के लिए आग की एक चिनगारी के पड़ने से घास का ढेर जल जाता है।



बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरुद बड़ाई पाइ | बिहारी के दोहे | BIHARI KA DOHA | #shorts |

बिहारी के दोहे


बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरुद बड़ाई पाइ।

कहत धतूरे सौ कनकु, गहनौ गढयौ न जाइ।।

कवि यहाँ पर यह कहना चाहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी नाम से नहीं, गुण और कार्यों से पहचाना जाता है। यदि किसी भी वस्तु की असीम प्रशंसा करें तो और यदि उसमें उन गुणों का अभाव तो वह बड़ी नहीं हो सकती क्योंकि जैसे धतूरे को कनक भी कहते हैं परंतु उससे कोई आभूषण नहीं बनाया जा सकता।

जपमाला, छापै तिलक, सरै न एकौ कामु | बिहारी के दोहे | BIHARI KA DOHA | #shorts |

बिहारी के दोहे


जपमाला, छापै तिलक, सरै न एकौ कामु।

मन काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै राम।।

कवि आड़ंबरपूर्ण भक्ति का खंडन करते हुए कहता है कि किसी मंत्र विशेष की माला लेकर स्मरण करने तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक छापे लगाने से तो कभी काम सिद्ध नहीं हो पाता। इस प्रकार के भक्त का मन कच्चा तथा चंचल होता है। राम तो केवल अच्छे हृदय में निवास करते हैं, कच्चा मन तो काँच है जो कभी भी टूट सकता है।

गरीब सो हित करै, धनि रहीम वे लोग । रहीम के दोहे | RAHIM KA DOHA |#shorts |

रहीम के दोहे


गरीब सो हित करै, धनि रहीम वे लोग।

कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

जो गरीब लोगों का हित करते हैं, सचमच वे ही धनी होते हैं। सुदामा तो गरीब थे। परन्तु कृष्ण से उसने मित्रता निभाई। वे दोनों स्नेह के योग्य थे।

जो रहीम मन हाथ है, तो तन कहु बिन जाहि । रहीम के दोहे | RAHIM KA DOHA | #shorts |

रहीम के दोहे


जो रहीम मन हाथ है, तो तन कहु बिन जाहि।

जल में जो छाया परे, काया भीजति नाहिं।।

रहीम कहते हैं कि यदि मन पर नियंत्रण हो, तो शरीर भी नियंत्रण में रहेगा। क्योंकि देह तो मन का अनुसरण करती है। पानी पर छाया पड़ने से क्या शरीर कभी भीगता है?

रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच। रहीम के दोहे | RAHIM KA DOHA | #shorts |

रहीम के दोहे

रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच।

मांस दिये शिवि भूप ने दिन्हीं हाड़ दधीचि।।

कवि रहीम कहते हैं कि केवल जहाँ दोस्ती या मित्रता हो वहाँ उपकार नहीं किया जाता। परोपकार तो किसीके भी साथ किया जा सकता है। हम कहीं भी किसी भी स्थान पर आवश्यकता पड़ने पर दूसरे का उपकार कर सकते हैं। जैसे - शिवि राजाने अपना मांस अपरिचित बाज को दिया। दधीचि ऋषि ने देवताओं की मदद के लिए हड्डियाँ दे दीं, उससे बज्र बनाया गया। देवताओं का शत्रु बृत्रासुर मारा गया। उससे दधीचि को किसी लाभ की आशा नहीं थी, केवल परोपकार की भावना थी।

रविवार, 19 दिसंबर 2021

राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA | #shorts |

तुलसी के दोहे


राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।

तुलसी 'भीतर वाहिरी, जो चाहसी उजियार।।

प्रस्तुत दोहे के द्वारा तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस तरह देहरी पर दिया रखने से घर के भीतर नया आँगन में प्रकाश फैलता है, उसी तरह राम-नाम जपने से मनुष्य की आंतरिक और जाप शुद्धि होती है।

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA | #shorts |

तुलसी के दोहे


तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।

साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसो एक।।

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य पर जब विपत्ति पड़ती है तब विद्या, विनय तथा विवेक ही उसके साथ निभाते हैं। जो राम पर भरोसा करता है, वह साहसी, सत्यवती और सुकुलवान जनता है।