रविवार, 19 दिसंबर 2021

दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA |#shorts |

तुलसी के दोहे


दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।

तुलसी दया न छाडिये, जब लग घट में प्राण।।

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास ने स्पष्टतः बताया है कि दया धर्म का मूल है और अभिमान पाप का। इसलिए कवि कहते हैं कि जब तक शरीर में प्राण हैं, तब तक मानव को अपना अभिमान छोड़ना चाहिए।

जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार। | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA |#shorts

तुलसी के दोहे


जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार।

संत-हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि विकार||

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास हंस पक्षी के साथ संत की तुलना करते हुए उसके स्वभाव का परिचय देते हैं। सृष्टिकर्ता ने इस संसार को जड़-चेतन और गुण-दोष मिलाकर बनाया है। अर्थात इस संसार में सार-निस्सार के रूप में अनेक गुण-दोष भरे हुए हैं, लेकिन हंस रूपी साधु लोग विकारों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाते हैं।

मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक | तुलसी के दोहे | TULASIDAS KA DOHA |#shorts |

तुलसी के दोहे


मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।

पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक||

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास मुख अर्थात् मुंह और मुखिया दोनों के स्वभाव की समानता दर्शाते हुए लिखते हैं कि मुखिया को मुंह के समान होना चाहिए। मुंह खाने-पीने का काम अकेला करता है, लेकिन यह जो खाता पीता है उससे शरीर के सारे अगों का पालन-पोपण करता है। तुलसी की राय में मुखिया को भी ऐसे ही पिकवान होना चाहिए कि यह काम अपनी तरह से करें लेकिन उसका फल सभी में बाँटे।

रोष न रसना खोलिए, बरु खोलिओ तरवारि | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA | #shorts |

तुलसी के दोहे


रोष न रसना खोलिए, बरु खोलिओ तरवारि।

सुनत मधुर परिनाम हित, बोलिअ वचन विचारि।।

जब क्रोध अधिक हो तो जीभ नहीं खोलनी चाहिए। क्रोध में मनुष्य कड़वी बातें बोल जाता है। अर्थात् किसी को कुछ नहीं कहना चाहिए। ये कड़वी बातें तलवार से भी अधिक घाव करती हैं। कड़वी बातों का प्रहार सीधे हृदय और मन पर होता है। तलवार शरीर पर घाव करती है, मगर कड़वी बातें दिल, मन को घायल करके अधिक कष्ट देती हैं।

गोधन, गजधन, बाजिधन और रतनधन खान | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA | #shorts

तुलसी के दोहे


गोधन, गजधन, बाजिधन और रतनधन खान।

जब आवे सन्तोष धन, सब धन धूरि समान।।

आम तौर पर हमारी धारणा है कि जिसके पास पर्याप्त गाय-भैंस, हाथी या घोड़े हैं या धनरत्न, हीरा, मोती आदि हैं, वह सबसे बड़ा धनी है। लेकिन तुलसी दास के अनुसार ये सारे धन होते हुए भी अगर मन में सन्तोष नहीं है तो ये सब मूल्य होन हैं। सन्तोष रूपी धन के सामने ये सब धूलि के बराबर तुच्छ हैं। क्योंकि इस प्रकार के धनसे सुख, शान्ति नहीं मिलती। मन चिंतित रहता है।

तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर | तुलसी के दोहे | TULASIDAS KA DOHA | #shorts |

तुलसी के दोहे


तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।

वसीकरण यह मंत्र है, परिहरु वचन कठोर।।

मीठे वचन सबको प्रिय होते हैं। मीठी वाणी से हम सबको अपने वश में कर सकते हैं। मीठी वाणी से सब ओर शान्ति बनी रहती है। सबको सुख मिलता है। ठीक इसके विपरीत कडुए वचन सबको दुःख पहुँचाते हैं। मीठे वचन तो वशीकरण मंत्र (सबको वश में करनेवाले) के समान है। इसलिए हमें कडुए वचन न बोलकर मीठी वाणी ही बोलनी चाहिए।

रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि | रहीम के दोहे | RAHIM KA DOHA | #shorts |

रहीम के दोहे

रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवारि ।।


कवि रहीम का कहना है कि अगर बड़े लोग आपके मित्र हैं, छोटे लोगों को छोड़ मत दीजिए। कारण समाज में दोनों का अलग-अलग महत्व होता है। इसलिए उन्होंने एक उदाहरण देकर कहा है कि जहाँ छोटी सुई की जरूरत होती है, वहाँ आपके पास तलवार है तो क्या उससे काम होगा? नहीं। इसलिए दोनों का आदर करना चाहिए।


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE |#shorts

 रहीम के दोहे 


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।

रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति उत्तम आचरण और गुणों का होता है, उस पर कुसग यानी बुरी संगति का प्रभाव नहीं पड़ता। अर्थात् सज्जन व्यक्ति बुरे लोगों के निकट होने पर भी उनकी बुराई को नहीं अपनाता। जैसे - चन्दन-पेड़ पर जहरीले साँप लपेटे रहने पर भी चन्दन पर उसके जहर का कोई असर नहीं होता। यहाँ चन्दन-पेड़ के साथ उत्तम गुणवाले व्यक्ति तथा साँप के साथ कुसंग की तुलना की गयी है।

बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | #shorts |

रहीम के दोहे

बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल।
‘रहिमन' हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल।। 

बड़े लोग न ज़्यादा बोलते हैं, न ही अपनी प्रशंसा करते हैं। रहीम कहते हैं कि हीरा कब कहता है कि उसका मूल्य लाख मुद्राएँ हैं।

तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान | रहीम के दोहे | RAHIM KA DOHA | #shorts |

रहीम के दोहे


तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।

कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।


पेड़ अपना फल नहीं खाता। तालाब अपना पानी नहीं पीता। ये दोनों क्रमश: दूसरों के लिए फल और पानी की बचत करते हैं। कारण फल खाने से दूसरों की भूख मिटती है। उसे आनन्द मिलता है। पानी पीने से प्यास मिटती है । सन्तोष होता है । ज्ञानी लोग सूझबूझवाले हैं। इसलिए वे दूसरों की भलाई के लिए संपत्ति का संचय करते हैं। इससे परोपकार होता है। परोपकार एक महान कार्य है।