बुधवार, 6 अप्रैल 2022

सबसे सुंदर ल़ड़की – विष्णु प्रभाकर | SABSE SUNDAR LADAKI – VISHNU PRABHAKAR | HINDI STORY

 


 ***

सबसे सुंदर ल़ड़की – विष्णु प्रभाकर


समुद्र के किनारे एक गाँव था। उसमें एक कलाकार रहता था। वह दिनभर समुद्र की लहरों से खेलता रहता, जाल डालता और सीपियाँ बटोरता। रंग-बिरंगी कौड़ियाँ, नाना रूप के सुंदर-सुंदर शंख, चित्र-विचित्र पत्थर, न जाने क्या-क्या समुद्र-जाल में भर देता। उनसे वह तरह-तरह के खिलौने, तरह-तरह की मालाएँ तैयार करता और पास के बड़े नगर में बेच आता।

उसका एक बेटा था, नाम था उसका हर्ष। उम्र अभी ग्यारह की भी नहीं थी, समुद्र की लहरों में ऐसे घुस जाता, जैसे तालाब में बत्तख। एक बार ऐसा हुआ कि कलाकार के एक रिश्तेदार का मित्र कुछ दिन के लिए वहाँ छुट्टी मनाने आया। उसके साथ उसकी बेटी मंजरी भी थी। होगी कोई नौ-दस वर्ष पर की, पर थी बहुत सुंदर, बिलकुल गुड़िया जैसी।

हर्ष बड़े गर्व के साथ उसका हाथ पकड़कर उसे लहरों के पास ले जाता। एक दिन मंजरी ने चिल्लाकर कहा, “तुम्हें डर नहीं लगता?"

मंजरी डरती थी, पर मन ही मन यह भी चाहती थी कि वह भी समुद्र की लहरों पर तैर सके। उसे यह तब और भी ज़रूरी लगता था, जब वह वहाँ की दूसरी लड़कियों को ऐसा करते देखती-विशेषकर कनक को, जो हर्ष के हाथ में हाथ डालकर तूफ़ानी लहरों पर दूर निकल जाती।

हर्ष ने जवाब दिया, "डर क्यों लगेगा, लहरें तो हमारे साथ खेलने आती हैं। " और तभी एक बहुत बड़ी लहर दौड़ती हुई हर्ष की ओर आई, जैसे उसे निगल जाएगी। मंजरी चीख उठी, पर हर्ष तो उछलकर लहर पर सवार हो गया और किनारे पर आ गया।

वह बेचारी थी बड़ी गरीब। पिता एक दिन नाव लेकर गए, तो लौटे ही नहीं। माँ मछलियाँ पकड़कर किसी तरह दो बच्चों को पालती थी। कनक छोटे-छोटे शंखों की मालाएँ बनाकर बेचती। मंजरी को वह लड़की जरा भी नहीं भाती। हर्ष के साथ उसकी दोस्ती तो उसे कतई पसंद नहीं थी।

एक दिन हर्ष ने देखा कि कई दिन से उसके पिता एक सुंदर-सा खिलौना बनाने में लगे हैं। वह एक पक्षी था, जो रंग-बिरंगी सीपियों से बना था। वह देर तक देखता रहा, फिर पूछा, "बाबा, यह किसके लिए बनाया है?"

कलाकार ने उत्तर दिया, “यह सबसे सुंदर लड़की के लिए है। मंजरी सुंदर है। न? दो दिन बाद उसका जन्मदिन है। उस दिन तुम इस पक्षी को उसे भेंट में देना। "

हर्ष की खुशी का पार नहीं था। बोला, "हाँ-हाँ बाबा, मैं यह पक्षी मंजरी को दूँगा।" और वह दौड़कर मंजरी के पास गया, उसे समुद्र किनारे ले गया और बातें करने लगा। फिर बोला," दो दिन बाद तुम्हारा जन्मदिन है" "हाँ, पर तुम्हें किसने बताया?"

"बाबा ने। हाँ, उस दिन तुम क्या करोगी?"

“सबेरे उठकर नहा-धोकर सबको प्रणाम करूँगी। घर पर तो सहेलियों को दावत देती हूँ। वे नाचती-गाती हैं। " और इसी तरह बातें करते-करते वे न जाने कब उठे और दूर तक समुद्र चले गए। सामने एक छोटी-सी चट्टान थी। हर्ष ने कहा, "आओ, छोटी चट्टान तक चलें।" मंजरी काफी निडर हो चली थी। बोली, "चलो।" तभी हर्ष ने देखा-कनक बड़ी चट्टान पर बैठी है। कनक ने चिल्लाकर कहा, "हर्ष, "यहाँ आ जाओ।"

हर्ष ने जवाब दिया, “मंजरी "वहाँ नहीं आ सकती, तुम्हीं इधर आ जाओ।"

अब मंजरी ने भी कनक को देखा। उसे ईर्ष्या हुई। वह वहाँ क्यों नहीं जा सकती? वह क्या उससे कमजोर है...

वह यह सोच ही रही थी कि उसे एक बहुत सुंदर शंख दिखाई दिया। मंजरी अनजाने ही उस ओर बढ़ी। तभी एक बड़ी लहर ने उसके पैर उखाड़ दिए और वह बड़ी चट्टान की दिशा में लुढ़क गई। उसके मुँह में खारा पानी भर गया। उसे होश नहीं रहा।

यह सब आनन-फानन में हो गया। हर्ष ने देखा और चिल्लाता हुआ वह उधर बढ़ा पर तभी एक और लहर आई और उसने उसे मंजरी से दूर कर दिया। अब निश्चित था कि मंजरी बड़ी चट्टान से टकरा जाएगी, परंतु उसी क्षण कनक उस क्रुद्ध लहर और मंजरी के बीच कूद पड़ी और उसे हाथों में थाम लिया।

दूसरे ही क्षण तीनों छोटी चट्टान पर थे। कुछ देर हर्ष और कनक ने मिलकर मंजरी को लिटाया, छाती मली, पानी बाहर निकल गया। उसने आँखें खोलकर देखा, उसे ज़रा भी चोट नहीं लगी थी पर वह बार-बार कनक को देख रही थी।

अपने जन्मदिन की पार्टी के अवसर पर वह बिलकुल ठीक थी। उसने सब बच्चों को दावत पर बुलाया। सभी उसके लिए कुछ न कुछ लेकर आए थे। सबसे अंत में कलाकार की बारी आई। उसने कहा, "मैंने सबसे सुंदर लड़की के लिए सबसे सुंदर खिलौना बनाया है। आप जानते हैं, वह लड़की कौन है? वह है मंजरी।”

सबने खुशी से तालियाँ बजाईं। हर्ष अपनी जगह से उठा और बड़े प्यार से वह सुंदर खिलौना उसने मंजरी के हाथों में थमा दिया। मंजरी बार-बार उस खिलौने को देखती और खुश होती।

तभी क्या हुआ, मंजरी अपनी जगह से उठी। उसके हाथ में वही सुंदर पक्षी था। वह धीरे-धीरे वहाँ आई जहाँ कनक बैठी थी। उसने बड़े स्नेह-भरे स्वर में उससे कहा, “यह पक्षी तुम्हारा है। सबसे सुंदर लड़की तुम्हीं हो।" और एक क्षण तक सभी अचरज से दोनों को देखते रहे। फिर जब समझे, तो सभी ने मंजरी की खूब प्रशंसा की। कनक अपनी प्यारी-प्यारी आँखों से बस मंजरी को देखे जा रही था... और दूर समुद्र में लहरें चिल्ला-चिल्लाकर उन्हें बधाई दे रही थीं।