शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

हजारी प्रसाद द्विवेदी | HAZARI PRASAD DWIVEDI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी

(सन् 1907-1979)

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म गाँव आरत दुबे का छपरा, ज़िला बलिया (उ.प्र.) में हुआ था। संस्कृत महाविद्यालय, काशी से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की।

इसके बाद वे शांति निकेतन चले गए। 1940-50 तक द्विवेदी जी हिंदी भवन, शांति निकेतन के निदेशक रहे। वहाँ उन्हें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और आचार्य क्षितिमोहन सेन का सान्निध्य प्राप्त हुआ। सन् 1950 में वे वापस वाराणसी आए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने। 1952-53 में वे काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष थे। 1955 में वे प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य राष्ट्रपति के नामिनी नियुक्त किए गए। 1960-67 तक पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में हिंदी विभागाध्यक्ष का पद ग्रहण किया। 1967 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रेक्टर नियुक्त हुए। यहाँ से अवकाश ग्रहण करने पर वे भारत सरकार की हिंदी विषयक अनेक योजनाओं से संबद्ध रहे। जीवन के अंतिम दिनों में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष थे। आलोक पर्व पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया।

द्विवेदी जी का अध्ययन क्षेत्र बहुत व्यापक था। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला आदि भाषाओ एवं इतिहास, दर्शन, संस्कृति, धर्म आदि विषयों में उनकी विशेष गति थी। इसी कारण उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति की गहरी पैठ और विषय वैविध्य के दर्शन होते हैं। वे परंपरा के साथ आधुनिक प्रगतिशील मूल्यों के समन्वय में विश्वास करते थे।

द्विवेदी जी की भाषा सरल और प्रांजल है। व्यक्तित्व-व्यंजकता और आत्मपरकता उनकी शैली की विशेषता है। व्यंग्य शैली के प्रयोग ने उनके निबंधों पर पांडित्य के बोझ को हावी नहीं होने दिया है। भाषा-शैली की दृष्टि से उन्होंने हिंदी की गद्य शैली को एक नया रूप दिया। उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं- अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कल्पलता, कुटज, आलोक पर्व (निबंध-संकलन), चारूचंद्रलेख, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा (उपन्यास), सूर-साहित्य, कबीर, हिंदी साहित्य की भूमिका, कालिदास की लालित्य-योजना (आलोचनात्मक ग्रंथ)। उनकी सभी रचनाएँ हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली (के ग्यारह खंड) में संकलित हैं।