शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

भीष्म साहनी| BHISHAM SAHNI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

भीष्म साहनी

(सन् 1915-2003)

भीष्म साहनी का जन्म रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर में ही हुई। इन्होंने उर्दू और अंग्रेज़ी का अध्ययन स्कूल में किया। गवर्नमेंट कालेज लाहौर से आपने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया, तदुपरांत पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

देश-विभाजन से पूर्व इन्होंने व्यापार के साथ-साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन का कार्य किया। विभाजन के बाद पत्रकारिता, इप्टा नाटक मंडली में काम किया, मुंबई में बेरोज़गार भी रहे। फिर अंबाला के एक कॉलेज में तथा खालसा कॉलेज, अमृतसर में अध्यापन से जुड़े। कुछ समय बाद स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में साहित्य का अध्यापन किया। लगभग सात वर्ष विदेशी भाषा प्रकाशन गृह मास्को में अनुवादक के पद पर भी कार्यरत रहे। रूस प्रवास के दौरान रूसी भाषा का अध्ययन और लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का अनुवाद उनकी विशेष उपलब्धि रही। लगभग ढाई वर्षों तक नयी कहानियाँ का कुशल संपादन किया। ये प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो-एशियाई लेखक संघ से भी संबद्ध रहे।

उनकी प्रमुख कृतियों में भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाचू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डायन (कहानी-संग्रह), झरोखे, कड़ियाँ, तमस, बसंती, मय्यादास की माड़ी, कुंतो, नीलू नीलिमा नीलोफर (उपन्यास), माधवी, हानूश, कबिरा खड़ा बजार में, मुआवजे (नाटक), गुलेल का खेल (बालोपयोगी कहानियाँ) आदि महत्त्वपूर्ण हैं।

तमस उपन्यास के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके साहित्यिक अवदान के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली ने उन्हें शलाका सम्मान से सम्मानित किया। उनकी भाषा में उर्दू शब्दों का प्रयोग विषय को आत्मीयता प्रदान करता है। उनकी भाषा-शैली में पंजाबी भाषा की सोंधी महक भी महसूस की जा सकती है। साहनी जी छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करके विषय को प्रभावी एवं रोचक बना देते हैं। संवादों का प्रयोग वर्णन में ताज़गी ला देता है।