गुरुवार, 4 जून 2020

पर्वत प्रदेश में पावस (कविता) - सुमित्रानंदन पंत

पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत





पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, 
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकार पर्वत अपार 
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़, 
अवलोक रहा है बार-बार 
नीचे जल में निज महाकार,

जिसके चरणों में पला ताल 
दर्पण-सा फैला है विशाल!

गिरि का गौरव गाकर झर-झर 
मद में नस-नस उत्तेजित कर 
मोती की लड़ियों-से सुंदर 
झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर 
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर 
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर 
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उड़ गया, अचानक लो, भूधर 
फड़का अपार पारद के पर! 
रव-शेष रह गए हैं निर्झर! 
है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल! 
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल! 
यों जलद-यान में विचर-विचर 
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।



जन्म : 20 मई 1900
निधन : 28 दिसंबर 1977
जन्म स्थान : कौसानी-अलमोड़ा, उत्तराखंड, भारत

विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी रचनाकार, छायावादी युग के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत है। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जी है। सुमित्रानंदन पंत झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। पंत जी की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम और रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद वे मार्क्स और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए, बाद की कविताओं में अरविंद दर्शन का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। 

1961 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया। पंत जी को कला और बूढ़ा चाँद कविता संग्रह पर 1960 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार, 1969 में चिदंबरा संग्रह पर ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं - वीणा, पल्लव, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण और लोकायतन।