मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

मीरा के श्रृंगारपरक पद (Teaching Aids)

मीरा के श्रृंगारपरक पद (Teaching Aids)


मीराबाई - कवि परिचय



हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की कवियत्रियों में मीराबाई प्रथम कवियत्री है। मीराबाई राजस्थान के मेडता वीर शासक एवं रात्नसिंह की इकलौती पुत्री थी। उनका जन्म मेडता के चौकडी नामक गाँव में हुआ। उनका विवाह मेवाड के राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ मीरा का विवाह कर दिया। परन्तु उनका वैवाहिक जीवन बहुत ही संक्षिप्त रहा और विवाह के कुछ समय बाद ही कुँवर भोजराज की मृत्यु हो गयी। अतः बीस वर्ष की उम्र में ही मीरा विधवा हो गयी। शोक में डूबी मीरा को कृष्ण के प्रेम का सहारा मिला। राजगृह की मर्यादा की रक्षा के लिए मीरा को मारने का प्रयत्न किया, पर वे मीरा को मार न सके। इस घटना के बाद मीरा ने गृह-त्याग करके पवित्र स्थानों की यात्रा की। मीराबाई के प्रेम का मूलाधार श्रीकृष्ण ही है। उनके पदों में सर्वत्र ही उनकी व्यक्तिगत अनुभूतियों का प्रतिबिंब झलक उठता है। 



दरस बिन दूखण लागे नैन।

जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।

सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।

बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।

कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।

मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।