शनिवार, 30 जनवरी 2016
प्रभाकर माचवे
प्रभाकर माचवे
प्रभाकर माचवे की कविताओं में लोकजीवन का संपूर्ण दृश्य उभरकर आता है। प्रकृति का सजीव चित्र भी प्रस्तुत करने में वे सक्षम हैं। लोक संस्कृति की पूर्ण अभिव्यक्ति एक दृश्य में दृष्टव्य होती हैं-
उनकाल अछोर खेतों में
हलवाहों के बालकगण कुछ खेल रहे हैं
पहली झड़ियों से निर्मित कर्दम की गेदों झेल रहै हैं
वे बालक हैं, वे भी कर्दम-मिट्टी के ही राजदुलारे
बादल पहले-पहले बरसे, बचे-खुचे छितरे दिशहारे
सद्यस्नाता हरित-श्यामता, शस्य-बालियों में प्रफुल्लता
प्रकृति में सौन्दर्य फैलता
किन्तु गाँववालों के लड़के ये मट मैल्,
करते धक्कामधक्का।
शुक्रवार, 29 जनवरी 2016
धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती की कविताओं में भी लोकजीवन की
अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। संपूर्ण प्रकृति को नानाविध रंगों के साथ वे वर्णन
करते हैं। लोक जीवन में बोआई के वक्त जो गीत गाये जाये हैं, उसी को वे प्रमुख
स्थान देते हैं। बोआई का गीत नामक छोटी कविता में उनकी लोकधर्मिता की अभिव्यक्ति
का अनुभव किया जा सकता है। प्रकृति को उन्होंने वीर बहूटी के रूप में चित्रित किया
है।
गोरी-गोरी सोंधी धरती-कारे-कारे बीज
बदरा पानी है
क्यारी-क्यारी गूँज उटा संगीत
मैं बोऊँगा बीरबहूरी, इन्द्रधनुष सतरंग
नये सितारे, नयी पीढियाँ, नये धान का रंग।
गुरुवार, 28 जनवरी 2016
बुधवार, 27 जनवरी 2016
अज्ञेय
अज्ञेय
अज्ञेय की कविताओं में लोक जीवन की अभूतपूर्व
अभिव्यक्ति मिलती है। उनका रचना संसार लोक के चित्रों से ओतप्रोत है। लोकजीवन का
अस्तित्व पंचभूतों पर अधारित है। वे प्रकृति के निकट रहनेवाले कवि हैं। इसकी
अभिव्यक्ति अज्ञेय की कविता में हम देख सकते हैं-
कुछ भी गायब नहीं होता
रहता है, किसी न किसी तरह
आकाश, हवा, पानी, आग, मिट्टी
किसी न किसी तरह।
मंगलवार, 26 जनवरी 2016
सोमवार, 25 जनवरी 2016
गुरुवार, 14 जनवरी 2016
बुधवार, 13 जनवरी 2016
मंगलवार, 5 जनवरी 2016
सोमवार, 4 जनवरी 2016
रविवार, 3 जनवरी 2016
शनिवार, 2 जनवरी 2016
शुक्रवार, 1 जनवरी 2016
सदस्यता लें
संदेश (Atom)