रविवार, 22 मई 2016

पुष्प की अभिलाषा (फूल की चाह) | माखनलाल चतुर्वेदी | PUSHP KI ABHILASHA | MAKHANLAL CHATURVEDI

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी


आशय : भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए हर भारतीय तन-मन-धन ले तैयार था। कवि ने त्याग और बलिदान की इस भावना को फूल बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस कविता में भारत बगीचा है तो हर भारतीय फूल है । इस कविता में भारतवासियों का देशप्रेम सुंदर रूप से प्रकट हुआ है।


चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ।


चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।










मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक।



कवि परिचय : माखनलाल चतुर्वेदी जी (१८८८-१९६९) आधुनिक हिंदी साहित्य की राष्ट्रीय-भावना के कवियों में अग्रणी हैं। आपकी रचनाओं में राष्ट्रीयता का ओजस्वी स्वर गूँजता है। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको जेल भी जाना पड़ा था। काव्य के क्षेत्र में आपको 'एक भारतीय आत्मा' के रूप में जाना जाता है। 'हिमकिरीटिनी' 'हिम-तरंगिनी', 'माता' 'समर्पण', 'युग-चरण' आपकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।