बुधवार, 1 जून 2016

बादल को घिरते देखा है – बाबा नागार्जुन

बादल को घिरते देखा है – बाबा नागार्जुन

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।

छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों ले आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा-काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान् सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

दुर्गम बर्फानी घाटी में
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल-
के पीछे धावित हो-होकर
तरल-तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
कहाँ गय धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत किन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु कनन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों की कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपटी पर,
नरम निदाग बाल कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।

बादल को घिरते देखा है।

बीती विभावरी जाग री! - जयशंकर प्रसाद

बीती विभावरी जाग री! - जयशंकर प्रसाद


बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही

तारा घट ऊषा नागरी।

खग कुल-कुल सा बोल रहा,

किसलय का अंचल डोल रहा,

लो यह लतिका भी भर लाई

मधु मुकुल नवल रस गागरी।

अधरों में राग अमंद पिये,

अलकों में मलयज बंद किये

तू अब तक सोई है आली

आँखों में भरे विहाग री।

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1. सन् 1913 किस कवि का जन्मशती-वर्ष है?
A) शमशेर बहादुर सिंह 

B) भवानीप्रसाद मिश्र 
C) केदारनाथ अग्रवाल 
D) नरेंद्रशर्मा

2. प्रयोगवादी काव्यधारा में कौन कवि नहीं है?
A) कुँवरनारायण 
B) भारत भूषण अग्रवाल 
C) शमशेर बहादुर सिंह 
D) नागार्जुन

3. मुक्तिबोध की कौन सी रचना फैंटेसी से प्रभावित नहीं है?
A) चाँद का मुँह टेढ है 
B) ब्रह्मराक्षस 
C) भूल-गलती 
D) अँधेरे में

4. समकालीन कविता का प्रारंभ निराला की कविताओं से माननेवाले आलोचक?
A) डॉ.परमानंद श्रीवास्तव 
B) रामचंद्रशुक्ल 
C) हजारी प्रसाद द्विवेदी 
D) रामविलासशर्मा

5. 'फटा हुआ जूता' किसकी कहानी है?
A) कमलेश्वर 
B) राजेंद्र यादव 
C) मोहनराकेश 
D) मन्नुभण्डारी

6. 'संग्रथन' किस संस्था से प्रकाशित पत्रिका है?
A) केरल हिन्दी प्रचार सभा 
B) दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा
C) हिन्दी विद्यापीठ 
D) केरल हिन्दी साहित्य अकादमी

7. इनमें कौन केंतुम वर्ग की शाखा नहीं है?
A) जर्मनिक 
B) लैटिन 
C) ग्रीक 
D) फारसी

8. 'हमारी भावात्मक संतुष्टि का नाम ही सौन्दर्य है।'  किसका कथन है?
A) क्रोचे 
B) प्लेटो 
C) ऐ.ए.रिचर्डस 
D) लाँजाइनस

9. इनमें महोबा नरेश परमाल के दरबारी कवि कौन थे?
A) भट्टकेदार 
B) मधुकर कवि 
C) अमीर खुसरो 
D) जगनिक

10. गोपालराम गहमरी ने अपने उपन्यासों के प्रकाशनार्थ किस पत्रिका का प्रारंभ किया?
A) हंस 
B) मतवाला 
C) हिन्दुस्तान 
D) जासूस