रविवार, 29 मई 2016

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-25

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1. 'पउमचरिउ' किसकी रचना है?
A) अब्दुल रहमान
B) विद्यापति
C) स्वयंम्भू
D) चंदबरदायी

2. गोस्वमी तुलसीदीस की रचना 'कवितावली' किस भाषा की रचना है?
A) अवधी 
B) ब्रजभाषा 
C) मैथिली 
D) बुन्देली

3. खडीबोली के लिए सुनीतिकुमार चटजी ने किस शब्द का प्रयोग किया है?
A) जनपदीय हिन्दुस्तानी
B) वर्नाक्युलर हिन्दुस्तानी
C) कौरवी
D) रेख्ता

4. सूफी प्रेमाख्यानक काव्य-परम्परा में आराध्य को प्रायः किस रूप में देखा गया है?
A) गुरू के रूप में
B) प्रेमी के रूप में
C) सखा के रूप में
D) प्रेमिका के रूप में

5. छायावाद को "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह" किसने कहा है?
A) सुमित्रानंदन पन्त
B) डॉ.नगेन्द्र
C) रामचंद्र शुक्ल
D) जयशंकर प्रसाद

6. निम्नलिखित में से कौन मिश्र बन्धुओं में नहीं है?
A) कृष्णबिहारी मिश्र
B) श्यामबिहारी मिश्र
C) गणेशबिहारी मिश्र
D) शुकदेव बिहारी मिश्र

7. "रस गंगाधर" के रचयिता कौन है?
A) अभिनवगुप्त 
 B) दण्डी 
C) पं. जगन्नाथ 
D) विश्वनाथ

8. निम्नलिखित में से कौन तार सप्तक का कवि नहीं है?
A) शमशेर बहादुर सिंह
B) गिरिजाकुमार माथुर
C) मुक्तिबोध
D) प्रभाकर माचवे

9. 'शिवपालगंज' किस उपन्यास से संबंधित है?
A) बिश्रामपुर का संत
B) राग दरबारी
C) आधा गाँव
D) मैला आँचल

10. भरतमुनि के अनुसार काव्य में कुल कितने गुण होते हैं?
A) दस 
B) पाँच 
C) तीन 
D) सात

शनिवार, 28 मई 2016

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-24

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1. महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्यों का वृतान्त इस ग्रंथ में है?
A) दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता
B) भक्तिमाला
C) चौरासी वैष्णवन की वार्ता
D) वचनामृत

2. काशी में हम प्रगट भए, सामानंद चेताये। - किसकी पंक्ति है?
A) कबीर 
B) तुलसी 
C) सूर 
D) रैदास

3. रासो शब्द की उत्पति रसायण से किसने मानी है?
A) गार्सा-द-तासी 
B) पं. रामनारायण दूगड 
C) रामचंद्रशुक्ल 
D) पं. हरप्रसाद शास्त्री

4. लक्षण ग्रंथ का अर्थ है?
A) नायिका भेद 
B) काव्याग विवेचन 
C) रस निष्पत्ति 
D) गुण-दोष

5. निम्नलिखित कवियों में रीतिसिद्ध कौन है?
A) बिहारी 
B) घनानंद 
C) मतिराम 
D) तोष
दोनों रीतिसिद्ध कवि मानते थे......

6. अनुमितिवाद के प्रतिष्ठाता कौन हैं?
A) भरतमुनि 
B) आनंदवर्धन 
C) शंकुक 
 D) अभिनव गुप्त

7. निम्नलिखित में से कौन भारोपीय परिवार की भाषा नहीं है?
A) मराठी 
B) गुजराती 
C) मलयालम 
D) हिन्दी

8. 'विश्ववजन की अर्चना में नहीं बाधक था इस व्यष्टि का अभिमान' – किसकी पंक्ति है?
A) भारतभूषण अग्रवाल 
B) अज्ञेय 
C)नेमीचंद्र जैन 
D) त्रिलोचन

9. मतवाला के संपादक कौन थे?
A) भारतेन्द हरिश्चंद्र
B) धर्मवीर भारती
C) निराला
D) शिवपूजन सहाय

10. साखी किसका संकलन है?
A) शमशेर बहादुर सिंह
B) कीर्ति चौधरी
C) हरिनारायणव्यास
D) विजयदेव नारायण साही

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-23

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1. 'अब लौं नसानी, अब न नसैहौं' – किसकी उक्ति है?
A) तुलसीदास 
B) सूरदास 
C) मीराबाई 
D) कबीरदीस

2. इनमें से कौन सी रचना अवधी भाषा की नहीं है?
A) रामचरितमानस 
B) पद्मावत 
C) विनयपत्रिका 
D) चांदायन

3. 'उद्धनशतक' किसकी कृति है?
A) सत्यनारायण कविरत्न 
B) गयाप्रसाद शुक्ल सनेही 
C) नाथूराम शर्मा शंकर 
D) जगन्नाथदास रत्नाकर

4. इनमें से कौन सी रचना केशवदास की नहीं है?
A) रामचंद्रिका 
B) कविप्रिया 
C) ललित ललाम 
D) रसिकप्रिया

5. निराला कृत 'राम की शक्तिपूजा' की 
रचना का आधार-ग्रन्थ कौन सा है?
A) कम्बन रामायण 
B) कृतवास रामायण 
C) रामचरितमानस 
D) रामचंद्रिका

6. आत्मजयी किसकी रचना है?
A) कुँवर नारायण 
B) दुष्यंत कुमार 
C) धर्मनीर भारती 
 D) श्रीनरेश मेहता

7. इनमें नयी कहानी आन्दोलन के प्रारम्भकर्ताओं में से कौन नहीं है?
A) कमलेश्वर 
B) राजेन्द्रयादव 
C) ज्ञानरंजन 
D) मोहन राकेश

8. 'मैं बोरिशाइल्ला' किसकी रचना है?
A) अनामिका 
 B) महुआ माझी 
C) मैत्रेयी पुष्पा 
 D) चित्रा मुद्गल

9. निम्नलिखित रचनाओं में आत्मकथा कौन सी नहीं है?
A) मेरी आत्मकहानी 
B) मेरी असफलताएँ 
C) मेरी जीवनयात्रा 
D) माटी की मूरतें

10. 'मेरे राम का मुकुट भीग रहा है' – किसका निबंध है?
A) विद्यानिवास मिश्र 
B) कुबेरनाथ राय 
C) हरिशंकर परसाई 
 D) धर्मवीर भारती

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-22

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1. सरहपा का सम्बंध निम्न में से किससे है?
A) सिद्ध साहित्य
B) रासो काव्य
C) नाथ साहित्य
D) जैन काव्य

2. निम्नलिखित में से कौन अष्टछाप के कवि नहीं हैं?
A) सूरदास
B) कुंभनदास
C) नन्ददास
D) सुन्दरदास

3. बिहारी किस धारा के कवि हैं?
A) रीतिसिद्ध
B) रीतिमुक्त
C) स्वच्छन्द
D) रीतिबद्ध

4. प्रेमचंद किस प्रवृति के उपन्यासकार हैं?
A) आदर्शवादी
B) यथार्थवादी
C) आदर्शोन्मुख यथार्थवादी
D) यथार्थोन्मुख आदर्शवादी

5. अमृतलाल नागर के जीवनीपरक उपन्यास 'खंजन नयन' में किसके जीवन का चित्रण किया गया है?
A) सूरदास
B) तुलसीदास
C) रैदास
D) मीराबाई

6. अंगरेजी स्वच्छन्दवादी काव्य का प्रभाव हिन्दी की किस काव्यधार पर दिखाई देता है?
A) प्रगतिवाद
B) प्रयोगवाद
C) छायावाद
D) नई कविता

7. दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज जो नहीं कही।
उपर्युक्त पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं?
A) सरोज स्मृति
B) राम की शक्तिपूजा
C) तुलसीदास
D) कुकुरमुक्ता

8. 'रस आखेटक' के रचनाकार हैं -
A) हजारी प्रसाद द्विवेदी
B) विद्यानिवास मिश्र
C) कुबेरनाथ राय
D) शरद जोशी

9. निम्न में से कौन सी हरिशंकर परसाई की रचना नहीं है?
A) विकलांग श्रद्धा का दौर
B) ठिठुरता हुआ गणतंत्र
C) प्रेमचंद के फटे जूते
D) जीप पर सवार इल्लियाँ (शरद जोशी)

10. 'एक बूँद सहसा उछली' किस विधा की रचना है?
A) यात्रा-वृतांत
B) संस्मरण
C) रेखाचित्र
D) निबंध

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-21

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1. “शब्दार्थौ सहितौ काव्यम” - काव्य की यह परिभाषE किसकी है?
A) भामह
B) दण्डी
C) मम्मट
D) रूद्रट

2. “अवस्थानुकृति नाटयम”। प्रस्तुत कथन किसका है?
A) धनंजय
B) भरतमुनि
C) भास
D) कालिदास

3.लडका खेल रहा था - कौन सा काल है
A) समान्य- भूतकाल
B) आसन्न भूतकाल
C) पूर्ण भूतकाल
D) अपूर्ण भूतकाल

4.प्रेमचन्द द्वारा लिखित नाटक कौन-सा है

A) संग्राम
B) अजातशत्रु
C) कोणार्क
D) सूर्यमुख

5. ‘पंचमवेद’ रूपी नाटक के निर्माण में ब्रह्मा ने ‘सामवेद’ से कौन सा तत्व स्वीकार किया था?
A) नाट्य
B) गान
C) रस
D) संवाद

6. मोहन राकेश का ‘शायद’ किस प्रकार का नाटक है?
A) पाश्र् र्व नाटक
B) बीज नाटक
C) एकांकी
D) गीतिनाट्य

7.पृथ्वीराज रासो के संबंध में श्यामसुन्दर दास का मत क्या है?
A) रासो पूर्णतः प्रामाणिक है
B) रासो पूर्णतः अप्रामाणिक है
C) न पूर्णतः प्रामाणिक है
D) न पूर्णतः अप्रामाणिक है

8. “दूसरी परंपरा की खोज” किसकी आलोचनात्मक रचना है?
A) इन्द्रनाथ मदान
B) विजयेन्द्र स्नातक
C) नामवरसिंह
D) रमेश कुंतल मेघ

9. दिल्ली में सन् 1967 में “संवाद” नामक नाट्य संस्था की स्थापना किसने की?
A) शंकरशेष
B) गिरीश रस्तोगी
C) लक्ष्मीनारायण लाल
D) लक्ष्मीनारायण मिश्र

10. ‘समकालीन कविता’ का प्रारंभ निराला की कविताओं से माननेवाले आलोचक? 
A) डॉ.परामानंद श्रीवास्तव
B) रामचन्द्र शुक्ल
C) हजारी प्रसाद व्दिवेदी
D) रामविलास शर्मा

सोमवार, 23 मई 2016

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-20

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1.लालचंद्रिका के रचनाकार हैं?
A. लल्लूलालजी
B. सदल मिश्र
C. गंगा प्रसाद शुक्ल
D. राजा शिवप्रसाद

2.साखी सबदी दोहरा कहि कहनी उपकान।
भगति निसृपहिं अधम कवि निंदहिं वेद पुरान। 
-किस कवि की पंक्तियाँ हैं?
A. कबीरदास
B. भिखारीदास
C. तुलसीदास
D. सूरदास

3.बीसलदेव रासो के रचनाकार हैं?
A. जगनिक
B. शारंगधर कवि
C. नल्लसिंह
D. नरपति नाल्ह

4.अद्दहमाण की रचना है?
A. प्राकृत पैंगलम
B. संदेश रासक
C. जयचंद्र प्रकाश
D. प्रबंध चिंतामणि

5.काव्यालंकार संग्रह के रचनाकार हैं -
A. उद्भट
B. भामह
C. दण्डी
D. वामन

6.एवं क्रमहेतुमभिधाय रसविषयं लक्षणसूत्रमाह –
यह रस संबंधी सूत्र किस आचार्य का है? 
A. भरतमुनि
B. आनंदवर्धन
C. अभिनव गुप्त
D. हेमचंद्र

7.उक्तिव्यक्तिप्रकरण ग्रंथ का विषय है?
A. पुराण
B. प्रेमकाव्य
C. भक्तिकाव्य
D. व्याकरण

8.मस्तीन सुखा डाहिबी।आसीम औरम थाहिबी।।
धी धी धुना नुप जाहिबी। फीफी फिना सत साहिबी।।
- उपरोक्त पंक्तियाँ किस भाषा का नमूना हैं
A. मागधी
B. पैशाची
C. बांगरू
D. कौरवी

9.अष्टछाप के कवि नहीं हैं?
A. रैदास
B. कृष्णदास
C. परमानंददास
D. नंददास

10.राधावल्लभी संप्रदाय के आचार्य हैं?
A. रामानुजाचार्य
B. गोस्वमी हितहरिवंश
C. वल्लभाचार्य
D. शंकराचार्य

UGC-NET&SET-MODEL PAPER-19

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1. कुवलयमाला कथा के रचनाकार हैं?
A) उद्योतन सूरि
B) मेरूतुंग
C) दामोदर शर्मा
D) हेमचन्द्र

2. खुसरो की रचना खालिक बारी वस्तुतः है?
A) पहेलियों का संकलन
B) कहमुकरियों का संकलन
C) फारसी-हिन्दी शब्दकोश
D) मनोरंजनपरक रचना

3. किस समीक्षक ने विद्यापति की पदावलियों को जीव और परमात्मा के सम्बन्ध का रूपक माना है?
A) हजारीप्रसाद व्दिवेदी
B) आनन्दकुमार स्वामी
C) शिवप्रसाद सिंह
D) रामवृक्ष बेनीपुरी

4. सिंधी भाषा का विकास अपभ्रंश की किस बोली से माना गया है?
A) ब्राचड
B) पैशाची
C) मागधी
D) अर्धमागधी

5. इनमें से कौन सी भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं है?
A) डोगरी
B) संथाली
C) बोडो
D) भोजपुरी

6. इनमें से किस शब्द में उपसर्ग नहीं है?
A) अपमान
B) अपराध
C) अपयश
D) अपमति

7. सबरस के रचनाकार हैं?
A) मुल्ला वजही
B) कुली कुतुबशाह
C) इंशा अल्ला खाँ
D) सैयद हुसैन अली खाँ

8. फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना कब हुई?
A) सन् 1800 ई
B) सन् 1805 ई
C) सन् 1857 ई
D) सन् 1900 ई

9. बेकसी का मजार उपन्यास के लेखक हैं?
A) अमृतलाल नागर
B) प्रतापनारायण श्रीवास्तव
C) चतुरसेन शास्त्री
D) विष्णु प्रभाकर

10 सरस्वती पत्रिका के प्रथम सम्पादक हैं?
A) महावीरप्रसाद व्दिवेदी
B) प्रतापनारायण मिश्र
C) बाबू श्यामसुंदर दास
D) ठाकुर शिवप्रसाद सिंह

असाध्य वीणा - अज्ञेय

असाध्य वीणा


आ गए प्रियंवद! केशकंबली! गुफा-गेह!
राजा ने आसन दिया। कहा :
'कृतकृत्य हुआ मैं तात! पधारे आप।
भरोसा है अब मुझ को
साध आज मेरे जीवन की पूरी होगी!'

लघु संकेत समझ राजा का
गण दौड़े। लाये असाध्य वीणा,
साधक के आगे रख उस को, हट गए।
सभी की उत्सुक आँखें
एक बार वीणा को लख, टिक गईं
प्रियंवद के चेहरे पर।

'यह वीणा उत्तराखंड के गिरि-प्रांतर से
-घने वनों में जहाँ तपस्या करते हैं व्रतचारी-
बहुत समय पहले आयी थी।
पूरा तो इतिहास न जान सके हम :
किंतु सुना है
वज्रकीर्ति ने मंत्रपूत जिस
अति प्राचीन किरीटी-तरु से इसे गढ़ा था-
उस के कानों में हिम-शिखर रहस्य कहा करते थे अपने,
कंधों पर बादल सोते थे,
उस की करि-शुंडों-सी डालें
हिम-वर्षा से पूरे वन-यूथों का कर लेती थीं परित्राण,
कोटर में भालू बसते थे,
केहरि उस के वल्कल से कंधे खुजलाने आते थे।
और-सुना है-जड़ उस की जा पहुँची थी पाताल-लोक,
उस की ग्रंथ-प्रवण शीतलता से फण टिका नाग वासुकि सोता था।
उसी किरीटी-तरु से वज्रकीर्ति ने
सारा जीवन इसे गढ़ा :
हठ-साधना यही थी उस साधक की-
वीणा पूरी हुई, साथ साधना, साथ ही जीवन-लीला।'

राजा रुके साँस लंबी ले कर फिर बोले :
'मेरे हार गए सब जाने-माने कलावंत,
सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर,
कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।
अब यह असाध्य वीणा ही ख्यात हो गई।
पर मेरा अब भी है विश्वास
कृच्छ्र-तप वज्रकीर्ति का व्यर्थ नहीं था।
वीणा बोलेगी अवश्य, पर तभी
इसे जब सच्चा-स्वरसिद्ध गोद में लेगा।
तात! प्रियंवद! लो, यह सम्मुख रही तुम्हारे
वज्रकीर्ति की वीणा,
यह मैं, यह रानी, भरी सभा यह :
सब उदग्र, पर्युत्सुक,
जन-मात्र प्रतीक्षमाण!'

केशकंबली गुफा-गेह ने खोला कंबल।
धरती पर चुप-चाप बिछाया।
वीणा उस पर रख, पलक मूँद कर, प्राण खींच
कर के प्रणाम,
अस्पर्श छुअन से छुए तार।
धीरे बोला : 'राजन्! पर मैं तो
कलावंत हूँ नहीं, शिष्य, साधक हूँ-
जीवन के अनकहे सत्य का साक्षी।
वज्रकीर्ति!
प्राचीन किरीटी-तरु!
अभिमंत्रित वीणा!
ध्यान-मात्र इन का तो गद्‍गद विह्वल कर देने वाला है!'

चुप हो गया प्रियंवद।
सभा भी मौन हो रही।

वाद्य उठा साधक ने गोद रख लिया।
धीरे-धीरे झुक उस पर, तारों पर मस्तक टेक दिया।
सभा चकित थी- अरे, प्रियंवद क्या सोता है?
केशकंबली अथवा हो कर पराभूत
झुक गया वाद्य पर?
वीणा सचमुच क्या है असाध्य?

पर उस स्पंदित सन्नाटे में
मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा-
नहीं, स्वयं अपने को शोध रहा था।
सघन निविड़ में वह अपने को
सौंप रहा था उसी किरीटी-तरु को।
कौन प्रियंवद है कि दंभ कर
इस अभिमंत्रित कारुवाद्य के सम्मुख आवे?
कौन बजावे
यह वीणा जो स्वयं एक जीवन भर की साधना रही?
भूल गया था केशकंबली राज-सभा को :
कंबल पर अभिमंत्रित एक अकेलेपन में डूब गया था
जिस में साक्षी के आगे था
जीवित वही किरीटी-तरु
जिस की जड़ वासुकि के फण पर थी आधारित,
जिस के कंधों पर बादल सोते थे
और कान में जिस के हिमगिरि कहते थे अपने रहस्य।
संबोधित कर उस तरु को, करता था
नीरव एकालाप प्रियंवद।

'ओ विशाल तरु!
शत-सहस्त्र पल्लवन-पतझरों ने जिस का नित रूप सँवारा,
कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,
दिन भौंरे कर गए गुंजरित,
रातों में झिल्ली ने
अनथक मंगल-गान सुनाये,
साँझ-सवेरे अनगिन
अनचीन्हे खग-कुल की मोद-भरी क्रीड़ा-काकलि
डाली-डाली को कँपा गई-
ओ दीर्घकाय!
ओ पूरे झारखंड के अग्रज,
तात, सखा, गुरु, आश्रय,
त्राता महच्छाय,
ओ व्याकुल मुखरित वन-ध्वनियों के
वृंदगान के मूर्त रूप,
मैं तुझे सुनूँ,
देखूँ, ध्याऊँ
अनिमेष, स्तब्ध, संयत, संयुत, निर्वाक् :
कहाँ साहस पाऊँ
छू सकूँ तुझे!
तेरी काया को छेद, बाँध कर रची गई वीणा को
किस स्पर्धा से
हाथ करें आघात
छीनने को तारों से
एक चोट में वह संचित संगीत जिसे रचने में
स्वयं न जाने कितनों के स्पंदित प्राण रच गए!


'नहीं, नहीं! वीणा यह मेरी गोद रखी है, रहे,
किंतु मैं ही तो
तेरी गोदी बैठा मोद-भरा बालक हूँ,
ओ तरु-तात! सँभाल मुझे,
मेरी हर किलक
पुलक में डूब जाय:
मैं सुनूँ,
गुनूँ, विस्मय से भर आँकूँ
तेरे अनुभव का एक-एक अंत:स्वर
तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय-
गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँसें
भरें, पुरें, रीतें, विश्रांति पाएँ।

'गा तू!
यह वीणा रक्खी है : तेरा अंग-अपंग!
किंतु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,
रस-विद्
तू गा :
मेरे अँधियारे अंतस् में आलोक जगा
स्मृति का
श्रुति का-
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा!

'हाँ, मुझे स्मरण है :
बदली-कौंध-पत्तियों पर वर्षा-बूँदों की पट-पट।
घनी रात में महुए का चुप-चाप टपकना।
चौंके खग-शावक की चिहुँक।
शिलाओं को दुलराते वन-झरने के
द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।
कुहरे में छन कर आती
पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।
गड़रियों की अनमनी बाँसुरी।
कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :
ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल
कि झरते-झरते मानो
हरसिंगार का फूल बन गई।
भरे शरद् के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।
कूँजों का क्रेंकार। काँद लंबी टिट्टिभ की।
पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।
चीड़-वनों में गंध-अंध उन्मद पतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट
जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।
झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में
संसृति की साँय साँय।

'हाँ, मुझे स्मरण है :
दूर पहाड़ों से काले मेघों की बाढ़
हाथियों का मानो चिंघाड़ रहा हो यूथ।
घरघराहट चढ़ती बहिया की।
रेतीले कगार का गिरना छप्-छड़ाप।
झंझा की फुफकार, तप्त,
पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।
ओले की कर्री चपत।

जमे पाले से तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।
ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घाम में धीरे-धीरे रिसना।
हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुप-चाप।
घाटियों में भरती
गिरती चट्टानों की गूँज-
काँपती मंद्र गूँज-अनुगूँज-साँस खोयी-सी, धीरे-धीरे नीरव।
'मुझे स्मरण है :
हरी तलहटी में, छोटे पेड़ों की ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशुओं की नानाविध आतुर-तृप्त पुकारें :
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूँक, हुक्का, चिचियाहट।
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-पंछी की चाप
थाप दादुर की चकित छलाँगों की।
पंथी के घोड़े की टाप अधीर।
अचंचल धीर थाप भैंसों के भारी खुर की।

'मुझे स्मरण है :
उझक क्षितिज से
किरण भोर की पहली
जब तकती है ओस-बूँद को
उस क्षण की सहसा चौंकी-सी सिहरन।
और दुपहरी में जब
घास-फूल अनदेखे खिल जाते हैं
मौमाखियाँ असंख्य झूमती करती हैं गुंजार-
उस लंबे विलमे क्षण का तंद्रालस ठहराव।

और साँझ को
जब तारों की तरल कँपकँपी
स्पर्शहीन झरती है-
मानो नभ में तरल नयन ठिठकी
नि:संख्य सवत्सा युवती माताओं के आशीर्वाद-
उस संधि-निमिष की पुलकन लीयमान।

'मुझे स्मरण है :
और चित्र प्रत्येक
स्तब्ध, विजड़ित करता है मुझ को।
सुनता हूँ मैं
पर हर स्वर-कंपन लेता है मुझ को मुझ से सोख-
वायु-सा नाद-भरा मैं उड़ जाता हूँ...।
मुझे स्मरण है-
पर मुझ को मैं भूल गया हूँ :
सुनता हूँ मैं-
पर मैं मुझ से परे, शब्द में लीयमान।

'मैं नहीं, नहीं! मैं कहीं नहीं!
ओ रे तरु! ओ वन!
ओ स्वर-संभार!
नाद-मय संसृति!
ओ रस-प्लावन!
मुझे क्षमा कर-भूल अकिंचनता को मेरी-
मुझे ओट दे-ढँक ले-छा ले-
ओ शरण्य!
मेरे गूँगेपन को तेरे सोये स्वर-सागर का ज्वार डुबा ले!
आ, मुझे भुला,
तू उतर वीन के तारों में
अपने से गा
अपने को गा-
अपने खग-कुल को मुखरित कर
अपनी छाया में पले मृगों की चौकड़ियों को ताल बाँध,
अपने छायातप, वृष्टि-पवन, पल्लव-कुसुमन की लय पर
अपने जीवन-संचय को कर छंदयुक्त,
अपनी प्रज्ञा को वाणी दे!
तू गा, तू गा-
तू सन्निधि पा-तू खो
तू आ-तू हो-तू गा! तू गा!'

राजा जागे।
समाधिस्थ संगीतकार का हाथ उठा था-
काँपी थीं उँगलियाँ।
अलस अँगड़ाई ले कर मानो जाग उठी थी वीणा :
किलक उठे थे स्वर-शिशु।
नीरव पद रखता जालिक मायावी
सधे करों से धीरे धीरे धीरे
डाल रहा था जाल हेम-तारों का।

सहसा वीणा झनझना उठी-
संगीतकार की आँखों में ठंडी पिघली ज्वाला-सी झलक गई-
रोमांच एक बिजली-सा सब के तन में दौड़ गया।
अवतरित हुआ संगीत
स्वयंभू
जिस में सोता है अखंड
ब्रह्मा का मौन
अशेष प्रभामय।

डूब गए सब एक साथ।
सब अलग-अलग एकाकी पार तिरे।

राजा ने अलग सुना :
जय देवी यश:काय
वरमाल लिए
गाती थी मंगल-गीत,
दुंदुभी दूर कहीं बजती थी,
राज-मुकुट सहसा हलका हो आया था, मानो हो फूल सिरिस का
ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता
सभी पुराने लुगड़े-से झर गए, निखर आया था जीवन-कांचन
धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा।

रानी ने अलग सुना :
छँटती बदली में एक कौंध कह गई-
तुम्हारे ये मणि-माणक, कंठहार, पट-वस्त्र,
मेखला-किंकिणि-
सब अंधकार के कण हैं ये! आलोक एक है
प्यार अनन्य! उसी की
विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,
थिरक उसी की छाती पर उस में छिप कर सो जाती है
आश्वस्त, सहज विश्वास-भरी।
रानी
उस एक प्यार को साधेगी।
सब ने भी अलग-अलग संगीत सुना।
इस को
वह कृपा-वाक्य था प्रभुओं का।
उस को
आतंक-मुक्ति का आश्वासन!
इस को
वह भरी तिजोरी में सोने की खनक।
उसे
बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुदबुद।
किसी एक को नई वधू की सहमी-सी पायल-ध्वनि।
किसी दूसरे को शिशु की किलकारी।
एक किसी को जाल-फँसी मछली की तड़पन-
एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की।
एक तीसरे को मंडी की ठेलमठेल, गाहकों की आस्पर्धा भरी बोलियाँ,
चौथे को मंदिर की ताल-युक्त घंटा-ध्वनि।
और पाँचवें को लोहे पर सधे हथौड़े की सम चोटें
और छठे को लंगर पर कसमसा रही नौका पर लहरों की
अविराम थपक।
बटिया पर चमरौधे की रुँधी चाप सातवें के लिए-
और आठवें को कुलिया की कटी मेंड़ से बहते जल की छुल-छुल।
इसे गमक नट्टिन की एड़ी के घुँघरू की।
उसे युद्ध का ढोल।

इसे संझा-गोधूली की लघु टुन-टुन-
उसे प्रलय का डमरु-नाद।
इस को जीवन की पहली अँगड़ाई
पर उस को महाजृंभ विकराल काल!
सब डूबे, तिरे, झिपे, जागे-
हो रहे वंशवद, स्तब्ध :
इयत्ता सब की अलग-अलग जागी,
संघीत हुई,
पा गई विलय।
वीणा फिर मूक हो गई।
साधु! साधु!!

राजा सिंहासन से उतरे-
रानी ने अर्पित की सतलड़ी माल,
जनता विह्वल कह उठी 'धन्य!
हे स्वरजित्! धन्य! धन्य!'

संगीतकार
वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँक-मानो
गोदी में सोये शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ
हट जाय, दीठ से दुलराती-
उठ खड़ा हुआ।
बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन,
बोला :
'श्रेय नहीं कुछ मेरा :
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में-
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने
सब कुछ को सौंप दिया था-
सुना आप ने जो वह मेरा नहीं,
न वीणा का था :
वह तो सब कुछ की तथता थी
महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय
जो शब्दहीन
सब में गाता है।'

नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकंबली।
ले कर कंबल गेह-गुफा को चला गया।
उठ गई सभा। सब अपने-अपने काम लगे।
युग पलट गया।

प्रिय पाठक! यों मेरी वाणी भी
मौन हुई।

रविवार, 22 मई 2016

पुष्प की अभिलाषा (फूल की चाह) | माखनलाल चतुर्वेदी | PUSHP KI ABHILASHA | MAKHANLAL CHATURVEDI

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी


आशय : भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए हर भारतीय तन-मन-धन ले तैयार था। कवि ने त्याग और बलिदान की इस भावना को फूल बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस कविता में भारत बगीचा है तो हर भारतीय फूल है । इस कविता में भारतवासियों का देशप्रेम सुंदर रूप से प्रकट हुआ है।


चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ।


चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।










मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक।



कवि परिचय : माखनलाल चतुर्वेदी जी (१८८८-१९६९) आधुनिक हिंदी साहित्य की राष्ट्रीय-भावना के कवियों में अग्रणी हैं। आपकी रचनाओं में राष्ट्रीयता का ओजस्वी स्वर गूँजता है। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको जेल भी जाना पड़ा था। काव्य के क्षेत्र में आपको 'एक भारतीय आत्मा' के रूप में जाना जाता है। 'हिमकिरीटिनी' 'हिम-तरंगिनी', 'माता' 'समर्पण', 'युग-चरण' आपकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।



UGC-NET&SET-MODEL PAPER-18

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41. अल्हा-ऊदल का संबंध किससे है?
क) परमाल रासो 
ख) खुमाण रासो 
ग) कायम रासो 
घ) हम्मीर रासो

42. खुमाण रासो के रचनाकार कौन है?
क) शाति विजय 
ख) दलपति विजय 
ग) विजयसेन सूरि 
घ) जिनविजय

43. शुक्ल जी ने कितनी रचनाओं के आधार पर आदिकाल को वीरगाथा काल नाम दिया?
क) 10 
ख) 12 
ग) 15 
घ) 11

44. वर्णरत्नाकर कैसी रचना है?
क) नक्षत्र विज्ञान 
ख) भाषा-विज्ञान 
ग) व्याकरण 
घ) ज्योतिष

45. पृथ्वीराज रासो में कितने समय है?
क) 26 
ख) 62 
ग) 69 
ख)96

46. खालिकबारी कैसा ग्रंथ है?
क) इतिहास 
ख) शब्दकोश 
ग) व्याकरण 
घ) ज्योतिष

47. अपभ्रंश को पुरानी हिन्दी किसने कहा है?
क) आचार्य शुक्ल 
ख) राहुल सांकृत्यायन 
ग) चंद्रधर शर्मा गुलेरी 
घ) प्रसाद

48. हिन्दी के पहले पत्र उदंत मार्तंड के प्रथम संपादक कौन थे?
क) नीलरतन हलदर 
ख) राजा राममोहन राय 
ग) युगलकिशोर शुक्ल 
घ) भारतेन्दु

49. निम्न लिखित में से कौन सा आदिकाल का एक नाम नहीं है?
क) वीरगाथा काल 
ख) चारण काल 
ग) सिद्ध-सामंत काल 
घ) आदिम युग

50. नाथ कितने माने जाते है?
क) 11 
ख)
ग) 7 
घ)5