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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

चाँद का झिंगोला | रामधारी सिंह 'दिनकर' | RAMDHARI SINGH DINKAR

चाँद का झिंगोला  
रामधारी सिंह 'दिनकर' 

बच्चे दिन-ब-दिन बढ़ते हैं। इसलिए उनकी पोशाक बड़ी साइज की बना ली जाती है। लेकिन चाँद घटता-घटता अमावस के दिन दिखाई नहीं देता। वह चाहता है कि उसके लिए एक झिंगोला या कुर्ता सिलवा दिया जाय। माँ पूछती है, बेटा, किस नापका बनाया जाय? जिसे तू रोज-रोज पहन सके? इसमें एक मजाक और व्यंग्य है। सदा अस्थिर के लिए कुछ नहीं किया जा सकता।

चाँद का झिंगोला

हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से वह बोला,

“सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का, मोटा एक झिंगोला।

सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,

ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह, यात्रा पूरी करता हूँ।

आसमान का सफर और यह, मौसम है जाड़े का"

न हो अगर तो ला दो कुरता ही कोई भाड़े का।"

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, "अरे सलोने!

कुशल करे भगवान, लगें मत, तुझको जादू-टोने जाड़े की तो बात ठीक है,

पर मैं तो डरती हूँ, एक नाप में कभी नहीं, तुझको देखा करती हूँ।

कभी एक उँगल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।

घटना-बढ़ता रोज, किसी दिन, ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की आँखों का, तू दिखलाई पड़ता है।

अब तू ही यह बता, नाप तेरी किस रोज लिवाएँ,

सी दें एक झिंगोला जो, हर रोज बदन में आए?"