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रविवार, 28 नवंबर 2021

मेरी माँ - डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम | A. P. J. ABDUL KALAM | मिसाइलमैन | पीपल्स प्रेसिडेंट

 मेरी माँ - डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम


‘मिसाइलमैन’ के नाम से चर्चित पीपल्स प्रेसिडेंट डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम एक ऐसे चमत्कारिक व्यक्तित्व रहे हैं जिन्होंने अपने कार्य और व्यवहार से देश ही नहीं, दुनियाँ के करोड़ों नवयुवाओं को प्रभावित किए हैं। ऐसे व्यक्तित्व की प्रेरणा स्रोत उनकी ममतामयी माँ आशियम्मा रहीं, जिन्होंने अभाव से भरे दिनों में कलाम को अपने हिस्से का सबकुछ बचा कर उसे संजोते हुए अतिरिक्त स्नेह, लाड़ प्यार के साथ देती रहीं। यही वह स्नेह का मूल भाव था, जो बाद में कलाम के व्यक्तित्व का स्रोत बन कर राष्ट्र के प्रत्येक बच्चों पर न्यौछावर होता रहा और उन्हें एक श्रेष्ठ भारतीय नागरिक बनाने की दिशा में आधार भूमि बन सका।

आज के इस युग में ऐसे लोग कम ही हैं जिन्होंने अपने काम और व्यवहार से करोड़ों युवाओं और सम्पूर्ण देशवासियों को प्रभावित किया हो, उनके दिल में एक खास जगह बनाई हो, ‘मिसाइलमैन’ नाम से चर्चित, चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम उन चुनिंदा हस्तियों में से एक हैं। इनका व्यक्तित्व इतना सरल और सहज रहा कि हर कोई उन्हें देखकर हैरान हो जाता उन्होंने अपने काम के सिवाय कभी भी अपने पद को अहम नहीं समझा अपनी सीधी सादी बातों और जीवन मूल्यों के कारण डॉ.कलाम ने दुनिया के चर्चित लोगों में एक अलग ही जगह बनाई इसलिए वह आज ‘पीपल्स प्रेसिडेंट’ के नाम से भी जाने जाते हैं। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति हैं, जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पूर्व देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया। ऐसे दो अन्य पूर्व राष्ट्रपति हैं: सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन।

ऐसे महान व्यक्तित्व की प्रेरणा-स्रोत डॉ. कलाम की माँ आशियम्मा थीं। मन को छूने वाली अनेक घटनाओं में डॉ. कलाम ने अपनी माँ का बार-बार उल्लेख किया है। बचपन के अभाव भरे दिनों में, एक संयुक्त परिवार के सदस्य के रूप में उन्हें माँ का अधिक लाड़-प्यार, स्नेह और प्रोत्साहन मिला। उन्होंने बताया है कि हमारे घरों में बिजली नहीं थी तब मिट्टीतेल की चिमनी जलाया करते थे या घर में लालटेन से रोशनी होती थी, जिनका समय रात्रि 7 से 9 बजे तक नियत था। पर नन्हें कलाम माँ के अतिरिक्त स्नेह के कारण रात्रि 11 बजे तक दीपक का उपयोग करते थे क्योंकि माँ को कलाम की प्रतिभा पर भरोसा था इसलिए वह कलाम की पढ़ाई के लिए एक स्पेशल लैंप देती थीं जो रात तक पढ़ाई करने में कलाम की मदद करता था। रोशनी को दूसरों तक फैलाने की चाह कलाम के नन्हें मन में यहीं से उठने लगी थी जो समय के साथ विश्वव्यापी बनी।

एक अन्य घटना डॉ. कलाम को जीवनभर याद रही वह यह थी-कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी माँ खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं। दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहाँ चावल अधिक खाया जाता है। लेकिन कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था इसलिए उनकी माँ उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियाँ अवश्य दिया करती थीं। एक बार उनके घर में खाने में गिनी चुनीं रोटियाँ ही थीं। यह देखकर माँ ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी। उनके बड़े भाई ने कलाम को धीरे से यह बात बता दी। इससे कलाम अभिभूत हो उठे और दौड़ कर माँ से लिपट गए।

माँ के विश्वास व प्रोत्साहन का ही परिणाम था कि डॉ. कलाम अपने जीवन को बहुत अनुशासन में जीना पसंद करते थे। वे शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों में से थे। कहा जाता है कि वे कुरान और भगवद्गीता दोनों का अध्ययन करते थे और उनकी गूढ़ बातों पर अमल किया करते थे। उनके संदेश व छात्रों से बातचीत में उनके जीवन के इन भावों और माँ की प्रेरणा का बार-बार उल्लेख मिलता है, जो भारत के तमाम बच्चों और बच्चियों तथा युवाओं को कुछ नया सोचने और नया करने को प्रोत्साहित और प्रेरित करते रहे हैं।

जब डॉ. कलाम आगे की पढ़ाई के लिए बाहर गए तो उन्हें घर छोड़ना पड़ा, उस समय माँ आशियम्मा का कलेजा भर आया, वे रो पड़ीं और अपने आपको शांत नहीं कर पाईं। तब नन्हें कलाम ने माँ के पास बैठकर उन्हें समझाया-‘माँ मैं तुमसे दूर कहाँ जा रहा हूँ। मैं अपनी माँ के बिना भला रह सकता हूँ! नन्हें कलाम के मुँह से ऐसी समझदारी की बात सुनकर माँ ने अपने आँसू पोंछ लिए। वे मुस्कुराईं और फिर हँसी-खुशी उन्हें विदा करने के लिए, कुछ हिदायतें देती हुईं, कुछ कदम कलाम के साथ चलीं। इसके बाद कलाम के पिता और परिवार के अन्य लोग, मित्र स्टेशन पर उन्हें छोड़ने आए थे। रेलगाड़ी में बैठकर स्कूल की ओर यात्रा करते हुए कलाम के मन में माँ की ममता थी, यादे थीं, माँ की हिदायतें, झिड़कियाँ, और शरारत करने पर की गईं सख्तियाँ थीं। कलाम का मन माँ की ममता से सराबोर था।

कोई भी बच्चा जब पहली बार घर छोड़कर बाहर अकेला रहने के लिए जाता है तो उसे सबसे ज्यादा घर से दूरी और माँ की कमी खलती है। माँ से बच्चे के मन का तार जुड़ा होता है, नन्हें बालक कलाम का माँ के प्रति यही भाव उनके बड़े होने के साथ-साथ और भी गहरा होता गया। यही भाव उनकी “माँ” कविता में दिखता है-

माँ

“समंदर की लहरें,

सुनहरी रेत,

श्रद्धानत तीर्थयात्री,

रामेश्वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।

सब में तू निहित है,

सब तुझमें समाहित।

तेरी बाँहों में पला मैं,

मेरी कायनात रही तू,

जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा-सा मैं,

जीवन बना था चुनौती, जिन्दगी अमानत,

मीलों चलते थे हम,

पहुँचते किरणों से पहले”

यह कविता उन्होंने तब लिखी जब उनकी माँ इस दुनियाँ में नहीं रहीं और यह सच जाहिर करती है कि वे कलाम के महान कामों के पीछे प्रेरणा रहीं। कलाम के बचपन को माँ ने कुछ इस तरह सँवारा और प्रोत्साहित किया कि बालमन के सभी सहज भाव डॉ. कलाम की प्रौढ़ अवस्था में छलकते रहते थे। नई चीज़ सीखने के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। उनके अंदर सीखने की भूख थी और पढ़ाई पर घंटों ध्यान देना उनमें से एक था।

एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने जीवन के सबसे बड़े अफसोस का जिक्र किया था उन्होंने कहा था कि वह अपने माता-पिता को उनके जीवनकाल में 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं करा सके; उन्होंने कहा था कि मेरे पिता (जैनुलाब्दीन) 103 साल तक जीवित रहे और माँ (आशियाम्मा) 93 साल तक जीवित रहीं। उन्होंने भारतीय छात्रों को अपना संदेश देते हुए कहा था -

“सपने वो नहीं होते जो रात को सोते समय नींद में आएँ, सपने वो होते हैं जो रातों में सोने नहीं देते।“

“इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।“

प्रस्तुत लेख डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘विंग्स ऑफ फायर’’ के हिंदी रूपान्तरण से संकलित है।