Pages

CLASS

Pages

मंगलवार, 30 नवंबर 2021

कल्पना चावला | KALPANA CHAWLA | सितारों से आगे - कल्पना चावल

सितारों से आगे - कल्पना चावला

एक सामान्य सी दुबली-पतली करनाल (हरियाणा) की बिटिया, अपनी प्रतिबद्धता और साहस से इतना कुछ करती रही जो भारत की ही नहीं विश्व की बेटियों में अपनी पहचान कायम कर सकी। माता-पिता की चौथी संतान कल्पना चावला बचपन से नक्षत्र लोक को घंटों निहारा करती थी। वह एक अन्तरिक्ष-यात्री के रूप में स्पेस सटल ‘कोलम्बिया‘ में बैठकर अंतरिक्ष के गूढ़ रहस्य खोलने की यात्रा पर थी। जान जोखिम में डालने वाली इस यात्रा में यह सच है वह अपना जान गँवा बैठी पर एक जीवंत इतिहास अवश्य रच डाली। बचपन के इस वक्तव्य को उसने अपना बलिदान देकर साबित किया कि ‘जो काम लड़के कर सकते हैं वह मैं भी कर सकती हूँ।’

1 फरवरी 2003, विश्व के लोग अपने-अपने टेलीविजन सैट पर आँखें गड़ाए हुए थे। अमेरिका में फ्लोरिडा के केप केनेवरल अंतरिक्ष केंद्र के बाहर दर्शकों की भीड़ थी। सबकी आँखें आकाश की ओर लगी थीं। अवसर था कोलंबिया शटल के पृथ्वी पर लौटने का। भारत के लोग भी आतुरता से टी. वी. पर बैठे इस दृश्य को देख रहे थे। उनकी आतुरता का कारण यह भी था कि इस अंतरिक्ष अभियान में भारत की बेटी, इकतालीस वर्षीया कल्पना चावला भी शामिल थी। उसके परिवार के लोग तो फ्लोरिडा में ही अपनी बेटी के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। यहाँ भारत में उसके नगर करनाल में उसी के विद्यालय-टैगोर बाल निकेतन- के लगभग तीन सौ छात्र-छात्राएँ अपने विद्यालय की पूर्व छात्रा, कल्पना चावला के अंतरिक्ष से सकुशल वापस लौटने को उत्सव के रूप में मनाने के लिए एकत्र हुए थे।

प्रकृति के रहस्यों को खोजने में जान का जोखिम रहता ही है। एवरेस्ट विजय करने में दर्जनों पर्वतारोहियों ने अपनी जानें गँवाई हैं। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव की खोज में भी अनेक सपूतों ने अपने बलिदान किए हैं। यही स्थिति अंतरिक्ष अभियान की भी है। जब तक अभियान पूरी तरह सफल न हो जाए, तब तक अंतरिक्ष यात्रियों, अंतरिक्ष केंद्र के संचालकों, दर्शकों के हृदय में धुकधुकी लगी रहती है। उस दिन भी केप केनेवरल में प्रातः 9 बजे दर्शकों की साँस ऊपर की ऊपर रह गई। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश के साथ ही कोलंबिया शटल का संपर्क अंतरिक्ष केंद्र से टूट गया। सहसा कुछ मिनटों के बाद टेक्सास के ऊपर एक जोरदार धमाका सुनाई दिया। ह्यूस्टन कमान केंद्र में घबराहट फैल गई। कोलंबिया स्पेस शटल में सवार सभी सातों अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर के चिथड़े-चिथड़े होकर अमेरिका की भूमि पर यहाँ-वहाँ बिखर गए। भारत ने उस दिन अपने जाज्वल्यमान नक्षत्र, कल्पना चावला, को खो दिया। समूचे देश में, विशेष रूप से करनाल में, शोक की लहर दौड़ गई। टैगोर बाल निकेतन में आयोजित होनेवाला उत्सव, शोक-सभा में परिवर्तित हो गया। इस हादसे से एक अरब से अधिक देशवासियों के चेहरे मुरझा गए। करनाल की यह विलक्षण बेटी सफलतापूर्वक एक यात्रा पूरी कर चुकी थी, लेकिन दूसरी यात्रा में वही दुबली-पतली लड़की अपनी मधुर मुस्कान और दृढ़ संकल्प के साथ अपने सपनों को साकार न कर पाई। कल्पना के जीवन की यह कहानी करनाल से प्रारम्भ हुई और अंतरिक्ष में समाप्त हुई। आओ, इस कहानी का प्रारंभ देखें।

बनारसी दास चावला भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आकर करनाल में बसे थे। सन् 1961 में यहीं कल्पना का जन्म हुआ था। बनारसीदास चावला की यह चौथी संतान थी। माता-पिता अपनी दुलारी बेटी को मोंटू कहते थे। शिक्षा के क्षेत्र में मोंटू का परिवार काफी आगे था। मोंटू की स्कूली शिक्षा करनाल के टैगोर बाल निकेतन में ही हुई। गर्मी के दिनों में रात को खुले आसमान में तारागणों की ओर निहारती हुई कल्पना नक्षत्र-लोक में पहुँच जाती थी। शायद यहीं से उसे अंतरिक्ष-यात्रा की सूझी थी।

जागरुक पिता ने अपनी प्यारी बेटी मोंटू की रुचि को भाँप लिया था और जब वह आठवीं कक्षा में थी, तभी उसे पहली उड़ान कराई थी। एंट्रेंस की परीक्षा उत्तीर्ण करके कल्पना ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। इंजीनियरिंग में उसने अंतरिक्ष विषय लिया। चंडीगढ़ के पूर्वी पंजाब इंजीनियरिंग महाविद्यालय में उस समय तक एयरोनाटिक विभाग में कम छात्र-छात्राएँ ही दाखिला लेते थे। छात्राओं का प्रतिशत तो और भी कम रहता था। कॉलेज में पढ़ते समय कल्पना दत्तचित्त होकर अपना कोर्स तो तैयार करती ही थी, साथ ही कॉलेज के सभी क्रियाकलापों में भी भाग लेती थी। वह अक्सर कहती थी - ’’जो काम लड़के कर सकते हैं, वह मैं भी कर सकती हूँ।‘‘

कल्पना को जब एयरोनाटिक्स की डिग्री मिल गई, तब उसने अपनी आगे की पढ़ाई अमेरिका में करने का मन बनाया। उसे वहाँ प्रवेश भी मिल गया। वहीं उसका परिचय जीन पियरे से हुआ। दिसम्बर 1983 में वे दोनों विवाहसूत्र में बँध गए।

विवाह के उपरांत भी कल्पना ने अंतरिक्ष में उड़ने का अपना ध्येय अटल रखा। एक दिन उसे टेलिफोन पर नासा से समाचार मिला - ‘हमें खुशी होगी यदि आप यहाँ आकर एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में अंतरिक्ष कार्यशाला में भाग लें।‘ कल्पना के लिए तो यह मनमाँगी मुराद पूरी होना था। नासा द्वारा अंतरिक्ष-यात्रा के लिए चुने जाने का गौरव बिरले ही लोगों के भाग्य में होता है।

6 मार्च 1995 से कल्पना का एकवर्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। तरह-तरह की प्रशिक्षण प्रणालियों के द्वारा इन अंतरिक्ष यात्रियों को तैयार करने में कई महीने लग जाते हैं। कल्पना को इस अवधि में जो उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपे जाते थे, वह उन्हें पूरी निष्ठा से करती थी।

19 सितम्बर 1997 को एस टी एस 87 के अभियान दल के सदस्यों का परीक्षण हुआ। इनमें कुछ पुराने अनुभवी सदस्य थे तो कुछ नए भी थे। कल्पना का यह पहला अभियान था। उड़ान से पहले अंतरिक्ष यात्री अपने-अपने परिजनों से मिले। इसके बाद सब एक-एक करके अंतरिक्ष-यान में सवार हुए। अंतरिक्ष-यान 17500 मील प्रति घंटे की गति से उड़ा। कल्पना के लिए इतनी ऊँचाई से विश्व की झलक देख पाना एक दैवी कृपा के समान था। यह यान सत्रह दिनों तक अंतरिक्ष में घूमता रहा और अंतरिक्ष यात्री अपने प्रयोग करते रहे। अंततः शुक्रवार प्रातः 6 बजे अंतरिक्ष-यान कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र पर उतरा। दर्शक दीर्घा में बैठे अंतरिक्ष-यात्रियों के परिवार के लोगों ने यान के सकुशल वापस लौट आने पर ईश्वर को धन्यवाद दिया।

इस उड़ान में उपग्रह और कंप्यूटर प्रणाली में कुछ गड़बड़ी आ गई थी। इस गड़बड़ी का दोष कल्पना पर लगाया गया। जाँच दल के सामने कल्पना ने निर्भीक होकर अपनी बात कही। कल्पना के तर्क से सहमत होकर जाँच दल ने उसे पूर्ण रूप से दोषमुक्त कर दिया। अतः उसे इसके बाद दूसरे अभियान के लिए भी चुना गया। दूसरे अभियान की तिथि 16 जनवरी 2003 निश्चित की गई। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य भौतिक क्रिया का अध्ययन करना था जिससे बदलते मौसम एवं जलवायु का ज्ञान सुलभ हो सके।

अपने निर्धारित समय पर यह अभियान चला। इस अभियान में कल्पना अपने साथ संगीत की कई सीडी ले गई थी। इस अभियान में अनेक धर्मों के अंतरिक्ष यात्री भाग ले रहे थे और वहाँ सर्वधर्म समभाव का माहौल बन गया था। कल्पना समय-समय पर सीडी के गाने सुनकर तरोताजा हो जाती थी। स्पेस शटल अपने निर्धारित कार्यक्रम, निर्धारित समय में पूरा करके वापस पृथ्वी की ओर आ रहा था। तभी 1 फरवरी 2003 का वह काला दिन आया जब स्पेस शटल तथा उसमें सवार सात अंतरिक्ष-यात्रियों के शरीर के क्षत-विक्षत अंग अमेरिका की धरती पर इधर-उधर बिखर गए। सम्पूर्ण विश्व में इस दुर्घटना से शोक की लहर फैल गई।

कल्पना का जन्म और जीवन सामान्य जैसा ही था किन्तु उसकी उपलब्धियाँ असामान्य थीं। वह सदा नई जानकारी, नए अनुभव, नए चमत्कार करना चाहती थी। सारे विश्व के बच्चों के लिए उसका यही संदेश था- ‘अपने विश्वास के धरातल से आगे बढ़कर चलो, तभी असंभव को संभव बनाया जा सकता है।‘ कल्पना के इसी संदेश को जीवंत रखने के लिए उसके परिवार ने ‘मोंट्यू फाउंडेशन‘ की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य है प्रतिभावान नवयुवकों और नवयुवतियों को, जिन्हें धनाभाव के कारण उच्च शिक्षा से वंचित होना पड़ता है, विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करना।