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सोमवार, 22 नवंबर 2021

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद | ABUL KALAM AZAD

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 

ABUL KALAM AZAD


आज से लगभग एक शताब्दी पहले की बात है बारह वर्ष की आयु पूरी होने से पहले ही एक बालक ने पुस्तकालय, वाचनालय और वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करने की संस्था चलायी। जब वह पन्द्रह वर्ष का हुआ तो अपने से दुगुनी आयु के विद्यार्थियों की एक कक्षा को पढ़ाया। तेरह से अठारह साल की आयु के बीच बहुत सी पत्रिकाओं का सम्पादन किया। सोलह वर्ष के इस दुबले-पतले लड़के ने एक बड़े विद्वान के रूप में भाषा विशेष की राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स से मुख्य वक्ता के रूप में भाषण दिया। इस बालक का नाम था - अबुल कलाम जो आगे चलकर स्वतन्त्रता प्राप्ति के संघर्ष का एक महान नायक कहलाया।

मौलाना अबुल कलाम का जन्म 11 नवम्बर सन् 1888 ई. को मक्का नगर में हुआ था। इनके पिता मौलाना खैरुद्दीन अरबी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनकी माँ पवित्र नगर मदीना के मुफ्ती की पुत्री थी। इनका बचपन मक्का मदीना में बीता। इनके मकान पर शिक्षा प्रेमियों की हर समय अपार भीड़ लगी रहती थी। परिवार 1907 में भारत लौट आया और कोलकाता में बस गया।

मौलाना आजाद का प्रारम्भिक जीवन सामान्य बालकों से कुछ भिन्न था। खेलना तो उन्हें भी पसन्द था, पर उनके खेल दूसरे बच्चों के खेलों से कुछ अलग होते थे। उदाहरणार्थ- कभी वे घर के सभी बक्सों को एक लाइन में रखकर अपनी बहनों से कहते “देखो! यह रेलगाड़ी है, मैं इस रेलगाड़ी में से उतर रहा हूँ। तुम लोग चिल्ला-चिल्लाकर कहो हटो-हटो रास्ता दो, दिल्ली के मौलाना आ रहे हैं।” फिर वे अपने पिता की पगड़ी सिर पर बाँधकर बड़ी गम्भीर मुद्रा में धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए बक्सों की रेलगाड़ी से इस प्रकार नीचे उतरते जैसे कि बड़ी उम्र का कोई सम्मानित व्यक्ति उतर रहा हो।

मौलाना आजाद को बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का बड़ा चाव था। वे जब किसी विषय के अध्ययन में लगते तो उसमें ऐसा डूबते कि उन्हें अपने आस-पास का भी होश न रहता। अबुल कलाम बड़ी कुशाग्र बुद्धि के थे। एक बार जो कुछ पढ़ लेते, वह हमेशा के लिए उन्हें याद हो जाता। उन्होंने साहित्य दर्शन और गणित आदि विषयों का गहन अध्ययन किया था। शायरी और गद्य लेखन का शौक बचपन से ही था। अपनी इसी रुचि के कारण उन्होंने समय-समय पर कई पत्र-पत्रिकाएं निकाली और स्वयं उनका सम्पादन किया। उनकी पहली पत्रिका 'नैरंगे आलम' है। जिस समय यह पत्रिका निकली, मौलाना आजाद की आयु मात्र 12 वर्ष थी।

अबुल कलाम आजाद की योग्यता और विद्वता से लोगों का परिचय तब हुआ जब उन्होंने 'लिसानुल सिदक' नाम का एक दूसरा पत्र प्रकाशित किया। इसके माध्यम से उनका उद्देश्य तत्कालीन मुस्लिम समाज में फैले अन्ध-विश्वासों को समाप्त कर उनमें सुधार लाना था। अंजुमन हिदायतुल इस्लाम के लाहौर अधिवेशन में तत्कालीन जाने-माने लेखका एवं कवियों के सामने 15-16 वर्ष का एक दुबला-पतला, बिना दादा मुछ का नवयुवक बोलने के लिये आगे बढ़ा तो लोगों की आँख आश्चर्य से खुली की खुली रह गयीं। इस युवक ने अपनी सधी और संयत भाषा में विचार व्यक्त करने शुरू किये तो सभा में सन्नाटा छा गया। उस लड़के ने करीब ढाई घंटे तक बिना लिखित रूप के सीधे अपना भाषण दिया। इस घटना के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में अबुल कलाम आजाद की बाऊ जम गयी। उन्होंने आगे चलकर 'अलनदवा' और 'वकील' सहित कई पत्र-पत्रिकाओ का सम्पादन किया।

सन् 1912 ई. में उन्होंने अपना प्रसिद्ध साप्ताहिक अखवार 'अलहिलाल’ आरम्भ किया। यह अखबार भारत में और विदेशों में जल्दी प्रसिद्ध हो गया। लोग इकट्ठे होकर उस अखवार के हर शब्द ऐसे पढ़ते या सुनते जैसे वह स्कूल में पढ़ाया जाने वाला कोई पाठ हो। उस अखबार ने लोगों में जागृति की एक लहर उत्पन्न कर दी। आखिर सरकार ने ‘अल-हिलाल’ की 2000 रुपये और 10000 रुपये की जमानतें जब्त कर लीं। मौलाना आजाद को सरकार के खिलाफ़ लिखने के जुर्म में बंगाल से बाहर भेज दिया गया। वे चार वर्ष से भी अधिक समय तक राँची (झारखंड) में कैद रहे।

इसी सम्बन्ध में गांधीजी ने कहा “मुझे खुशी है कि सन् 1920 से मुझे मौलाना के साथ काम करने का मौका मिला है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे महान नेताओं में से वे एक हैं।

राष्ट्रीय गतिविधियों में सक्रिय रहने के कारण मौलाना आजाद को कई बार जेल जाना पड़ा। महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन को उन्होंने अपना पूरा समर्थन दिया। राष्ट्रीयता की भावना का विस्तार तथा 'हिन्दू-मुस्लिम एकता’ उनके मिशन के अंग थे। इससे उन्हें राष्ट्रीय नेताओं का भरपूर विश्वास और असीमित प्यार मिला। एक बार अपनी गिरफ्तारी के समय उन्होंने कहा था - 'हमारी सफलताएं चार सच्चाइयों पर निर्भर करती हैं और मैं इस समय भी सारे देशवासियों को इन्हीं के लिए आमन्त्रित करता है।

हिन्दू मुस्लिम एकता, शान्ति, अनुशासन और बलिदान -

1923 ई. में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। उस समय उनकी आयु केवल 35 वर्ष थी। मौलना आजाद सच्चे राष्ट्रवादी और हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे।

मौलाना आजाद हिन्दू-मुस्लिम एकता के अनन्य दूत थे। उन्होंने एकता के सिद्धान्त से एक इंच भी हटना सहन नहीं किया। आलोचनाओं के बीच वे चट्टान की भाँति दृढ़ रहे। वे 1940 में कांग्रेस अध्यक्ष बने और स्वतन्तरता प्राप्ति के आन्दोलन के समय (1940 1947) अंग्रेजों से हुई विभिन्न वार्ताओं में शामिल रहे।

अगस्त 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मन्त्री का पद सँभाला। मन्त्रिमण्डल में मौलाना आजाद को शिक्षामंत्री का पद दिया गया। मौलाना ने शिक्षा, कला, संगीत और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये। शिक्षामन्त्री के रूप में मौलाना आजाद के सम्मुख दो लक्ष्य थे राष्ट्रीय एकता की स्थापना और भारत के कल्याण के लिए शिक्षा की नवीन व्यवस्था।

मौलाना आजाद लंगभग दस वर्ष तक भारत के शिक्षामंत्री रहे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में देश का नेतृत्व किया। यह उनकी सूझबूझ और दूर दृष्टि का ही परिणाम था कि देश में शिक्षा के समुचित विकास का कार्यक्रम दूरत गति और व्यवस्थित ढंग से चलाया जा सका। उन्होंने प्रौढ़ तथा महिला शिक्षा पर भी अत्यधिक बल दिया।

राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सहिष्णुता तथा देश-प्रेम का अनूठा आदर्श प्रस्तुत करने वाला एक यशस्वी एवं साहसी साहित्यकार, पत्रकार तथा उच्चकोटि का राजनेता 22 फरवरी सन् 1958 ई. को हमारे बीच से सदा-सदा के लिये विदा हो गया।