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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

मानसरोदक खण्ड का सारांश लिखिए।

मानसरोदक खण्ड का सारांश लिखिए।

रूपरेखा :

1. प्रस्तावना

2. अनुपम रूप लावण्य

3. तत्कालीन समाज की बधुओं की परतंत्र स्थिति

4. पद्मावती का पारमात्मिक रूप

5. उपसंहार

1. प्रस्तावना:

मानसरोदक खण्ड की रचना सूफी महान कबि मलिक महम्मद जायसी ने की थी। प्रेम पीर के सच्चे साधक जायसी ने पदमावत काव्य में लौकिक प्रेम के द्वारा अलैकिक प्रेम का निरूपण किया है। इस काव्य में नायिका पदमावती परमात्मा की प्रतीक है। उसके व्यक्तित्व एवं सौंदर्यसत्ता एवं सौंदर्य का इतने व्यापक रूप में चित्रण किया गया है कि जिससे किसी अनंत सौंदर्य- सत्ता के रूप में आभास होने लगता हैं। जायसी का रहस्यवाद मूलतः भारतीय अद्वैत भावना पर अश्रित है।

गंधर्वसेन राजा की रानी चम्पावती के गर्भ से पद्मावती का जन्म होता है। कन्या राशि में उत्पन्न होने से उनका नाम पद्मावती रखा गया। इस काव्य में पद्मावती रूप वर्णन के साथ साथ में पारमात्मिक तत्त्व भी बताया गया है। 'पद्मावत' प्रेममार्गी विचारधारा का काव्य है।

2. अनुपम रूप लावण्यः

किसी पूनम के दिन पदमावती मानसरोवर में स्नान करने के लिए अपनी सब सखियों के साथ निकलती है, मानो समस्त फुलवारी ही निकलती है। वे सब मालती रूप पद्मावती के साथ ऐसे चलीं मानो कमल के साथ कुमुदिनी हो। उनकी सुगन्धि की व्यापकता के कारण गंधर्व के समूह भी प्रभावित हो रहे थे।

“भेली सबै मालनि संग फूले केवल कमोद।

. बेधि रहे गन गंध्रप बास परिमलामोद।"

पद्मिनी की सखियों ने सरोवर के किनारे अपने जूडे खोलकर बालों को फैला दिया। पद्मावती का मुख चन्द्रमा के समान है और शरीर मलयाचल की भाँति है। उस पर बिखरे हुए बाल ऐसे हैं जैसे सर्पों ने सुगन्धि के लिए इसे ढक लिया हो या फिर ये बाल मानो मेध ही उमड़ आये हैं जिससे सारे संसार में छाया हो गई। लहराते बाल ऐसे लगते हैं कि चन्द्रमा को ढक लिया है। केश इतने घने और काले हैं कि दिन होते हुए भी सूर्य का प्रकाश छिप गया, और चंद्रमा रात में नक्षत्रों को लेकर प्रकट हो गया। चकोर आकाश में चंद्रमा और धरती पर विराजमान चद्रमों को देखकर घबरा गयी। पद्मावती के दाँत बिजली जैसे चमकीले थे और वह कोयल की तरह मधुर भाषिणी थी। भौंहें ऐसी थीं जैसे आकाश में इंद्रधनुष हो। नेत्र क्या थे मानो दो खंजन के पक्षी क्रीड़ा कर रहे हों।

मानसरोवर उसके रूप को देखकर मोहित हो गया और इस बहाने से लहरें ले रहा कि किसी तरह पदंमावती के पैर छू सके।

3. तत्कालीन समाज की बधुओं की परतंत्र स्थितिः

सरोवर में स्नान करते समय या सब खेलती हुई सब सहेलियाँ पद्मावती से कहती हैं- हे रानी! मन में विचार करके देख लो। इस पीहर में चार दिन ही रहना है। जब तक पिता का राज्य है तभी तक खेल लो जैसा कि आज फिर हमारा ससुराल जाने का समय आ जाएगा, तो फिर न जाने हम कहाँ होंगे और कहाँ यह तालाब और इसका किनारा होगा? और मिलकरके साथ खेल न पायेंगे। सास और ननद बोलते ही प्राण ले लेंगी। ससुर बडा कठोर होगा। वह आने भी नहीं देगा। न जाने प्रियतम कैसा व्यवहार करेगा।

"पिउ पिआर सब ऊपर सो पुनि करै देह काह।

कहुँ सुख राखै की दुख दहुँ कस जरम नि बाहु॥"

सखियाँ खेलती- खेलती रही, एक सखी का हार पानी में खो गया और वह चित्त से बैसुध हो जाती है। वह अपने आप कहने लगती है - मैं इनके साथ खेलने ही क्यों आई थी। स्वयं अपने हाथों से अपना हार खो चली। घर में घुसते ही इस हार के विषय में पूछे गये तो फिर क्या उत्तर देकर प्रवेश पा सकूँगी ? उसके नेत्र रूपी सीपी में आँसू भर आते हैं। एक सखी कहती है हमारे साथ खेलने की अच्छाई है और हार खोने की बुराई भी। जीवन में अच्छाई और बुराई दोनों होते हैं।

4. पद्मावती का पारमात्मिक रूपः

जब पद्मावती मानसरोवर में स्नान करने के लिए निकलती है तो पानी उसके पाँव छूने के लिए उछलने लगता है, जिस तरह परमात्मा का चरण छूने के लिए भक्त उभरते - ललचाते हैं। मानसरोवर ने कहा कि पारस के स्पर्श से लोहा, कंचन हो जाता है। वैसे ही उसके पैरों के स्पर्श से मैं निर्मल हो गया। उसके शरीर से मलयाचल की सुगंधि से मेरी तपन बुझ गई। मेरी दशा पुण्य की हो गई और पाप नष्ट हो गये।

चंद्रमा रूप पद्मावती की मुस्कान को देखकर कुमुदिनी रूप सखियाँ भी मुस्कराने लगी। जिस तरह भी देखो पद्मावती का रूप ही दर्शाने लगा है। जायसी कहते हैं सरोवर में कमल तो पद्मावती के नेत्र ही मानो प्रतिबिंबित कमल थे। उसका निर्मल शरीर ही मानो सरोवर में प्रतिबिंबित निर्मल जल था। उसका हास ही प्रतिबिंबित हंस थे। उसके दाँत ही मानो सरोवर में प्रतिबिंबित नग और हीरे थे।

इसमें जायसी ने परमेश्वर के बिम्ब - प्रतिबिम्ब भाव को इस प्रसंग के माध्यम से प्रकट करने का प्रयत्न किया है। पद्मावती बिम्ब है और यह सम्पूर्ण जगत उसीका प्रतिबिम्ब है।

5. उपसंहार -

जायसी के काल में यह पता चलता है कि नारी के (सौन्दर्य) नखशिख सौन्दर्य का वर्णन होता था। उन दिनों में प्रचलिय सामाजिक परिस्थितियों में नारी के पति के घर में जीवन का स्वरूप और नारी की मनोचिंतन का विश्लेषण हुआ है। पद्मावती को इस काव्य में परमात्मा के रूप में दर्शाया गया है। स्त्री की पूजा करदे नारी समाज की उन्नति करने का प्रयास किया गया है । पदमावती रूपी पात्र से सौंदर्य की लहर के साथ-साथ परब्रह्म का भी विश्लेषण हुआ है। पारमात्मिक सत्ता पर बल दिया गया है। जायसी के विलक्षण शैली से यह काव्य हिन्दी साहित्य में विशिष्ट बना।

इस प्रकार "पदमावत" काव्य में मानसरोदक खण्ड के द्वारा जायसी रहस्यवाद का प्रतिपादन करते हैं।